नानार्थाः केऽपि कान्तादि वर्गेष्वेवात्र कीर्तिताः ॥3.3.1.1॥
भूरि प्रयोगा ये येषु पर्यायेष्वपि तेषु ते ॥3.3.1.2॥
मूलम्
आकाशे त्रिदिवे नाको लोकस्तु भुवने जने ॥3.3.2.1॥
शब्दाः
जनः. (1) - लोक (पुं) ॥3.3.2.1॥
मूलम्
पद्ये यशसि च श्लोकः शरे खड्गे च सायकः ॥3.3.2.2॥
शब्दाः
पद्यम्. (1) - श्लोक (पुं)
कीर्तिः. (1) - श्लोक (पुं)
बाणः. (1) - सायक (पुं)
खड्गः. (1) - सायक (पुं) ॥3.3.2.2॥
मूलम्
जम्बुकौ क्रोष्टुवरुणौ पृथुकौ चिपिटार्भकौ ॥3.3.3.1॥
शब्दाः
वरुणः. (1) - जम्बुक (पुं)
चिपिटः. (1) - पृथुक (पुं) ॥3.3.3.1॥
मूलम्
आलोकौ दर्शनद्योतौ भेरीपटगहमानकौ ॥3.3.3.2॥
शब्दाः
दर्शनम्. (1) - आलोक (पुं)
द्योतः. (1) - आलोक (पुं)
भेरी. (1) - आनक (पुं) ॥3.3.3.2॥
मूलम्
उत्सङ्गचिह्नयोरङ्कः कलङ्कोऽङ्कापवादयोः ॥3.3.4.1॥
शब्दाः
अङ्गः. (1) - अङ्क (पुं)
अपवादः. (1) - कलङ्क (पुं) ॥3.3.4.1॥
मूलम्
तक्षको नागवर्द्धक्योरर्कः स्फटिकसूर्ययोः ॥3.3.4.2॥
शब्दाः
नागः. (1) - तक्षक (पुं)
तक्षः. (1) - तक्षक (पुं)
स्फटिकम्. (1) - अर्क (पुं) ॥3.3.4.2॥
मूलम्
मारुते वेधसि ब्रघ्ने पुंसि कः कं शिरोऽम्बुनोः ॥3.3.5.1॥
शब्दाः
ब्रह्मा. (1) - क (पुं)
सूर्यः. (1) - क (पुं)
वायुः. (1) - क (पुं)
जलम्. (1) - कम् (नपुं)
शिरः. (1) - कम् (नपुं) ॥3.3.5.1॥
मूलम्
स्यात्पुलाकस्तुच्छधान्ये संक्षेपे भक्तसिक्थके ॥3.3.5.2॥
शब्दाः
तुच्छधान्यम्. (1) - पुलाक (पुं)
सङ्क्षेपः. (1) - पुलाक (पुं)
भक्तसिक्तकान्नावयवः. (1) - पुलाक (पुं) ॥3.3.5.2॥
मूलम्
उलूके करिणः पुच्छमूलोपान्ते च पेचकः ॥3.3.6.1॥
शब्दाः
करिणः पुच्छमूलोपान्तः. (1) - पेचक (पुं) ॥3.3.6.1॥
मूलम्
कमण्डलौ च करकः सुगते च विनायकः ॥3.3.6.2॥
शब्दाः
कमण्डलुः. (1) - करक (पुं) ॥3.3.6.2॥
मूलम्
किष्कुर्हस्ते वितस्तौ च शूककीटे च वृश्चिकः ॥3.3.7.1॥
शब्दाः
हस्तपरिमाणः. (1) - किष्कु (पुं)
वितस्तपरिमाणः. (1) - किष्कु (पुं) ॥3.3.7.1॥
मूलम्
प्रतिकूले प्रतीकस्त्रिष्वेकदेशे तु पुंस्ययम् ॥3.3.7.2॥
शब्दाः
प्रतिकूलम्. (1) - प्रतीक (पुं)
एकदेशः. (1) - प्रतीक (पुं) ॥3.3.7.2॥
मूलम्
स्याद्भूतिकं तु भूनिम्बे कत्तृणे भूस्तृणेऽपि च ॥3.3.8.1॥
शब्दाः
चिरायता. (1) - भूतिक (नपुं)
कुम्भी. (1) - भूतिक (नपुं)
तृणविशेषः. (1) - भूतिक (नपुं) ॥3.3.8.1॥
मूलम्
ज्योत्स्निकायां च घोषे च कोशातक्यथ कट्फले ॥3.3.8.2॥
