समस्त धातुओं के यङ्लुगन्त रूप बनाने की सरलतम विधि
__यडन्त प्रकरण में हमने बार बार होने अर्थ में तथा बहुत अधिक होने अर्थ में ‘धातोरेकाचो हलादे: क्रियासमभिहारे यङ्’ सूत्र से ‘यङ्’ प्रत्यय लगाया यडोऽचि च - धातुओं से लगने वाले इस ‘यङ्’ प्रत्यय का विकल्प से लुक् (लोप) हो जाता है, सारे प्रत्यय परे होने पर। विशेष - यङ्का लुक हो जाने पर, उस यङ्लुगन्त धातु की सनाद्यन्ता धातवः’ सूत्र से धातुसंज्ञा करके इन यङ्लुगन्त धातुओं का प्रयोग लोक, वेद दोनों में ही किया जा सकता है। ध्यान रहे कि प्रत्यय का लुक् होने पर ‘न लुमताङ्गस्य’ सूत्र से प्रत्यय निमित्तक अङ्गकार्यों का निषेध हो जाता है। अतः यङ् प्रत्यय को निमित्त मानकर होने वाले कोई भी अङ्गकार्य यहाँ नहीं होंगे। इनके अलावा ये पाँच कार्य भी यङ्लुक में नहीं होते हैं - श्तिपा शपानुबन्धेन निर्दिष्टं यद् गणेन च। यत्रैकाज्ग्रहणं चैव पञ्चैतानि न यङ्लुकि ।। किन किन धातुओं के यङ्लुगन्तरूप बनायें ? १. यङन्त के ही समान ‘धातोरेकाचो हलादे: क्रियासमभिहारे यङ्’ सूत्र से क्रियासमभिहार अर्थ में हलादि एकाच् धातुओं के ही यङ्लुगन्त रूप बनाइये। २. यङन्त के ही समान ‘सूचिसूत्रिमूत्र्यटत्यर्त्यशूर्णोतीनां यङ् वक्तव्यम्’ इस वार्तिक से अनेकाच् धातुओं में से सूचि, सूत्रि, मूत्रि, धातुओं के तथा अजादि धातुओं में से अट्, ऋ, अश्, ऊर्गु, इन धातुओं के भी यङ्लुगन्त रूप बनाइये। . ३. जिन वकारान्त धातुओं के अन्तिम व्’ के पूर्व में ‘र’ है, जैसे - धुर्वा, तु, थुत्, दुई, मू, पूर्व, ख, ग, च, पर्व, भ, मर्व, श, ष, आदि में, उनके ‘व्’ का राल्लोप:’ सूत्र से लोप हो जाता है। ऐसे वकारान्त धातुओं के यङ्लुगन्त रूप बनाये जाते हैं। ४६६ अष्टाध्यायी सहजबोध भाग - २ ४. स्रिव्, म, धातुओं के यङ्लुगन्त रूप बनाये जाते हैं। ५. शेष वकारान्त धातुओं के यङ्लुगन्त रूप नहीं बनाये जाते। ६. यकारान्त मव्य्’ धातु के यङ्लुगन्त रूप नहीं बनाये जाते। शेष यकारान्त धातुओं के यङ्लुगन्त रूप बनाये जा सकते हैं। यङ् और यङ्लुक में क्या अन्तर है ? १. विकरण का अन्तर - किसी भी धातु से जब हम सार्वधातुक लकारों के प्रत्यय लगाते हैं, तब कर्तरि शप्’ सूत्र से सारे धातुओं से ‘शप् विकरण’ ही लगाया जाता है। किन्तु ध्यान रहे कि यङ् का लुक् करके बने हुए यङ्लुगन्त धातुओं से कभी भी ‘शप् विकरण’ नहीं लगाया जाता। २. पद का अन्तर - यङन्त धातु ‘डित्’ हैं। अतः ‘अनुदात्तडित आत्मनेपदम्’ सूत्र से इनसे आत्मनेपद के प्रत्यय ही लगाये जाते हैं। किन्तु यङ्लुगन्त धातु अनुदात्तेत्, ङित्, स्वरितेत् तथा जित्, भिन्न हैं, अतः इनसे किसी भी लकार में शेषात् कर्तरि परस्मैपदम्’ सूत्र से कर्तृवाच्य में परस्मैपद के ही प्रत्यय लगेंगे, आत्मनेपद के नहीं। ३. द्वित्वविधि का अन्तर - यङ् प्रत्यय का लुक् हो जाने पर, धातुओं को द्वित्व करते समय हमें बहुत अधिक सावधानी रखना पड़ती है। यह सावधानी इस प्रकार है - एजन्त धातुओं को आदेच उपदेशेऽशिति’ सूत्र से होने वाला ‘आ’ अन्तादेश किसी प्रत्यय को निमित्त मानकर नहीं होता है, अतः यङ प्रत्यय का लुक् हो जाने के बाद भी सन्यङोः’ सूत्र से द्वित्व होने के पहिले एजन्त धातुओं को आत्व हो जायेगा। जैसे - ध्यै - ध्या ध्या ध्या / ग्लै - ग्ला ग्ला ग्ला छो - छा छा छा / म्लै - म्ला म्ला म्ला किन्तु यङ् प्रत्यय का लुक् हो जाने पर यङ् प्रत्यय को निमित्त मानकर होने वाले अन्य कोई भी अङ्गकार्य यहाँ नहीं होंगे। जैसे - __ यङ् प्रत्यय परे होने पर जिन जिन धातुओं को, जो जो अङ्गकार्य प्राप्त था, उसे करके ही हमने धातुओं को ‘सन्यडोः’ सूत्र से द्वित्व किया था, किन्तु यङ् का लुक् हो जाने पर ऐसा बिल्कुल भी नहीं करना है। यहाँ तो जो धातु जैसा है, उसे वैसा का वैसा ही द्वित्व कर देना है। जैसे - ‘दा’ धातु से यङ् प्रत्यय परे होने पर हमने ‘घुमास्थागापाजहातिसां हलि’ समस्त धातुओं के यङ्लुक् के रूप बनाने की विधि ४६७ सूत्र से ‘दा’ को ‘दी’ बनाकर, तब द्वित्व किया था - दा - दी - दी दी। किन्तु यङ् का लुक् हो जाने पर ऐसा नहीं करना है। यहाँ ‘दा’ को बिना कोई कार्य किये, सीधे द्वित्व कर देना है। जैसे - दा - दा दा।। ‘कृ’ धातु को हमने पहिले रीङ् ऋत:’ सूत्र से ‘क्री’ बनाकर तब द्वित्व किया था। कृ - क्री की। किन्तु यङ् का लुक् हो जाने पर ऐसा नहीं करना है। यहाँ ‘कृ’ को बिना कोई कार्य किये सीधे द्वित्व कर देना है। जैसे - कृ - कृ कृ। तृ’ धातु को हमने पहिले ‘ऋत इद् धातोः’ सूत्र से तथा ‘हलि च’ सूत्र से ‘तीर्’ बनाकर तब द्वित्व किया था। किन्तु यङ् का लुक् हो जाने पर ऐसा नहीं करना है। यहाँ तृ’ को बिना कोई कार्य किये सीधे द्वित्व कर देना है। जैसे - तृ - तृ तूं। ‘शी’ धातु को हमने पहिले ‘अयङ् यि क्डिति’ से ‘शय’ बनाकर तब द्वित्व किया था। किन्तु यङ् का लुक् हो जाने पर ऐसा नहीं करना है। यहाँ ‘शी’ को बिना कोई कार्य किये सीधे द्वित्व कर देना है। जैसे - शी - शी शी। यङ् प्रत्यय परे होने पर हमने ग्रह, ज्या, व्यध्, व्यच्, व्रश्च्, प्रच्छ्, भ्रस्ज्, स्वप्, स्यम्, व्येञ्, इन धातुओं को हमने, पहिले सम्प्रसारण करके तब द्वित्व किया था। किन्तु यङ् का लुक हो जाने पर ऐसा नहीं करना है। यहाँ इन धातुओं को बिना कोई कार्य किये सीधे द्वित्व कर देना है। जैसे - ज्या - ज्या ज्या व्यध् - व्यध् व्यध् व्यच व्यच् व्यच स्यम् स्यम् स्यम् व्येञ् - व्या व्या स्वप् - स्वप् स्वप् ग्रह् - ग्रह ग्रह व्रश्च् - व्रश्च् व्रश्च प्रच्छ - प्रच्छ प्रच्छ भ्रज्ज् - भ्रज्ज् भ्रज्ज् आदि। ४. अनिदित् धातुओं को हमने पहिले नलोप करके तब द्वित्व किया था। किन्तु यहाँ ऐसा नहीं करना है। यहाँ ‘अनिदित्’ धातुओं को बिना नलोप किये सीधे द्वित्व कर देना है। जैसे - मन्थ् - मन्थ् मन्थ् चञ्च् - चञ्च् चञ्च तञ्च तञ्च् तञ्च त्वञ्च् - त्वञ्च त्वञ्च श्रम्भ श्रम्भ श्रम्भ शंस् शंस् स्रंभ संभ् रञ्ज् - रऽ रज् आदि। शंस् संभ [[४६८]] he इसी प्रकार अन्य सारे धातुओं में भी, किसी भी प्रकार का, कोई भी परिवर्तन किये बिना, उन्हें ‘सन्यडोः’ सूत्र से धातु को ज्यों का त्यों द्वित्व कर देना चाहिये। जैसे ला - ला ला वा - वा वा जि - जि जि नी - नी नी
- हृ हृ दृ - शृ - शृ शृ पठ् - पठ् पठ् वद् वद् __ हमने जाना कि - यङ्लुक में, एजन्त धातुओं को ‘आ’ बनाकर द्वित्व करना चाहिये किन्तु अन्य सारे धातु, जैसे हैं, उन्हें वैसा का वैसा ही द्वित्व कर देना चाहिये। यह यङ्लुगन्त धातुओं को द्वित्व करने की विधि पूर्ण हुई। ४. सामान्य अभ्यासकार्य का अन्तर - द्वित्व होने के बाद सामान्य अभ्यासकार्य ठीक उसी प्रकार होंगे, जैसे कि यङन्त प्रकरण में बतलाये गये हैं। किन्तु - __ यङ् परे होने पर कुङ् शब्दे धातु के अभ्यास को जो न कवतेर्यडि’ सूत्र से चुत्व का निषेध करके ‘कोकूयते’ बनाया है, वह चुत्वनिषेध यहाँ नहीं लगेगा और चुत्व होकर यहाँ कु - कु कू - चु कू - चोकवीति ही बनेगा। ५. विशेष अभ्यासकार्य का अन्तर - यङ्लुक परे होने पर धातुओं के अभ्यासों को, वे सारे विशेष अभ्यासकार्य होते हैं, जो कि यङ् प्रत्यय परे होने पर बतलाये गये हैं। केवल ऋकारान्त तथा ऋदुपध धातुओं में एक कार्य अधिक होता है, जो कि यङ् प्रत्यय परे होने पर नहीं होता। वह इस प्रकार है - ऋदुपध तथा ऋकारान्त धातुओं के अभ्यास के अन्तिम हस्व ‘अ’ को रुक्, रिक् का आगम __ रुग्रिकौ च लुकि - ऋदुपध धातुओं के अभ्यास के अन्तिम ह्रस्व ‘अ’ को रिक् = रि, रुक् = र् का आगम होता है, यङ् तथा यङ्लुक परे होने पर। . इन धातुओं को रीगृदुपधस्य सूत्र से रीक् = री का आगम करना हम पढ़ ही चुके हैं। इस प्रकार ऋदुपध धातुओं के अभ्यास के अन्त के ह्रस्व ‘अ’ समस्त धातुओं के यङ्लुक् के रूप बनाने की विधि ४६९ नृत् नरीनृत् नरिनृत् वरिवृध् शरिशृध् चरिकृष् मर्मष् को तीन आगम होते हैं - रीक, रिक्, रुक् । इन्हें इस प्रकार कीजिये - ऋदुपध धातु - धातु द्वित्वादि करके रीक् आगम रिक आगम रुक् आगम ननृत् नर्तृत् ततृप् तरीतृप् तरितृप् तर्तृप् वृध ववृध वरीवृध् ववृध् शृध शशृध शरीशृध् शYध् चकृष् चरीकृष् चकृष् ममृष् मरीमृष् मरिमृष् व वृत् वरीवृत् वरिवृत् वर्वृत् विशेष ऋदुपध कृप् धातु - कृपो रो ल: - कृप् धातु के र् को ल् आदेश होता है। अतः कृप् धातु को द्वित्व तथा अभ्यास कार्य करके अभ्यास को रीक, रिक, रुक् का आगम करके चरीकृप्, चरिकृप्, चर्कप् बन जाने के बाद ‘कृपो रो ल:’ सूत्र से र, ऋ दोनों को ल् बनाइये - क कृप् च कृप् चरीकृप् चलीक्लप् क कृप् च कृप चरिकृप् चलिक्लप कृप् क कृप् __ च कृप् __चर्कप् चल्क्ल प् ऋतश्च - ऋकारान्त धातुओं के अभ्यास के अन्तिम ह्रस्व ‘अ’ को रीक् = री, रिक् = रि, रुक् = र् का आगम होता है, यङ् प्रत्यय परे होने पर तथा यङ्लुक परे होने पर। ह्रस्व ऋकारान्त धातु - कृ चकृ चरिकृ भृ बभृ __ बरी बरिभृ ह जह जरीह जरिह यङ् का लुक् होने पर, इसी प्रकार धातुओं को द्वित्व, सामान्य अभ्यासकार्य तथा विशेष अभ्यासकार्य करके यङ्लुगन्त धातु तैयार कर लीजिये और ‘सनाद्यन्ता धातवः’ सूत्र से उनकी धातुसंज्ञा कर लीजिये। यह सारे धातुओं से यङ्लुगन्त धातु बनाने की विधि पूर्ण हुई। कृप् कृप चरीकृ जह [[४७०]] उभे अभ्यस्तम् - द्वित्व कर देने के बाद, जो एक के स्थान पर दो धातु दिखने लगते हैं, उन दोनों का सम्मिलित नाम अभ्यस्त होता है। जैसे - दा - दा में, दोनों ‘दा’ का सम्मिलित नाम अभ्यस्त है। इस प्रकार इन सारे यङ्लुगन्त धातुओं का नाम ‘अभ्यस्त’ है, यह जानिये। विस्तार के भय से हम यहाँ इन यङ्लुगन्त धातुओं के सार्वधातुक लकारों के अर्थात् लट्, लोट्, लङ्, विधिलिङ् लकारों के रूप ही बनायेंगे। शेष लकारों के रूप अङ्गकार्य पढ़कर तथा तत् तत् लकारों के रूप बनाने की विधि पढकर बनाये जा सकते हैं। विशेष - इन यङ्लुगन्त धातुओं के सार्वधातुक लकारों के अर्थात् लट्, लोट, लङ्, विधिलिङ् लकारों के रूप बनाने के लिये द्वितीय गण समूह के लट्, लोट, लङ्, विधिलिङ् लकारों के प्रत्ययों का ही उपयोग करें। अदभ्यस्तात् - ध्यान रहे कि यङ्लुगन्त धातुओं का नाम अभ्यस्त है। अभ्यस्त धातुओं से परे आने वाले - अन्ति की जगह अति / अन्तु की जगह अतु / तथा अन् की जगह उ: / प्रत्यय लगते हैं। यडो वा - यङ् से परे आने वाले हलादि पित् सार्वधातुक प्रत्ययों को, अर्थात् ति, सि, मि, त्, स्, तु, इन छह प्रत्ययों को विकल्प से ‘ईट = ई’ का आगम होता है। ईट का आगम होकर ये प्रत्यय, ति से ईति / सि से ईषि / मि से ईमि / त् से ईत् / स् से ई: / तु से ईतु, भी बन जाते हैं। अतः अब इन सूत्रों से यङ्लुगन्त धातुओं में लगाने के लिये ये प्रत्यय इस प्रकार तैयार हुए - यङ्लुगन्त धातुओं के लट् लकार के परस्मैपदी प्रत्यय एकवचन द्विवचन बहुवचन ति, ईति अति सि, ईषि मि, ईमि मः यङ्लुगन्त धातुओं के लोट् लकार के परस्मैपदी प्रत्यय तु, ईतु / तात् ताम् अतु हि / तात् आनि आव bo babs FF bin bio तम् त आम समस्त धातुओं के यङ्लुक् के रूप बनाने की विधि ४७१ तम् __ यात् यः म.पु. या: यातम् याव यङ्लुगन्त धातुओं के लङ् लकार के परस्मैपदी प्रत्यय प्र. पु. त्, ईत् ताम् म. पु. स्(ः), ई: त उ. पु. अम् यङ्लुगन्त धातुओं के विधिलिङ् लकार के परस्मैपदी प्रत्यय याताम् - यात उ.