०१ निवेदन

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीरामचरितमानसका स्थान हिंदी-साहित्यमें ही नहीं, जगत् के साहित्यमें निराला है। इसके जोड़का ऐसा ही सर्वाङ्गसुन्दर, उत्तम काव्यके लक्षणोंसे युक्त, साहित्यके सभी रसोंका आस्वादन करानेवाला, काव्यकलाकी दृष्टिसे भी सर्वोच्च कोटिका तथा आदर्श गार्हस्थ्य-जीवन, आदर्श राजधर्म, आदर्श पारिवारिक जीवन, आदर्श पातिव्रतधर्म, आदर्श भ्रातृधर्मके साथ-साथ सर्वोच्च भक्ति, ज्ञान, त्याग, वैराग्य तथा सदाचारकी शिक्षा देनेवाला, स्त्री-पुरुष, बालक-वृद्ध और युवा—सबके लिये समान उपयोगी एवं सर्वोपरि सगुण-साकार भगवान् की आदर्श मानवलीला तथा उनके गुण, प्रभाव, रहस्य तथा प्रेमके गहन तत्त्वको अत्यन्त सरल, रोचक एवं ओजस्वी शब्दोंमें व्यक्त करनेवाला कोई दूसरा ग्रन्थ हिंदी-भाषामें ही नहीं, कदाचित् संसारकी किसी भाषामें आजतक नहीं लिखा गया। यही कारण है कि जितने चावसे गरीब-अमीर, शिक्षित-अशिक्षित, गृहस्थ-संन्यासी, स्त्री-पुरुष, बालक-वृद्ध—सभी श्रेणीके लोग इस ग्रन्थरत्नको पढ़ते हैं, उतने चावसे और किसी ग्रन्थको नहीं पढ़ते तथा भक्ति, ज्ञान, नीति, सदाचारका जितना प्रचार जनतामें इस ग्रन्थसे हुआ है, उतना कदाचित् और किसी ग्रन्थसे नहीं हुआ।
जिस ग्रन्थका जगत् में इतना मान हो, उसके अनेकों संस्करणोंका छपना तथा उसपर अनेकों टीकाओंका लिखा जाना स्वाभाविक ही है। इस नियमके अनुसार श्रीरामचरितमानसके भी आजतक सैकड़ों संस्करण छप चुके हैं। इसपर सैकड़ों ही टीकाएँ लिखी जा चुकी हैं। हमारे गीता-पुस्तकालयमें रामायण-सम्बन्धी सैकड़ों ग्रन्थ भिन्न-भिन्न भाषाओंके आ चुके हैं। अबतक अनुमानतः इसकी लाखों प्रतियां छप चुकी होंगी। आये दिन इसका एक-न-एक नया संस्करण देखनेको मिलता है और उसमें अन्य संस्करणोंकी अपेक्षा कोई-न-कोई विशेषता अवश्य रहती है। इसके पाठके सम्बन्धमें भी रामायणी विद्वानोंमें बहुत मतभेद है, यहाँतक कि कई स्थलोंमें तो प्रत्येक चौपाईमें एक-न-एक पाठभेद भिन्न-भिन्न संस्करणोंमें मिलता है। जितने पाठभेद इस ग्रन्थके मिलते हैं, उतने कदाचित् और किसी प्राचीन ग्रन्थके नहीं मिलते। इससे भी इसकी सर्वोपरि लोकप्रियता सिद्ध होती है।
इसके अतिरिक्त रामचरितमानस एक आशीर्वादात्मक ग्रन्थ है। इसके प्रत्येक पद्यको श्रद्धालु लोग मन्त्रवत् आदर देते हैं और इसके पाठसे लौकिक एवं पारमार्थिक अनेक कार्य सिद्ध करते हैं। यही नहीं, इसका श्रद्धापूर्वक पाठ करने तथा इसमें आये हुए उपदेशोंका विचारपूर्वक मनन करने एवं उनके अनुसार आचरण करनेसे तथा इसमें वर्णित भगवान् की मधुर लीलाओंका चिन्तन एवं कीर्तन करनेसे मोक्षरूप परम पुरुषार्थ एवं उससे भी बढ़कर भगवत्प्रेमकी प्राप्ति आसानीसे की जा सकती है। क्यों न हो, जिस ग्रन्थकी रचना गोस्वामी तुलसीदासजी-जैसे अनन्य भगवद्भक्तके द्वारा, जिन्होंने भगवान् श्रीसीतारामजीकी कृपासे उनकी दिव्य लीलाओंका प्रत्यक्ष अनुभव करके यथार्थ रूपमें वर्णन किया है, साक्षात् भगवान् श्रीगौरीशंकरजीकी आज्ञासे हुई तथा जिसपर उन्हीं भगवान् ने ‘सत्यं शिवं सुन्दरम्’ लिखकर अपने हाथसे सही की, उसका इस प्रकारका अलौकिक प्रभाव कोई आश्चर्यकी बात नहीं है। ऐसी दशामें इस अलौकिक ग्रन्थका जितना भी प्रचार किया जायगा, जितना अधिक पठन-पाठन एवं मनन-अनुशीलन होगा, उतना ही जगत् का मङ्गल होगा—इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। वर्तमान समयमें तो, जब सर्वत्र हाहाकार मचा हुआ है, सारा संसार दुःख एवं अशान्तिकी भीषण ज्वालासे जल रहा है, जगत् के कोने-कोनेमें मार-काट मची हुई है और प्रतिदिन हजारों मनुष्योंका संहार हो रहा है, करोड़ों-अरबोंकी सम्पत्ति एक-दूसरेके विनाशके लिये खर्च की जा रही है, विज्ञानकी सारी शक्ति पृथ्वीको श्मशानके रूपमें परिणत करनेमें लगी हुई है, संसारके बड़े-से-बड़े मस्तिष्क संहारके नये-नये साधनोंको ढूँढ़ निकालनेमें व्यस्त हैं, जगत् में सुख-शान्ति एवं प्रेमका प्रसार करने तथा भगवत्कृपाका जीवनमें अनुभव करनेके लिये रामचरितमानसका पाठ एवं अनुशीलन परम आवश्यक है।

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॥श्रीहरिः॥