शब्दाः
ज्योत्स्निका. (1) - कोशातकी (स्त्री)
घोषः. (1) - कोशातकी (स्त्री) ॥3.3.8.2॥
मूलम्
सिते च खदिरे सोमवल्कः स्यादथ सिह्लके ॥3.3.9.1॥
शब्दाः
कुम्भी. (1) - सोमवल्क (पुं) ॥3.3.9.1॥
मूलम्
तिलकल्के च पिण्याको बाह्लीकं रामठेऽपि च ॥3.3.9.2॥
शब्दाः
तिलकल्कम्. (1) - पिण्याक (पुं-नपुं)
सिह्लकम्. (1) - पिण्याक (पुं-नपुं)
हिङ्गुवृक्षनिर्यासः. (1) - बाह्लीक (नपुं) ॥3.3.9.2॥
मूलम्
महेन्द्र गुग्गुलूलूकव्यालग्राहिषु कौशिकः ॥3.3.10.1॥
शब्दाः
इन्द्रः. (1) - कौशिक (पुं)
सर्पग्राहिः. (1) - कौशिक (पुं) ॥3.3.10.1॥
मूलम्
रुक्तापशङ्कास्वातङ्कः स्वल्पेऽपि क्षुल्लकस्त्रिषु ॥3.3.10.2॥
शब्दाः
रोगः. (1) - आतङ्क (पुं)
विपत्. (1) - आतङ्क (पुं)
शङ्का. (1) - आतङ्क (पुं)
स्वल्पम्. (1) - क्षुल्लक (वि) ॥3.3.10.2॥
मूलम्
जैवातृकः शशाङ्केऽपि खुरेऽप्यश्वस्य वर्तकः ॥3.3.11.1॥
शब्दाः
अश्वखुरम्. (1) - वर्तक (पुं) ॥3.3.11.1॥
मूलम्
व्याघ्रेऽपि पुण्डरीको ना यवान्यामपि दीपकः ॥3.3.11.2॥
शब्दाः
व्याघ्रः. (1) - पुण्डरीक (पुं)
यवः. (1) - दीपक (पुं) ॥3.3.11.2॥
मूलम्
शालावृकाः कपिक्रोष्टुश्वानः स्वर्णेऽपि गैरिकम् ॥3.3.12.1॥
शब्दाः
वानरः. (1) - शालावृक (पुं)
जम्भूकः. (1) - शालावृक (पुं)
शुनकः. (1) - शालावृक (पुं)
सुवर्णम्. (1) - गैरिक (नपुं) ॥3.3.12.1॥
मूलम्
पीडार्थेऽपि व्यलीकं स्यादलीकं त्वप्रियेऽनृते ॥3.3.12.2॥
शब्दाः
दुःखम्. (1) - व्यलीक (नपुं)
असत्यवचनम्. (1) - अलीक (नपुं)
अप्रियम्. (1) - अलीक (नपुं) ॥3.3.12.2॥
मूलम्
शीलान्वयावनूके द्वे शल्के शकलवल्कले ॥3.3.13.1॥
शब्दाः
स्वभावः. (1) - अनूक (नपुं)
वंशः. (1) - अनूक (नपुं)
खण्डमात्रम्. (1) - शल्क (नपुं)
वृक्षत्वक्. (1) - शल्क (नपुं) ॥3.3.13.1॥
मूलम्
दीनारेऽपि च निष्कोऽस्त्री कल्कोऽस्त्री शमलैनसोः ॥3.3.14.1॥
शब्दाः
साष्टशतसुवर्णम्. (1) - निष्क (पुं-नपुं)
हेम्न्युरोभूषणम्. (1) - निष्क (पुं-नपुं)
कर्षचतुष्टयम्. (1) - निष्क (पुं-नपुं)
दीनार नामकनाण्यविशेषः. (1) - निष्क (पुं-नपुं)
कपटः. (1) - कल्क (पुं-नपुं)
पापम्. (1) - कल्क (पुं-नपुं)
मलम्. (1) - कल्क (पुं-नपुं) ॥3.3.14.1॥
मूलम्
दम्भेऽप्यथ पिनाकोऽस्त्री शूलशङ्करधन्वनोः ॥3.3.14.2॥
शब्दाः
शूलम्. (1) - पिनाक (पुं-नपुं) ॥3.3.14.2॥
मूलम्
धेनुका तु करेण्वां च मेघजाले च कालिका ॥3.3.15.1॥
शब्दाः