पु. याम् याम __ ध्यान से देखिये कि इन सार्वधातुक प्रत्ययों में, कुछ प्रत्यय तिरछे, मोटे तथा बड़े अक्षरों में लिखे गये हैं। ऐसे प्रत्ययों का नाम पित् सार्वधातुक प्रत्यय है, यह जानिये। इन पित् सार्वधातुक प्रत्ययों में से भी जो प्रत्यय हल से प्रारम्भ हो रहे हैं, वे हलादि पित् सार्वधातुक प्रत्यय हैं तथा जो अच् से प्रारम्भ हो रहे हैं वे अजादि पित् सार्वधातुक प्रत्यय हैं, यह जानिये। __ जो प्रत्यय सीधे, पतले तथा छोटे अक्षरों में लिखे गये हैं, उनका नाम अपित् सार्वधातुक प्रत्यय है। इनमें से भी जो प्रत्यय हल् से प्रारम्भ हो रहे हैं वे हलादि अपित् सार्वधातुक प्रत्यय हैं, तथा जो अच् से प्रारम्भ हो रहे हैं वे अजादि अपित् सार्वधातुक प्रत्यय हैं। __ सार्वधातुकमपित् - सारे अपित् सार्वधातुक प्रत्यय ङित्वत् होते हैं। अर्थात् डित् न होते हुए भी डित् जैसे मान लिये जाते हैं। अतः इनके परे होने पर वे सारे कार्य किये जाते हैं, जो कार्य ङित् प्रत्यय परे होने पर किये जाते हैं। यह ध्यान में रखकर ही किसी भी धातु में इन प्रत्ययों को जोड़ना चाहिये। अतः इन प्रत्ययों को सही पहिचानना ही धातुरूप बनाने की क्रिया का सबसे आवश्यक कार्य है। इन प्रत्ययों को इस प्रकार पहिचानिये - हलादि पित् सार्वधातुक प्रत्यय - ति, सि, मि / तु / त्, स्। अजादि पित् सार्वधातुक प्रत्यय - ईति, ईषि, ईमि / ईतु, आनि, आव, आम / ईत्, ई., अम्। हलादि अपित् सार्वधातुक प्रत्यय - त:, थः, थ, वः, मः / हि, तात्, ताम्, तात्, [[४७२]] (डित् प्रत्यय) तम्, त / ताम्, तम्, त, व, म / यात्, याताम्, यु:, याः, यातम्, यात, याम्, याव, याम । अजादि अपित् सार्वधातुक प्रत्यय - अति / अतु / उ:। (ङित् प्रत्यय) __ धातु से परे ज्योंही कोई प्रत्यय आये तो आप तत्काल विचार कीजिये कि वह प्रत्यय इनमें से किस वर्ग का है ? वह प्रत्यय ‘पित् सार्वधातुक’ है या अपित् सार्वधातुक’ है। यदि वह पित् सार्वधातुक प्रत्यय है, तो पुनः विचार कीजिये कि वह अजादि पित् सार्वधातुक प्रत्यय है, अथवा हलादि पित् सार्वधातुक प्रत्यय है। यदि वह अपित् सार्वधातुक प्रत्यय है, तो पुनः विचार कीजिये कि वह ‘अजादि अपित् सार्वधातुक’ है, अथवा हलादि अपित् सार्वधातुक’ है। __ इस प्रकार प्रत्यय की सही पहिचान करके ही आप धातु + प्रत्यय को जोड़ें, तभी धातुरूप बनाते बनेंगे। धातु + प्रत्यय को जोड़ने का काम भी दो हिस्सों में होता है। १. पहिले अङ्गकार्य करना। २. अङ्गकार्य करने के बाद ही सन्धिकार्य करना। यस्मात् प्रत्ययविधिस्तदादि प्रत्ययेऽङ्गम् - जिससे भी प्रत्यय का विधान किया जाता है, उस प्रत्यय के पूर्व में जो जो कुछ भी होता है, वह पूरा का पूरा उस प्रत्यय का अङ्ग कहलाता है। जैसे - नेनी + ति में ‘नेनी’ अङ्ग है। अङ्ग पर प्रत्यय का जो प्रभाव पड़ता है, उसका नाम अङ्गकार्य होता है। जैसे - नेनी + ति में, ति प्रत्यय को देखकर नेनी को गुण होकर नेने हो जाता है - नेनी + ति = नेने + ति। यह गुण होना अङ्गकार्य है। लेलिख् + ति में, ति प्रत्यय को देखकर लेलिख को गुण होता है - लेलेख् + ति। यह गुण होना अङ्गकार्य है। चकृ + ति में, ति प्रत्यय को देखकर चर्बी को गुण होता है - चकृ + ति = चर्कर् + ति। यह गुण होना अङ्गकार्य है। नेनी + त: में, त: प्रत्यय को देखकर नेनी को गुण नहीं होता - नेनी + त: = ने नीतः। यह गुण न होना भी अङ्गकार्य है। समस्त धातुओं के यङ्लुक् के रूप बनाने की विधि ४७३ चकृ + त: = चर्तृत: में, त: प्रत्यय को देखकर चर्ब को गुण नहीं होता। यह गुण न होना भी अङ्गकार्य है। हमने अङ्गकार्यों को प्रथम खण्ड में अङ्गकार्य वाले पाठ में बतलाया है। उन्हें वहीं देखें । यहाँ भी संक्षेप में सूत्रनिर्देश करते चलेंगे। ध्यान रहे कि अङ्गकार्य करने के बाद ही सन्धिकार्य करें। सन्धियों को सन्धि के पाठ में देखें। धातुओं को द्वित्व तथा अभ्यासादिकार्य कर चुकने के बाद ,जो यङ्लुगन्त धातु हमने तैयार किये हैं, उनमें अब लट्, लोट, लङ्, विधिलिङ् लकारों के प्रत्ययों को जोड़ें। यह कार्य हम इस क्रम से करें। अजन्त यङ्लुगन्त धातुओं के रूप बनाने की विधि १. आकारान्त तथा एजन्त यङ्लुगन्त धातुओं के __रूप बनाने की विधि वा - वावा / घ्यै - ध्या - दाध्या / ग्लै - ग्ला - जाग्ला आदि। १. हलादि पित् सार्वधातुक प्रत्यय परे होने पर, इन्हें कोई अङ्गकार्य मत कीजिये, केवल धातु + प्रत्यय को जोड़ दीजिये। वा - वावा + ति = वावाति। २. अजादि पित् सार्वधातुक प्रत्यय परे होने पर भी, इन्हें कोई अङ्गकार्य मत कीजिये। धातु + प्रत्यय ‘आद्गुणः’ सूत्र से गुण करके जोड़ दीजिये। वा - वावा + ईति = ‘आद्गुण:’ सूत्र से गुण करके वावेति । २. हलादि अपित् सार्वधातुक प्रत्यय अर्थात् डित् प्रत्यय परे होने पर ‘ई हल्यघोः’ सूत्र से इनके अन्तिम ‘आ’ को ‘ई’ बना दीजिये। वा - वावा + त: - वावी + त: = वावीत:। ३. अजादि अपित् सार्वधातुक प्रत्यय अर्थात् डित् प्रत्यय परे होने पर ‘श्नाभ्यस्तयोरात:’ सूत्र से इनके ‘आ’ का लोप कर दीजिये। वा - वावा + अति - वाव् + अति = वावति। इनके पूरे रूप इस प्रकार बने लट् लकार परस्मैपद वावाति / वावेति वावीत: वावति वावासि / वावेषि वावीथः वावामि / वावेमि वावीवः वावीमः من من من Ep वावीथ ᳕ من من من POP) F लोट् लकार परस्मैपद वावातु / वावेतु वावीताम् वावतु वावीतात् वावीहि / वावीतात् वावीतम् वावीत वावानि वावाव वावाम लङ् लकार परस्मैपद अवावात् / अवावेत् अवावीताम् अवावु: अवावा: / अवावे: अवावीतम् अवावीत अवावाम् अवावीव अवावीम विधिलिङ् लकार परस्मैपद वावीयात् वावीयाताम् वावीयु: वावीया: वावीयातम् वावीयात वावीयाम् वावीयाव वावायाम इसी प्रकार सारे आकारान्त तथा एजन्त यङ्लुगन्त धातुओं से ध्यै - ध्या - दाध्या - दाध्याति, दाध्येति / पा - पा - पापाति, पापेति आदि बनाइये । २. इकारान्त, ईकारान्त यङ्लुगन्त धातुओं के रूप बनाने की विधि जैसे - नी - नेनी / भी - बेभी / जि - जेजि / चि - चेचि आदि। १. हलादि पित् सार्वधातुक प्रत्यय परे होने पर ‘इ’, ‘ई’ को सार्वधातुकार्धधातुकयोः से गुण कीजिये। नी - नेनी + ति / नेने + ति = नेनेति २. अजादि पित् सार्वधातुक प्रत्यय परे होने पर सार्वधातुकार्धधातुकयोः से गुण कीजिये। नी - नेनी + ईति - नेने + ईति / अब एचोऽयवायावः सूत्र से अय् आदेश कीजिये। नेनय् + ईति = ने नयीति । ३. हलादि अपित् सार्वधातुक प्रत्यय अर्थात् ङित् प्रत्यय परे होने पर कुछ मत कीजिये। नी - नेनी + त: = ने नीतः। अब अजादि अपित् सार्वधातुक प्रत्ययों का विचार खण्डों में करें - १. उस्’ प्रत्यय भी यद्यपि अजादि अपित् सार्वधातुक प्रत्यय है, तथापि इसके परे होने पर ‘जुसि च’ सूत्र से गुण कीजिये। अनेनी + उ: - गुण करके अनेने + उ: - अनेनयुः। समस्त धातुओं के यङ्लुक के रूप बनाने की विधि ४७५ مر مر من २. शेष अजादि अपित् सार्वधातुक प्रत्यय परे होने पर देखें, कि यदि इकारान्त, ईकारान्त धातुओं के अन्तिम ‘इ’ ‘ई’ के पूर्व में संयोग नहीं है, जैसे - नी - नेनी में, तब इस असंयोगपूर्व अन्तिम ‘इ’ ‘ई’ को अजादि अपित् सार्वधातुक प्रत्यय परे होने पर, ‘एरनेकाचोऽसंयोगपूर्वस्य’ सूत्र से यण् कर दीजिये। यथा - नी - नेनी + अति - यण् करके - नेन्य् + अति = नेन्यति । २. यदि इकारान्त, ईकारान्त धातुओं के अन्तिम ‘इ’ ‘ई’ के पूर्व में संयोग है, जैसे - चेक्री में, तब इस संयोगपूर्व अन्तिम ‘इ’ ‘ई’ को अजादि अपित् सार्वधातुक प्रत्यय परे होने पर, ‘अचि श्नुधातुभ्रुवां वोरियडौ’ सूत्र से इयङ् कर दीजिये। यथा - क्री - चेक्री + अति - इयङ् करके -चेक्रिय् + अति = चेक्रियति । असंयोगपूर्व इकारान्त, ईकारान्त धातुओं के पूरे रूप इस प्रकार बने __लट् लकार परस्मैपद नेनेति / नेनयीति नेनीत: नेन्यति नेनेषि / ने नयीषि नेनीथः नेनीथ नेनेमि / ने नयीमि नेनीवः नेनीमः __ लङ् लकार परस्मैपद अनेनेत् / अनेनयीत् अने नीताम् अनेनयु: अनेनेः / अनेनयी: अनेनीतम् अने नीत अनेनयम् अनेनीव अनेनीम लोट् लकार परस्मैपद नेनेतु / नेनयीतु नेनीताम् ने नीतात् ने नीहि / नेनीतात् नेनीतम् नेनीत नेनयानि ने नयाव नेनयाम विधिलिङ् लकार परस्मैपद नेनीयात् नेनीयाताम् नेनीयुः नेनीयातम् नेनीयात नेनीयाम् नेनीयाव नेनीयाम इसी प्रकार सारे असंयोगपूर्व इकारान्त, ईकारान्त यङ्लुगन्त धातुओं के रूप बनाइये। من من فن नेन्यतु من من مر مر في नेनीया: [[४७६]] مر مر من من هي في prFFFFF पु. ذ من संयोगपूर्व इकारान्त, ईकारान्त धातुओं के पूरे रूप इस प्रकार बने लट् लकार परस्मैपद जेद्वेति / जेह्रयीति जेह्रीत: जेह्रियति जेद्वेषि / जेह्रयीषि जेह्रीथः जेहीथ जेलॅमि / जेह्रयीमि जेह्रीवः जेह्रीमः लङ् लकार परस्मैपद अजेहेत् / अजेयीत् अजेह्रीताम् अजेयुः अजेहे: / अजेह्रयी: अजेह्रीतम् अजेह्रीत अजेह्रयम् अजेह्रीव अजेह्रीम लोट् लकार परस्मैपद जेहेतु / जेह्रयीतु जेह्रीताम् जेह्रियतु जेहीतात् । जेह्रीहि / जेह्रीतात् जेह्रीतम् जेह्रीत जेह्रयाणि जेह्रयाव जेह्रयाम विधिलिङ् लकार परस्मैपद जेह्रीयात् जेह्रीयाताम् जेह्रीयुः जेह्रीयाः जेह्रीयातम् जेह्रीयात जेहीयाम् जेहीयाव जेह्रीयाम ३. उकारान्त, ऊकारान्त यङ्लुगन्त धातुओं के रूप बनाने की विधि जैसे - भू - बोभू / पू - पोपू / लू - लोलू आदि। १. हलादि पित् सार्वधातुक प्रत्यय परे होने पर सार्वधातुकार्धधातुकयोः से गुण कीजिये। भू - बोभू + ति = बोभोति। २. अजादि पित् सार्वधातुक प्रत्यय परे होने पर सार्वधातुकार्धधातुकयोः से गुण कीजिये - बोभू + ईति - बोभो + ईति / अब एचोऽयवायावः सूत्र से अवादेश कीजिये। बोभव् + ईति = बोभवीति । ३. हलादि अपित् सार्वधातुक प्रत्यय परे होने पर कुछ मत कीजिये । बोभू + त: = बोभूत:। ४. उस्’ प्रत्यय यद्यपि अजादि अपित् सार्वधातुक प्रत्यय है, तथापि इसके من في فنसमस्त धातुओं के यङ्लुक् के रूप बनाने की विधि ४७७ प्र.पु. बोभूथ उ.पु. म.पु. Fm. । परे होने पर जुसि च’ सूत्र से गुण कीजिये। अबोभू + उ: - गुण करके - अबोभो + उ: / अवादेश करके - अबोभवुः । ५. ‘उस्’ के अलावा शेष अजादि अपित् सार्वधातुक प्रत्यय परे होने पर हुश्नुवोः सार्वधातुके सूत्र से उ, ऊ को उवङ् कर दीजिये। बोभू + अति - उवङ् आदेश करके - बोभुव् + अति = बोभुवति। पूरे रूप इस प्रकार बने - लट् लकार परस्मैपद बोभोति / बोभवीति बोभूत: बोभुवति म.पु. बोभोषि / बोभवीषि बोभूथः बोभोमि / बोभवीमि बोभूवः बोभूमः लङ् लकार परस्मैपद अबोभोत् / अबोभवीत् अबोभूताम् अबोभवुः अबोभोः / अबोभवी: अबोभूतम् अबोभूत अबोभवम् अबोभूव अबोभूम __लोट् लकार परस्मैपद बोभोतु / बोभवीतु बोभूताम् बोभूतात् बोभूहि / बोभूतात् बोभूतम् । उ.पु. बोभवानि बोभवाव बोभवाम विधिलिङ् लकार परस्मैपद बोभूयात् बोभूयाताम् बोभुयुः बोभूया: बोभूयातम् बोभूयात उ.पु. बोभूयाम् बोभूयाव बोभूयाम इसी प्रकार सारे उकारान्त तथा ऊकारान्त यङ्लुगन्त धातुओं के रूप बनाइये। ४. ह्रस्व ऋकारान्त, यङ्लुगन्त धातुओं के रूप बनाने की विधि जैसे - कृ - चढू / ह – जह / भृ - बभृ आदि। १. हलादि पित् प्रत्यय परे होने पर सार्वधातुकार्धधातुकयोः से गुण कीजिये। कृ - चर्क - चढू + ति = चर्ति। २. अजादि पित् प्रत्यय परे होने पर सार्वधातुकार्धधातुकयोः से गुरु बोभुवतु म.प्र. बोभूत मातानि म.पु. [[४७८]] مر مر مر FFFFEN कीजिये। कृ - चर्क - चकृ + ईति = चर्करीति। ३. हलादि अपित् प्रत्यय परे होने पर कोई अङ्गकार्य मत कीजिये। कृ - चर्बी - चर्बी + त: = चकृत:।। ४. उस् प्रत्यय यद्यपि अजादि अपित् सार्वधातुक प्रत्यय अर्थात् डित् प्रत्यय है, तथापि इसके परे होने पर जुसि च सूत्र से गुण कीजिये। अचकृ + उ: - गुण करके अचर्कर् + उ: - अचर्करु:। ५. उस् के अलावा शेष अजादि अपित् प्रत्यय परे होने पर इको यणचि सूत्र से ऋ, ऋ को यण् कर दीजिये। कृ - चर्क - चकृ + अति = यण् करके चक्रति । पूरे रूप इस प्रकार बने - लट् लकार परस्मैपद चर्कर्ति / चर्करीति चर्कत: चक्रति चर्कर्षि / चर्करीषि चर्कथः चर्कथ चर्कर्मि / चर्करीमि चर्कवः चर्कमः लङ लकार परस्मैपद अचर्कः / अचर्करीत् अचकृताम् अचर्करु: अचर्कः / अचर्करी: अचकृतम् अचकृत अचर्करम् अचकँव अचर्कम लोट् लकार परस्मैपद चर्कर्तु / चर्करीतु चर्कताम् चक्रतु चकृतात् चर्केहि / चकृतात् चर्तृतम् चकृत चर्कराणि चर्कराव चर्कराम विधिलिङ् लकार परस्मैपद | चकृयात् चकृयाताम् चर्कयु: चकृयातम् चकृयात चर्कयाम् चकृयाव चर्कयाम इसी प्रकार सारे ह्रस्व ऋकारान्त यङ्लुगन्त धातुओं के रूप बनाइये। दीर्घ ऋकारान्त, धातुओं के दो वर्ग बनाइये - १. ऐसे दीर्घ ऋकारान्त, धातु जिनके ‘ऋ’ के पूर्व में ओष्ठ्य व्यञ्जन فر من مر من चकृया: समस्त धातुओं के यङ्लुक् के रूप बनाने की विधि ४७९ . न हो। जैसे - जैसे तृ - तातृ / जृ - जाजृ / शृ - शाशू आदि। . २. ऐसे दीर्घ ऋकारान्त, धातु जिनके ‘ऋ’ के पूर्व में ओष्ठ्य व्यञ्जन हो। जैसे - पृ - पापू / पृ - वावृ आदि। ५. जिनके ‘ऋ’ के पूर्व में ओष्ठ्य व्यञ्जन न हो, ऐसे दीर्घ ऋकारान्त, यङ्लुगन्त धातुओं के रूप बनाने की विधि जैसे तृ - तातृ / जृ - जाजृ / शृ - शा” आदि । - १. हलादि पित् प्रत्यय परे होने पर सार्वधातुकार्धधातुकयोः से गुण कीजिये। तृ - तातृ + ति - तातर् + ति = तातर्ति। २. अजादि पित् प्रत्यय परे होने पर सार्वधातुकार्धधातुकयोः से गुण कीजिये। तृ - तातृ + ईति - तातर् + ईति = तातरीति । ३. हलादि अपित् प्रत्यय परे होने पर ऋत इद् धातोः सूत्र से, उरण् रपर: सूत्र की सहायता से ‘इर्’ बनाइये। तृ - तातृ + त: - तातिर् + त:। उसके बाद हलि च सूत्र से उसके इक् को दीर्घ कीजिये। तातिर् + त: = तातीतः । ४. उस् प्रत्यय यद्यपि अजादि अपित् सार्वधातुक प्रत्यय है, तथापि इसके परे होने पर जुसि च सूत्र से गुण कीजिये। अतातृ + उ: - गुण करके अतातर् + उ: = अतातरु:। ५. उस् के अलावा शेष अजादि अपित् प्रत्यय परे होने पर ऋत इद् धातोः सूत्र से उरण रपर: सूत्र की सहायता से, इर् बनाइये। परन्तु आगे हल् न होने के कारण दीर्घ मत कीजिये। तृ - तातिर् + अति = तातिरति। पूरे रूप इस प्रकार बने - लट् लकार परस्मैपद तातर्ति / तातरीति तातीर्त: तातिरति तातर्षि / तातरीषि तातीर्थः तातीर्थ तातर्मि / तातरीमि तातीर्वः तातीर्मः लङ् लकार परस्मैपद अतात: / अतातरीत् अतातीर्ताम् अतातरु: अतात: / अतातरी: अतातीर्तम् अतातीर्त अतातरम् अतातीर्व अतातीर्म مر مر في p FD مر مر من [[४८०]] P) तातराणि مي مي مي مم तातीर्याम् अतात: - अतातृ + स् - यहाँ सार्वधातुकार्धधातुकयोः से गुण होकर अतातर् + स् - बनने पर ‘हल्याब्भ्यो दीर्घात् सुतिस्यपृक्तं हल्’ सूत्र से स् का लोप करके तथा र् को रुत्व विसर्ग करके अतात: बनता है। __ लोट् लकार परस्मैपद प्र.पु. तातर्तु / तातरीतु तातीर्ताम् तातिरतु तातीर्तात् तातीर्हि / तातीर्तात् तातीर्तम् तातीर्त तातराव तात.राम विधिलिङ् लकार परस्मैपद तातीर्यात् तातीर्याताम् तातीर्युः तातीर्या: तातीर्यातम् तातीर्यात तातीर्याव तातीर्याम ६. जिनके ‘ऋ’ के पूर्व में ओष्ठ्य व्यञ्जन हो, ऐसे दीर्घ ऋकारान्त, यङ्लुगन्त धातुओं के रूप बनाने की विधि जैसे पृ - पापृ / पृ - वावृ आदि। १. हलादि पित् प्रत्यय परे होने पर ‘सार्वधातुकार्धधातुकयोः’ सूत्र से पूर्ववत् गुण कीजिये। पृ - पापृ + ति - पापर् + ति = पापति । २. अजादि पित् प्रत्यय परे होने पर सार्वधातुकार्धधातुकयो: से पूर्ववत् गुण कीजिये। पृ - पापृ + ईति - पापर् + ईति = पापरीति। ३. यदि ऋ के पूर्व में कोई ओष्ठ्य व्यञ्जन हो, तब हलादि अपित् प्रत्यय परे होने पर ऋ’ को उदोष्ठ्यपूर्वस्य सूत्र से उरण रपर: सूत्र की सूत्र की सहायता से उर्’ बनाइये। उसके बाद हलि च सूत्र से उसके इक् को दीर्घ कीजिये। यथा - पृ - पापृ + त: = पापूर्त: । वृ - वावृ + त: = वावूर्तः । ४. उस् के अलावा शेष अजादि अपित् प्रत्यय परे होने पर ‘ऋ’ को उदोष्ठ्यपूर्वस्य सूत्र से उरण रपर: सूत्र की सूत्र की सहायता से उर्’ बनाइये, दीर्घ मत कीजिये। पृ - पापृ + अति = पापुरति / वृ - वावृ + अति = वावुरति । ५. उस् प्रत्यय यद्यपि अजादि अपित् सार्वधातुक प्रत्यय है, तथापि इसके परे होने पर जुसि च सूत्र से गुण कीजिये। अपापृ + उ: - गुण करके अपापर् + उ: = अपापरु: । पूरे रूप इस प्रकार बने - समस्त धातुओं के यङ्लुक के रूप बनाने की विधि ४८१ . من مر مر م) من عن लट् लकार परस्मैपद पापर्ति / पापरीति पापूर्त: पापुरति पापर्षि / पापरीषि पापूर्थः पापूर्थ पापर्मि / पापरीमि पापूर्वः पापूर्मः लङ् लकार परस्मैपद अपाप: / अपापरीत् अपापूर्ताम् अपापरु: अपाप: / अपापरी: अपापूर्तम् अपापूर्त अपापरम् अपापूर्व अपापूर्म लोट् लकार परस्मैपद पापर्तु / पापरीतु पापूर्ताम् पापुरतु पापूर्तात् पापूर्हि / पापूर्तात् पापूर्तम् पापूर्त पापराणि पापराव पापराम विधिलिङ् लकार परस्मैपद पापूर्यात् पापूर्याताम् पापूर्युः पापूर्या: पापूर्यातम् पापूर्यात पापूर्याम् पापूर्याव पापूर्याम इसी प्रकार सारे ऋकारान्त यङ्लुगन्त धातुओं के रूप बनाइये। यह सारे अजन्त यङ्लुगन्त धातुओं के रूप बनाने की विधि पूर्ण हुई। हलन्त यङ्लुगन्त धातुओं के रूप बनाने की विधि अब हम हलन्त धातुओं के इस प्रकार वर्ग बनाकर, इनके रूप बनायें अनिदित् धातु, इदुपध धातु, उदुपध धातु, ऋदुपध धातु, तथा शेष धातु । ध्यान रहे कि - १. धातु को बिना कोई अङ्गकार्य किये पहिले सीधे द्वित्व कर लें। २. द्वित्व करने के बाद अभ्यासकार्य तथा विशेष अभ्यासकार्य ठीक वैसे ही करें, जैसे यङन्त में किये थे। ३. अब ति. त:, अन्ति आदि प्रत्यय लगायें । इन प्रत्ययों की सही पहिचान करके ही आप अङ्गकार्य, सम्प्रसारण, नलोप आदि कार्य करें। ४. अन्त में, धातु + प्रत्यय को जोड़ें, अर्थात् सन्धि करें। مر مر من [[४८२]] ग्रह, ज्या, व्यध् यङ्लुगन्त धातुओं के रूप बनाने की विधि ग्रह् धातु - द्वित्वाभ्यासकार्य होकर - ग्रह् ग्रह् - जाग्रह् - जाग्रह + ति / प्रत्यय के ‘त’ को झषस्तथो?ऽध: सूत्र से ध बना दीजिये - जाग्रढ् + धि / प्रत्यय के ‘ध’ को ष्टुना ष्टुः सूत्र से ‘ढ’ बनाइये - जाग्रढ् + ढि / ढो ढे लोप: सूत्र से ढ् के बाद ढ् आने पर, पूर्व वाले ढ् का लोप करके - जाग्र + ढि / ठूलोपे पूर्वस्य दीर्घोऽण: सूत्र से लुप्त ढ् के पूर्व में स्थित अण् को दीर्घ करके जाग्राढि। __जाग्रह + त: -