मेघपङ्क्तिः. (1) - कालिका (स्त्री) ॥3.3.15.1॥
मूलम्
कारिका यातनावृत्त्योः कर्णिका कर्णभूषणे ॥3.3.15.2॥
शब्दाः
यातना. (1) - कारिका (स्त्री)
कृत्यम्. (1) - कारिका (स्त्री)
करिहस्तः. (1) - कर्णिका (स्त्री)
अङ्गुली. (1) - कर्णिका (स्त्री)
पद्मबीजः. (1) - कर्णिका (स्त्री) ॥3.3.15.2॥
मूलम्
वृन्दारकौ रूपिमुख्यावेके मुख्यान्यकेवलाः ॥3.3.16.2॥
शब्दाः
मुख्यः. (2) - वृन्दारक (वि), एक (वि)
रूपिः. (1) - वृन्दारक (वि)
अन्यः. (1) - एक (वि)
केवलः. (1) - एक (वि) ॥3.3.16.2॥
मूलम्
स्याद्दाम्भिकः कौक्कुटिको यश्चादूरेरितेक्षणः ॥3.3.17.1॥
शब्दाः
दाम्भिकः. (1) - कौक्कुटिक (वि)
अदूरेरितेक्षणम्. (1) - कौक्कुटिक (वि) ॥3.3.17.1॥
मूलम्
ललाटिकः प्रभोर्भालदर्शी कार्याक्षमश्च यः ॥3.3.17.2॥
शब्दाः
कार्याक्षमः. (1) - ललाटिक (वि)
प्रभोर्भावदर्शिः. (1) - ललाटिक (वि) ॥3.3.17.2॥
मूलम्
भूभृन्नितम्बवलयचक्रेषु कटकोऽस्त्रियाम् ॥3.3.17.3॥
शब्दाः
चक्रम्. (1) - कटक (पुं-नपुं)
मेखलाख्यपर्वतमध्यभागः. (1) - कटक (पुं-नपुं) ॥3.3.17.3॥
मूलम्
सूच्यग्रे क्षुद्रशत्रौ च रोमहर्षे च कण्टकः ॥3.3.17.4॥
शब्दाः
क्षुद्रशत्रुः. (1) - कण्टक (पुं)
सूच्यग्रम्. (1) - कण्टक (पुं)
रोमाञ्चः. (1) - कण्टक (पुं) ॥3.3.17.4॥
मूलम्
पाकौ पक्तिशिशू मध्यरत्ने नेतरि नायकः ॥3.3.17.5॥
शब्दाः
मध्यरत्नम्. (1) - नायक (वि) ॥3.3.17.5॥
मूलम्
पर्यङ्कः स्यात्परिकरे स्याद्व्याघ्रेऽपि च लुब्धकः ॥3.3.17.6॥
शब्दाः
व्याघ्रः. (1) - लुब्धक (पुं) ॥3.3.17.6॥
मूलम्
पेटकस्त्रिषु वृन्देऽपि गुरौ देश्ये च देशिकः ॥3.3.17.7॥
शब्दाः
समूहः. (1) - पेटक (वि)
संस्कारादिकर्तुर्गुरुः. (1) - देशिक (पुं)
देश्यः. (1) - देशिक (पुं) ॥3.3.17.7॥
मूलम्
खेटकौ ग्रामफलकौ धीवरेऽपिच जालिकः ॥3.3.17.8॥
शब्दाः
ग्रामः. (1) - खेटक (नपुं)
फलकः. (1) - खेटक (नपुं)
धीवरः. (1) - जालिक (पुं) ॥3.3.17.8॥
मूलम्
पुष्परेणौ च किञ्जल्कः शुल्कोऽस्त्री स्त्रीधनेऽपि च ॥3.3.17.9॥
शब्दाः
पुष्परेणुः. (1) - किञ्जल्क (पुं)
स्त्रीधनम्. (1) - शुल्क (पुं-नपुं) ॥3.3.17.9॥
मूलम्
स्यात्कल्लोलेऽप्युत्कलिका वार्धकं भाववृन्दयोः ॥3.3.17.10॥
शब्दाः
महातरङ्गः. (1) - उत्कलिका (स्त्री)
भावम्. (1) - वार्धक (नपुं)
समूहः. (1) - वार्धक (नपुं) ॥3.3.17.10॥
मूलम्
करिण्यां चापि गणिका दारकौ बालभेदकौ ॥3.3.17.11॥
शब्दाः
हस्तिनी. (1) - गणिका (स्त्री)
बालः. (1) - दारक (नपुं)
भेदकः. (1) - दारक (नपुं) ॥3.3.17.11॥
मूलम्
अन्धेऽप्यनेडमूकः स्याट्टङ्कौ दर्पाश्मदारणौ ॥3.3.17.12॥
शब्दाः
अचक्षुष्कः. (1) - एडमूक (वि)
अश्मदारणम्. (1) - टङ्क (पुं-नपुं)
मदः. (1) - टङ्क (पुं-नपुं) ॥3.3.17.12॥
मूलम्
मृद्भाण्डेऽप्युष्ट्रिका मन्थे खजको रसदर्वके ॥3.3.17.13॥
शब्दाः
मृद्भाण्डम्. (1) - मन्थ (पुं)
उष्ट्रिका. (1) - मन्थ (पुं)
रसदर्वकम्. (1) - खजक (पुं) ॥3.3.17.13॥
मूलम्
मयूखस्त्विट्करज्वालास्वलिबाणौ शिलीमुखौ ॥3.3.18.1॥
शब्दाः
अग्निज्वाला. (1) - मयूख (पुं)
बाणः. (1) - शिलीमुख (पुं)
भ्रमरः. (1) - शिलीमुख (पुं) ॥3.3.18.1॥
मूलम्
शङ्खो निधौ ललटास्थ्निकम्बौ न स्त्रीन्द्रियेऽपि खम् ॥3.3.18.2॥
शब्दाः
ललाटास्थिः. (1) - शङ्ख (पुं-नपुं)
सामान्यनिधिः. (1) - शङ्ख (पुं-नपुं)
चक्षुरादीन्द्रियम्. (1) - ख (नपुं) ॥3.3.18.2॥
मूलम्
धृणिज्वाले अपि शिखे शैलवृक्षौ नगावगौ ॥3.3.19.1॥
शब्दाः
किरणः. (1) - शिखा (स्त्री)
पर्वतः. (2) - नग (पुं), अग (पुं)
वृक्षः. (2) - नग (पुं), अग (पुं) ॥3.3.19.1॥
मूलम्
आशुगौ वायुविशिखौ शरार्कविहगाः खगाः ॥3.3.19.2॥
शब्दाः
सूर्यः. (1) - खग (पुं) ॥3.3.19.2॥
मूलम्
पतङ्गौ पक्षिसूर्यौ च पूगः क्रमुकवृन्दयोः ॥3.3.20.1॥
शब्दाः
पक्षी. (1) - पतङ्ग (पुं)
सूर्यः. (1) - पतङ्ग (पुं)
समूहः. (1) - पूग (पुं) ॥3.3.20.1॥
मूलम्
पशवोऽपि मृगा वेगः प्रवाहजवयोरपि ॥3.3.20.2॥
शब्दाः
पशुः. (1) - मृग (पुं)
अविच्छेदेन जलादिप्रवृत्तिः. (1) - वेग (पुं)
वेगः. (1) - वेग (पुं) ॥3.3.20.2॥
मूलम्
परागः कौसुमे रेणौ स्नानीयादौ रजस्यपि ॥3.3.21.1॥
शब्दाः
पुष्परेणुः. (1) - पराग (पुं)
स्नानीयादि गन्धद्रव्यम्. (1) - पराग (पुं)
रजः. (1) - पराग (पुं) ॥3.3.21.1॥
मूलम्
गजेऽपि नागमातङ्गावपाङ्गस्तिलकेऽपि च ॥3.3.21.2॥
शब्दाः
नागाः. (1) - गज (पुं)
हस्तिः. (1) - गज (पुं)
ललाटकृततिलकम्. (1) - अपाङ्ग (पुं) ॥3.3.21.2॥
मूलम्
सर्गः स्वभावनिर्मोक्षनिश्चयाध्यायसृष्टिषु ॥3.3.22.1॥
शब्दाः
स्वभावः. (1) - सर्ग (पुं)
निर्मोक्षः. (1) - सर्ग (पुं)
निश्चयः. (1) - सर्ग (पुं)
अध्यायभेदः. (1) - सर्ग (पुं)
सृष्टिः. (1) - सर्ग (पुं) ॥3.3.22.1॥
मूलम्
योगः सन्नहनोपायध्यानसङ्गतियुक्तिषु ॥3.3.22.2॥
शब्दाः
सन्नहनम्. (1) - योग (पुं)
उपायः. (1) - योग (पुं)