- विशेष - यहाँ ‘ग्रहिज्यावयिव्यधिवष्टिविचतिवृश्चतिपृच्छतिभृज्जतीनां डिति च’ सूत्र से ग्रह्यादि धातुओं को सम्प्रसारण प्राप्त है। परन्तु ‘ग्रहिज्यावयिव्यधिवष्टिविचतिवृश्चतिपृच्छतिभृज्जतीनां डिति च’ इस सूत्र को देखिये। इसमें वष्टि, विचति, वृश्चति, पृच्छति, भृज्जति, इन धातुओं में ‘ति’ प्रत्यय लगा है। जिन धातुओं में ‘ति’ प्रत्यय लगा है, उन धातुओं को यङ्लुगन्त प्रकरण में कभी सम्प्रसारण नहीं होता। अतः यङ्लुगन्त प्रकरण में यह सम्प्रसारण, अपित् प्रत्यय परे होने पर, केवल ग्रह, ज्या, व्यध् इन तीन धातुओं को ही होता है, क्योंकि इनमें ‘ति’ प्रत्यय नहीं लगा है। परन्तु ध्यान रहे कि पित् प्रत्यय परे होने पर इन्हें भी नहीं होता। जाग्रह् + त: / ‘ग्रहिज्यावयिव्यधिवष्टिविचतिवृश्चतिपृच्छतिभृज्जतीनां डिति च’ सूत्र से र् को सम्प्रसारण कीजिये - जागृह् + त: / प्रत्यय के ‘त’ को झषस्तथो?ऽध: सूत्र से ध बना दीजिये - जागृढ् + ध: / प्रत्यय के ‘ध’ को ष्टुना ष्टुः सूत्र से ‘ढ’ बनाइये - जागृढ + ढ: / ढो ढे लोप: सूत्र से ढ् के बाद ढ् आने पर, पूर्व वाले ढ् का लोप करके - जागृ + ढः - जागृढः । __ अतः ग्रह् धातु के पूरे रूप इस प्रकार बने - प्र.पु. जाग्राढि / जाग्रहीति जागृढः जागृहति म.पु. जाघ्राक्षि / जाग्रहीषि जागृढः जागृढ उ.पु. जाग्रह्मि / जाग्रहीमि जागृह्वः जागृमः ज्या धातु - द्वित्वाभ्यासकार्य होकर - जाज्या समस्त धातुओं के यङ्लुक् के रूप बनाने की विधि ४८३ Fb. مر مر في مر مر مر जाज्या + ति - सम्प्रसारण किये बिना सन्धि करके - जाज्याति । जाज्या + ति - सम्प्रसारण किये बिना सन्धि करके - जाज्येति। जाज्या + त: - ग्रहिज्या. सूत्र से सम्प्रसारण करके - जाजि + त: / हल: सूत्र से ‘इ’ को दीर्घ करके - जाजीतः। अतः ज्या धातु के पूरे रूप इस प्रकार बने - जाज्याति / जाज्येति जाजीत: जाज्यति जाज्यासि / जाज्येषि जाजीथः जाजीथ जाज्यामि / जाज्येमि जाजीवः जाजीमः __ व्यध् - द्वित्वादि होकर वाव्यध् धातु - वाव्यद्धि / वाव्यधीति वाविद्ध: वाविधति वाव्यत्सि / वाव्यधीषि वाविद्ध: वाविद्ध वाव्यध्मि / वाव्यधीमि वाविध्वः वाविध्मः इनके अलावा किसी भी धातु को यङ्लुक में सम्प्रसारण नहीं होता। वय् धातु - लिट् लकार में ही वेञ् धातु को ही वेजो वयिः’ सूत्र से वय् आदेश होता है। अतः ‘वय्’ के रूप यहाँ मत बनाइये। अनिदित् धातु मन्थ् - द्वित्वादि करके मामन्थ् - मामन्थ् + ति - खरि च से चर्व सन्धि करके - मामन्त्ति / मामन्थ् + ईति - मामन्थीति। मामन्थ् + त: - अनिदितां हल उपधाया: क्डिति - अपित् प्रत्यय अर्थात् कित्, ङित् प्रत्यय परे होने पर, अनिदित् धातुओं की उपधा के ‘न्’ का लोप होता है। मामन्थ् + त: - मामथ् + त: / सन्धि करके - मामत्त: । इसके पूरे रूप इस प्रकार बने - मामन्त्ति / मामन्थीति मामत्तः मामथति मामन्त्सि / मामन्थीषि मामत्थः मामत्थ मामन्थ्मि / मामन्थीमि मामथ्वः मामथ्मः अब धातुपाठ के सारे अनिदित् धातु दे रहे हैं - पित् प्रत्यय परे होने पर इनकी उपधा के ‘न्’ का लोप नहीं होगा। अपित् प्रत्यय परे होने पर इनकी उपधा के ‘न्’ का लोप हो जायेगा - [[४८४]] धातु ‘न् का लोप किये बिना पित् प्रत्यय इनसे लगाइये सरीसृम्भ सृम्भ तरीतृम्प तृम्फ तृन्ह दृम्फ तरीतॄन्ह दरीदृम्फ् दश् दंदंश् वञ्चु स्कन्द् स्रंस् ध्वंस् भंस् कुञ्च क्रुञ्च वनीवञ्च् चनीस्कन्द् सनीस्रेस् दनीध्वंस् बनीभ्रंस् चोकुञ्च् चोक्रुञ्च् लोलुञ्च् ‘न्’ का लोप करके अपित् प्रत्यय इनसे लगाइये सरीसृभ् तरीतृफ् तरीतृह दरीदृफ् दंदश् वनीवच् चनीस्कद् सनीस्रस् दनीध्वस् बनीभ्रस् चोकुच् चोक्रुच् लोलुच् मोमुच् मोम्लुच् लोलुट लुञ्च मोमुञ्च् मुञ्च म्लुञ्च मोम्लुञ्च् लोलुण्ट लुण्ट ग्लुञ्च् जोग्लुच् जोग्लुञ्च तोतुम्प् तुम्प तोतुप् चोकुथ् कुन्थ् गुम्फ चोकुन्थ् जोगुम्फ् चोकुंस् तोत्रुम्प जोगुफ् कुंस् चोकुस् त्रुम्प् तुम्फ तोत्रुप् तोतुम्फ तोत्रुम्फ शोशुम्भ तोतुफ् तोत्रुफ तुम्फ शुम्भ शोशुभ् शुन्ध शोशुन्ध् शोशुध् समस्त धातुओं के यङ्लुक् के रूप बनाने की विधि ४८५ तञ्च श्रम्भ रारज् भञ्ज बन्ध श्रन्थ् मन्थ् मामन्थ् मामथ् चञ्च चाचञ्च चाचच तातञ्च तातच त्वञ्च तात्वञ्च तात्वच शाश्रम्भ शाश्रम शंस् शाशंस् शाशस् स्रंभ सास्रंभ सास्त्र र रार स्पन्द् पास्पन्द् पास्पद् भ्रंश् बाभ्रंश् बाभ्रश् दम्भ दादम्भ दादभ् बाभञ् बाभ बाबन्ध् बाबध शाश्रन्थ् शाश्रथ् ग्रन्थ् जाग्रन्थ् जाग्रथ् हम्म् जाहम्म् जाहम् स्व सास्व सास्वज सास सासज् ध्यान रहे कि पित् प्रत्यय परे होने पर नलोप न करके तथा अपित् प्रत्यय परे होने पर नलोप करके’ ही सन्धिकार्य किये जायें। अब हम वर्गीकरण करके रूप बनायें - लघु इगुपध धातु - अजादि पित् सार्वधातुक प्रत्यय परे होने पर - नाभ्यस्तस्याचि पिति सार्वधातुके - अजादि पित् सार्वधातुक प्रत्यय परे होने पर अभ्यस्तसंज्ञक अङ्ग की उपधा के लघु इक् को गुण नहीं होता है। यथा - लेलिख + ईति = लेलिखीति । मोमुद् + ईति = मोमुदीति। वरीवृष् + ईति = वरीवृषीति। हलादि पित् प्रत्यय परे होने पर - ‘पुगन्तलघूपधस्य च’ सूत्र से अङ्ग की उपधा को गुण कीजिये। उसके बाद ही सन्धिकार्य कीजिये। यथा - लिख - लेलिख + ति - लेलेख + ति = सञ्ज [[४८६]] लेलेक्ति । मुद् - मोमुद् + ति - मोमोद् + ति = मोमोत्ति । वृष् - वरीवृष् + ति - वरीवर्ष + ति = वरीवष्टि ।
- हलादि तथा अजादि अपित् प्रत्यय परे होने पर - ‘क्डिति च’ सूत्र से उपधा के लघु इक् के गुण का निषेध कीजिये। यथा - लिख - लेलिख + त: - लेलिख + त: = लेलिक्त: । लेलिज् + अति = लेलिखति। मोमुद् + अति = मोमुदति। शेष धातु - सारे पित् तथा अपित् प्रत्यय परे होने पर इन्हें कुछ मत कीजिये। अब केवल सन्धि करना है। हमने सन्धिकार्यों को विस्तार से प्रथम खण्ड में सन्धि वाले पाठ में बतलाया है। उन्हें भलीभाँति पढ़कर ही अब आप यङ्लुगन्त धातुओं के रूप बनायें। अब हम इन धातुओं के केवल लट् लकार के रूप बनाकर दे रहे हैं। शेष रूप सन्धियाँ पढ़कर आप स्वयं बनायें - . अब हम उदाहरण के लिये, हलन्त धातुओं के अन्तिम वर्ण के क्रम से एक एक धातु के रूप दे रहे हैं, इसी के अनुकरण से इन वर्गों से अन्त होने वाले धातुओं के रूप बनाइये, परन्तु ध्यान रहे कि अङ्गकार्य करने के बाद ही सन्धि करें। __यथानिर्दिष्ट अङ्गकार्य कर चुकने के बाद ककारान्त धातुओं को प्रत्ययों में इस प्रकार जोड़िये - शक् - शाशक - लट् लकार परस्मैपद - शाशक्ति / शाशकीति शाशक्त: शाशकति शाशक्षि / शाशकीषि शाशक्थः शाशक्थ उ.