ध्यानम्. (1) - योग (पुं)
सङ्गतिः. (1) - योग (पुं)
युक्तिः. (1) - योग (पुं) ॥3.3.22.2॥
मूलम्
भोगः सुखे स्त्र्यादिभृतावहेश्च फणकाययोः ॥3.3.23.1॥
शब्दाः
आनन्दः. (1) - भोग (पुं)
सर्पः. (1) - भोग (पुं)
स्त्र्यादिभृतिः. (1) - भोग (पुं) ॥3.3.23.1॥
मूलम्
चातके हरिणे पुंसि सारङ्गः शबले त्रिषु ॥3.3.23.2॥
शब्दाः
चातकपक्षी. (1) - सारङ्ग (पुं)
हरिणः. (1) - सारङ्ग (पुं)
शबलम्. (1) - सारङ्ग (वि) ॥3.3.23.2॥
मूलम्
कपौ च प्लवगः शापे त्वभिषङ्गः पराभवे ॥3.3.24.1॥
शब्दाः
शापवचनम्. (1) - अभिषङ्ग (पुं)
पराजयः. (1) - अभिषङ्ग (पुं) ॥3.3.24.1॥
मूलम्
यानाद्यङ्गे युगः पुंसि युगं युग्मे कृतादिषु ॥3.3.24.2॥
शब्दाः
कृतादियुगाः. (1) - युग (नपुं)
यानाद्यङ्गः. (1) - युग (पुं) ॥3.3.24.2॥
मूलम्
लक्ष्यदृष्ट्या स्त्रियां पुंसि गौर्लिङ्गं चिह्नशेफसोः ॥3.3.25.2॥
शब्दाः
बाणः. (1) - गो (स्त्री-पुं)
इन्द्रस्य वज्रायुधम्. (1) - गो (स्त्री-पुं)
जलम्. (1) - गो (स्त्री-पुं)
किरणः. (1) - गो (स्त्री-पुं)
नेत्रम्. (1) - गो (स्त्री-पुं)
पशुः. (1) - गो (स्त्री-पुं)
स्वर्गः. (1) - गो (स्त्री-पुं)
वचनम्. (1) - गो (स्त्री-पुं)
दिक्. (1) - गो (स्त्री-पुं)
चिह्नम्. (1) - लिङ्ग (नपुं)
पुरुषलिङ्गः. (1) - लिङ्ग (नपुं) ॥3.3.25.2॥
मूलम्
शृङ्गं प्राधान्यसान्वोश्च वराङ्गं मूर्धगुह्ययोः ॥3.3.26.1॥
शब्दाः
पर्वतसमभूभागः. (1) - शृङ्ग (नपुं)
प्राधान्यम्. (1) - शृङ्ग (नपुं)
गुह्यदेशः. (1) - वराङ्ग (नपुं)
शिरः. (1) - वराङ्ग (नपुं) ॥3.3.26.1॥
मूलम्
भगं श्रीकाममाहात्म्यवीर्ययत्नार्ककीर्तिषु ॥3.3.26.2॥
शब्दाः
कीर्तिः. (1) - भग (नपुं)
माहात्म्यम्. (1) - भग (नपुं)
स्पृहा. (1) - भग (नपुं)
वीर्यम्. (1) - भग (नपुं)
धनसमृद्धिः. (1) - भग (नपुं)
यत्नः. (1) - भग (नपुं) ॥3.3.26.2॥
मूलम्
परिघः परिघातेऽस्त्रेऽप्योघो वृन्देऽम्भसां रये ॥3.3.27.1॥
शब्दाः
परिघातः. (1) - परिघ (पुं)
अम्भसां रयः. (1) - ओघ (पुं) ॥3.3.27.1॥
मूलम्
मूल्ये पूजाविधावर्घोऽहोदुःखव्यसनेष्वघम् ॥3.3.27.2॥
शब्दाः
मूल्यम्. (1) - अर्घ (पुं)
पूजाविधिः. (1) - अर्घ (पुं)
दुःखम्. (1) - अघ (नपुं)
व्यसनम्. (1) - अघ (नपुं) ॥3.3.27.2॥
मूलम्
त्रिष्विष्टेऽल्पे लघुः काचाः शिक्यभृद्भेददृग्रुजः ॥3.3.28.1॥
शब्दाः
अल्पम्. (1) - लघु (वि)
यथेप्सितम्. (1) - लघु (वि)