पु. शाशक्मि / शाशकीमि शाशक्वः शाशक्मः यथानिर्दिष्ट अङ्गकार्य कर चुकने के बाद खकारान्त धातुओं को प्रत्ययों में इस प्रकार जोड़िये - लिख - लेलिख - लट् लकार परस्मैपद - लेलेक्ति / लेलिखीति लेलिक्त: लेलिखति म.पु. लेलेक्षि / लेलिखीषि लेलिक्थः लेलिक्थ उ.पु. लेलेख्मि / लेलिखीमि लेलिख्वः लेलिख्मः यथानिर्दिष्ट अङ्गकार्य कर चुकने के बाद गकारान्त धातुओं को प्रत्ययों में इस प्रकार जोड़िये - रिङ् - रेरिङ् - लट् लकार परस्मैपद - عن مر مر समस्त धातुओं के यङ्लुक् के रूप बनाने की विधि ४८७ उ.पु. مع म.पु. रेरिक्ति / रेरिगीति रेरिङ्क्तः रेरिङ्गति रेरिक्षि / रेरिङ्गीषि रेरिथः रेरिफ्थ रेरिङ्ग्मि / रेरिङ्गीमि रेरिङ्ग्वः रेरिग्मः यथानिर्दिष्ट अङ्गकार्य कर चुकने के बाद घकारान्त धातुओं को प्रत्ययों में इस प्रकार जोड़िये - घघ् - जाघ - लट् लकार परस्मैपद - जाघग्धि / जाघघीति जाघग्ध: जाघघति म.पु. जाघक्षि / जाघघीषि जाघग्ध: जाघग्ध जाघघ्मि / जाघघीमि जाघवः जाघघ्मः यथानिर्दिष्ट अङ्गकार्य कर चुकने के बाद चकारान्त धातुओं को प्रत्ययों में इस प्रकार जोड़िये - व्यच् - वाव्यच् - लट् लकार परस्मैपद - प्र.पु. वाव्यक्ति / वाव्यचीति वाव्यक्तः वाव्यचति वाव्यक्षि /. वाव्यचीषि वाव्यक्थः वाव्यक्थ वाव्यच्मि / वाव्यचीमि वाव्यच्वः वाव्यच्मः चकारान्त व्रश्च् - वाव्रश्च् - लट् लकार परस्मैपद वावष्टि / वाव्रश्चीति वाव्रष्ट: वावश्चति वावक्षि / वाव्रश्चीषि वाव्रष्ठ: वाव्रष्ठ वाव्रश्च्मि / वाव्रश्चीमि वाव्रश्च्च: वाव्रश्च्मः यथानिर्दिष्ट अङ्गकार्य कर चुकने के बाद छकारान्त धातुओं को प्रत्ययों में इस प्रकार जोड़िये - प्रच्छ् - पाप्रच्छ् - लट् लकार परस्मैपद - पाप्रष्टि / पाप्रच्छीति पाप्रष्ठ: पाप्रच्छति म.पु. पाप्रक्षि / पाप्रच्छीषि पाप्रष्ठ: पाप्रष्ठ उ.पु. पाप्रश्मि / पाप्रच्छीमि पाप्रच्छ्व : पाप्रश्मः यथानिर्दिष्ट अङ्गकार्य कर चुकने के बाद जकारान्त धातुओं को प्रत्ययों में इस प्रकार जोड़िये - त्यज् - तात्यज् - लट् लकार परस्मैपद - प्र.पु. तात्यक्ति / तात्यजीति तात्यक्तः तात्यजति म.पु. तात्यक्षि / तात्यजीषि तात्यक्थः तात्यक्थ उ.पु. तात्यज्मि / तात्यजीमि तात्यज्वः तात्यज्मः __ यथानिर्दिष्ट अङ्गकार्य कर चुकने के बाद टकारान्त धातुओं को प्रत्ययों में इस प्रकार जोड़िये - लुण्ट - लोलुण्ट - लट् लकार परस्मैपद - عن من من ४८८ अष्टाध्यायी सहजबोध । लोलुण्ट्ठ लोलुण्टि / लोलुण्टीति लोलुण्ड: लोलुण्टति लोलुण्ट्स / लोलुण्टीषि लोलुण्ठः उ.पु. लोलुट्मि / लोलुण्टीमि लोलुण्ट्वः लोलुण्ट्मः यथानिर्दिष्ट अङ्गकार्य कर चुकने के बाद ठकारान्त धातुओं को प्रत्ययों में इस प्रकार जोड़िये - शठ् - शाशठ् - लट् लकार परस्मैपद - प्र.पु. शाशट्टि / शाशठीति शाशट्टः शाशठति म.पु. शाशटिस / शाशठीषि शाशट्ठः शाशट्ठ उ.पु. शाशमि / शाशठीमि शाशठ्वः शाशमः यथानिर्दिष्ट अङ्गकार्य कर चुकने के बाद डकारान्त धातुओं को प्रत्ययों में इस प्रकार जोड़िये - कड् - चाकड् - लट् लकार परस्मैपद - प्र.पु. चाकड्डि / चाकडीति चाकट: चाकडति म.पु. चाकट्सि / चाकडीषि चाकट्ठः चाकट्ठ उ.पु. चाकड्मि / चाकडीमि चाकड्वः चाकड्मः यथानिर्दिष्ट अङ्गकार्य कर चुकने के बाद णकारान्त धातुओं को प्रत्ययों में इस प्रकार जोड़िये - कण् - चाकंण् - लट् लकार परस्मैपद - चङ्कण्टि / चकणीति चङ्कण्ट: चकणति चङ्कण्सि / चङ्कणीषि चङ्कण्ठः चङ्कण्ठ उ.पु. चङ्कण्मि / चकणीमि चङ्कण्वः चङ्कण्मः यथानिर्दिष्ट अङ्गकार्य कर चुकने के बाद तकारान्त धातुओं को प्रत्ययों में इस प्रकार जोड़िये - च्युत् - चोच्युत् - लट् लकार परस्मैपद - चोच्योत्ति / चोच्युतीति चोच्युत्तः चोच्युतति म.पु. चोच्योत्सि / चोच्युतीषि चोच्युत्थः चोच्युत्थ चोच्योत्मि / चोच्युतीमि चोच्युत्वः चोच्युत्मः यथानिर्दिष्ट अङ्गकार्य कर चुकने के बाद थकारान्त धातुओं को प्रत्ययों में इस प्रकार जोड़िये - कुन्थ् - चोकुन्थ् - लट् लकार परस्मैपद - चोकुन्ति / चोकुन्थीति चोकुन्त: चोकुन्थति म.पु. चोकुन्त्सि / चोकुन्थीषि चोकुन्थः चोकुन्थ उ.पु. चोकुन्थ्मि / चोकुन्थीमि चोकुन्थ्वः चोकुन्थ्मः यथानिर्दिष्ट अङ्गकार्य कर चुकने के बाद दकारान्त धातुओं को प्रत्ययों 44व प्र.पु. समस्त धातुओं के यङ्लुक् के रूप बनाने की विधि ४८९ 2 में इस प्रकार जोड़िये - ररद् - रारद् - लट् लकार परस्मैपद - प्र.पु. रारत्ति / रारदीति रारत्त: रारदति म.पु. रारत्सि / रारदीषि रारत्थः रारत्थ उ.पु. रारमि / रारदीमि रारद्वः रारद्मः यथानिर्दिष्ट अङ्गकार्य कर चुकने के बाद नकारान्त धातुओं को प्रत्ययों में इस प्रकार जोड़िये - मन् - मंमन् - लट् लकार परस्मैपद - प्र.. ममन्ति / मंमनीति ममत: ममनति म.पु. ममंसि / मंमनीषि मंमथः मंमथ उ.पु. ममन्मि / मंमनीमि मंमन्वः मंमन्मः ‘अनुदात्तोपदेशवनति’. सूत्र से अनुनासिक न् का लोप करके - मंमत:, मंमथः । यथानिर्दिष्ट अङ्गकार्य कर चुकने के बाद पकारान्त धातुओं को प्रत्ययों में इस प्रकार जोड़िये - गुप् - जोगुप् - लट् लकार परस्मैपद - प्र.पु. जोगोप्ति / जोगुपीति जोगुप्त: जोगुपति म.पु. जोगोप्सि / जोगुपीषि जोगुप्थः जोगुप्थ उ.पु. जोगोप्मि / जोगुपीमि जोगुप्वः जोगुप्मः यथानिर्दिष्ट अङ्गकार्य कर चुकने के बाद फकारान्त धातुओं को प्रत्ययों में इस प्रकार जोड़िये - तुम्फ् - तोतुम्फ - लट् लकार परस्मैपद - तोतुम्प्ति / तोतुम्फीति तोतुम्प्त: तोतुम्फति म.पु. तोतुम्प्सि / तोतुम्फीषि तोतुम्प्य: तोतुम्प्थ उ.पु. तोतुम्पिम / तोतुम्फीमि तोतुम्फ्वः तोतुम्फ्मः यथानिर्दिष्ट अङ्गकार्य कर चुकने के बाद बकारान्त धातुओं को प्रत्ययों में इस प्रकार जोड़िये - लम्ब् - लालम्ब् - लट् लकार परस्मैपद - प्र.पु. लालम्प्ति / लालम्बीति लालम्प्त: लालम्बति म.पु. लालम्प्सि / लालम्बीषि लालम्प्थः लालम्प्य उ.पु. लालम्ब्मि / लालम्बीमि लालम्ब्वः लालम्ब्मः यथानिर्दिष्ट अङ्गकार्य कर चुकने के बाद भकारान्त धातुओं को प्रत्ययों में इस प्रकार जोड़िये - लभ् - लालभ - लट् लकार परस्मैपद - प्र.पु. लालब्धि / लालभीति लालब्ध: म.पु. लालप्सि / लालभीषि लालब्ध: लालब्ध लालभिम / लालभीमि लालभ्वः लालभ्मः प्र.पु. लालभति उ.पु. [[४९०]] उ.पु. यथानिर्दिष्ट अङ्गकार्य कर चुकने के बाद मकारान्त धातुओं को प्रत्ययों में इस प्रकार जोड़िये - रम् - रंरम् - लट् लकार परस्मैपद - प्र.पु. रंरन्ति / रंरमीति रंरत: रंरमति म.पु. ररंसि / रंरमीषि ररथः रंरथ उ.पु. रंरन्मि / रंरमीमि ररन्वः रंरन्मः यथानिर्दिष्ट अङ्गकार्य कर चुकने के बाद यकारान्त धातुओं को प्रत्ययों में इस प्रकार जोड़िये - हय् - जाहय् - लट् लकार परस्मैपद - जाहय् + ति - लोपो व्योर्वलि सूत्र से य का लोप करके - जाहति। जाहय् + अति - जाहयति। जाहय् + मि - लोपो व्योर्वलि सूत्र से य् का लोप करके - जाह + मि / अतो दी? यञि से ‘अ’ को दीर्घ करके - जाहामि। प्र.पु. जाहति / जाहयीति जाहत: जाहयति म.पु. जाहसि / जाहयीषि जाहथः जाहथ जाहामि / जाहयीमि जाहावः जाहामः वकारान्त धातु वकारान्त धातुओं के लिये पहिले इन सूत्रों के अर्थ समझिये - ज्वरत्वरस्रिव्यवमवामुपधायाश्च - ज्वर्, त्वर, स्रिव्, अव्, म, धातुओं की उपधा तथा वकार’ के स्थान पर ऊ होता है, क्विप् प्रत्यय परे होने पर, अनुनासिक प्रत्यय परे होने पर, तथा झलादि कित्, डित् प्रत्यय परे होने पर। राल्लोप: - र् के बाद आने वाले छकार, वकार का लोप होता है, क्विप् प्रत्यय परे होने पर तथा झलादि कित्, डित् प्रत्यय परे होने पर। हलि च - रेफान्त वकारान्त धातुओं की उपधा के पूर्ववर्ती ‘इक्’ को दीर्घ होता है, हल् परे होने पर। उपधायां च - धातु के अन्त में हल् हो, उपधा में र् हो, तथा उस र् के पूर्व में ‘इक्’ हो, तो उस इक् को भी दीर्घ होता है। इन सूत्रो के अर्थों को बुद्धिस्थ करके ही वकारान्त धातुओं के रूप बनाइये। पृष्ठ ४६५ पर देखिये कि सारे वकारान्त धातुओं के यङ्लुगन्त रूप नहीं बनाये जाते। यथानिर्दिष्ट अङ्गकार्य कर चुकने के बाद वकारान्त धातुओं को म.पु. समस्त धातुओं के यङ्लुक् के रूप बनाने की विधि ४९१ प्रत्ययों में इस प्रकार जोड़िये - तु - तोतु - लट् लकार परस्मैपद - तोतु + ति - राल्लोप: से व् का लोप करके - तोतुर् + ति / पुगन्त. से उपधा को गुण होकर - तोतोर् + ति - तोतोर्ति । तोतु + त: - राल्लोप: से व् का लोप करके - तोतुर् + त: / यह प्रत्यय अपित् है, अतः उपधा के उ’ को क्डिति च’ सूत्र से गुण निषेध होने से हलि च’ सूत्र से उपधा के ‘उ’ को दीर्घ करके - तोतूर्त: । तोतु + अति - उपधायां च’ सूत्र से उपधा के पूर्ववर्ती ‘उ’ को दीर्घ करके - तोतूर्वति। प्र.पु. तोतोर्ति / तोतूर्वीति तोतूर्त: तोतूर्वति तोतोर्षि / तोतूर्वीषि तोतूर्थः तोतूर्थ उ.पु. तोतोर्मि / तोतूर्वीमि तोतूर्वः तोतूर्मः वकारान्त मव् - मामव् धातु - लट् लकार परस्मैपद माम + ति - ज्वरत्वरस्रिव्यवमवामुपधायाश्च सूत्र से उपधा तथा वकार अर्थात् अव् को ऊठ करके - माम् ऊ + ति - मामू + ति / सार्वधातुकार्धधातुकयो: सूत्र से ऊ को गुण होकर - मामो + ति - मामोति। मामव् + त: - पूर्ववत् मामू + त: / यह प्रत्यय अपित् है, अतः ‘उ’ को क्ङिति च’ सूत्र से गुण निषेध होने से - मामूतः। मामव् + अति - मामवति। मामव् + वः - लोपो व्योर्वलि सूत्र से व् का लोप करके - माम + वः / अतो दी? यञि से ‘अ’ को दीर्घ करके - मामांवः । मामव् + मः - ज्वरत्वरस्रिव्यवमवामुपधायाश्च सूत्र से अव् को ऊठ् करके - माम् ऊ + मः - मामूमः । प्र.पु. मामोति / मामवीति मामूत: मामवति म.पु. मामोषि / मामवीषि मामूथः __मामूथ उ.पु. मामोमि / मामवीमि मामावः मामूमः यथानिर्दिष्ट अङ्गकार्य कर चुकने के बाद रेफान्त धातुओं को प्रत्ययों में इस प्रकार जोड़िये - ज्वर् - जाज्वर् - लट् लकार परस्मैपद जाज्वर् + ति - ज्वरत्वरस्रिव्यवमवामुपधायाश्च सूत्र से व् अ’ को ऊठ करके - जाज् ऊ र् + ति - जाजूर् + ति - जाजूर्ति । जाज्वर् + त: - पूर्ववत् जाजूर्त: / जाज्वर् + अति - जाज्वरति । पूरे रूप इस प्रकार बने - [[४९२]] 12 जाजूर्ति / जाज्वरीति जाजूर्तः जाज्वरति म.पु. जाजूर्षि / जाज्वरीषि जाजूर्थः । जाजूर्थ उ.पु. जाजूर्मि / जाज्वरीमि जाजूर्वः जाजूर्मः यथानिर्दिष्ट अङ्गकार्य कर चुकने के बाद शकारान्त धातुओं को प्रत्ययों में इस प्रकार जोड़िये - क्रुश् - चोक्रुश् धातु - लट् लकार परस्मैपद चोक्रोष्टि / चोकुशीति चोक्रुष्टः चोक्रुशति म.पु. चोक्रोक्षि / चोक्रुशीषि चोक्रुष्ठः चोक्रुष्ठ उ.पु. चोक्रोश्मि / चोक्रुशीमि चोक्रुश्वः चोक्रुश्मः यथानिर्दिष्ट अङ्गकार्य कर चुकने के बाद षकारान्त धातुओं को प्रत्ययों में इस प्रकार जोड़िये - कृष् - चरीकृष् धातु - लट् लकार परस्मैपद प्र.पु. चरीकष्टि / चरीकर्षीति चरीकृष्टः चरीकृषति म.पु. चरीकर्खि / चरीकर्षीषि चरीकृष्ठ: चरीकृष्ठ उ.पु. चरीकwि / चरीकर्षीमि चरीकृष्वः चरीकृष्मः यथानिर्दिष्ट अङ्गकार्य कर चुकने के बाद सकारान्त धातुओं को प्रत्ययों में इस प्रकार जोड़िये - वस् - वावस् धातु - लट् लकार परस्मैपद प्र.पु. वावस्ति / वावसीति वावस्त: वावसति म.पु. वावस्सि / वावसीषि वावस्थः वावस्थ उ.पु. वावस्मि / वावसीमि वावस्वः वावस्मः यथानिर्दिष्ट अङ्गकार्य कर चुकने के बाद हकारान्त धातुओं को प्रत्ययों में इस प्रकार जोड़िये - गाह् - जागाह् धातु - लट् लकार परस्मैपद जागाढि / जागाहीति जागाढ: जागाहति म.पु. जाघाक्षि / जागाहीषि जागाढः जागाढ उ.पु. जागाहमि / जागाहीमि जागाह्वः जागाह्मः यह धातुओं के यङ्लुगन्त रूप बनाने की विधि पूर्ण हुई। ध्यान रहे कि धातुओं को द्वित्वाभ्यास कर चुकने के बाद, जो यङ्लुगन्त धातु बने, उससे तिङ् प्रत्यय परे होने पर, जिस धातु को जो भी अङ्गकार्य कहे गये हैं, उन्हें करके ही सन्धिकार्य करें। सूत्रों के विशेष अर्थ सिद्धान्तकौमुदी या काशिकावृत्ति में देखें।