मृद्भेदः. (1) - काच (पुं)
दृग्रुजः. (1) - काच (पुं) ॥3.3.28.1॥
मूलम्
विपर्यासे विस्तरे च प्रपञ्चः पावके शुचिः ॥3.3.28.2॥
शब्दाः
व्यतिक्रमः. (1) - प्रपञ्च (पुं)
विस्तरः. (1) - प्रपञ्च (पुं)
शुद्धामात्यः. (1) - शुचि (पुं)
शुक्लवर्णयुक्तः. (1) - शुचि (वि)
शुद्धिः. (1) - शुचि (वि) ॥3.3.28.2॥
मूलम्
अभिष्वङ्गे स्पृहायां च गभस्तौ च रुचिः स्त्रियाम् ॥3.3.29.2॥
शब्दाः
अत्यासक्तिः. (1) - रुचि (स्त्री)
किरणः. (1) - रुचि (स्त्री)
स्पृहा. (1) - रुचि (स्त्री) ॥3.3.29.2॥
मूलम्
प्रसन्ने भल्लुकेऽप्यच्छो गुच्छः स्तबकहारयोः ॥3.3.29.3॥
शब्दाः
भल्लूकः. (1) - अच्छ (पुं)
प्रसन्नः. (1) - अच्छ (पुं)
हारः. (1) - गुच्छ (पुं)
विकासोन्मुखपुष्पम्. (1) - गुच्छ (पुं) ॥3.3.29.3॥
मूलम्
परिधानाञ्चले कच्छो जलप्रान्ते त्रिलिङ्गकः ॥3.3.29.4॥
शब्दाः
अञ्चलः. (1) - कच्छ (पुं)
परिधानम्. (1) - कच्छ (पुं) ॥3.3.29.4॥
मूलम्
केकि तार्क्ष्यावहिभुजौ दन्तविप्राण्डजा द्विजाः ॥3.3.30.1॥
शब्दाः
गरुडः. (1) - अहिभुज (पुं)
मयूरः. (1) - अहिभुज (पुं)
दन्तः. (1) - द्विज (पुं)
ब्राह्मणः. (1) - द्विज (पुं)
पक्षिसर्पाद्याः. (1) - द्विज (पुं) ॥3.3.30.1॥
मूलम्
अजा विष्णुहरच्छागा गोष्ठाध्वनिवहा व्रजाः ॥3.3.30.2॥
शब्दाः
शिवः. (1) - अज (पुं)
विष्णुः. (1) - अज (पुं)
गवां स्थानम्. (1) - व्रज (पुं)
मार्गः. (1) - व्रज (पुं) ॥3.3.30.2॥
मूलम्
धर्मराजौ जिनयमौ कुञ्जो दन्तेऽपि न स्त्रियाम् ॥3.3.31.1॥
शब्दाः
दन्तः. (1) - कुञ्ज (पुं-नपुं) ॥3.3.31.1॥
मूलम्
वलजे क्षेत्रपूर्द्वारे वलजा वल्गुदर्शना ॥3.3.31.2॥
शब्दाः
क्षेत्रम्. (1) - वलज (नपुं)
पुरमार्गः. (1) - वलज (नपुं)
वल्गुदर्शना. (1) - वलजा (स्त्री) ॥3.3.31.2॥
मूलम्
समे क्ष्मांशे रणेऽप्याजिः प्रजा स्यात्सन्ततौ जने ॥3.3.32.1॥
शब्दाः
समक्ष्मांशः. (1) - आजि (स्त्री)
जनः. (1) - प्रजा (स्त्री)
सन्ततिः. (1) - प्रजा (स्त्री) ॥3.3.32.1॥
मूलम्
अब्जौ शङ्खशशाङ्कौ च स्वके नित्ये निजं त्रिषु ॥3.3.32.2॥
शब्दाः
शङ्खः. (1) - अब्ज (पुं)
आत्मीयम्. (1) - निज (वि)
नित्यम्. (1) - निज (वि) ॥3.3.32.2॥
मूलम्
पुंस्यात्मनि प्रवीणे च क्षेत्रज्ञो वाच्यलिङ्गकः ॥3.3.33.1॥
शब्दाः
पुरुषः. (1) - क्षेत्रज्ञ (पुं)
कुशलः. (1) - क्षेत्रज्ञ (वि) ॥3.3.33.1॥
मूलम्
संज्ञा स्याच्चेतना नाम हस्ताद्यैश्चार्थसूचना ॥3.3.33.2॥
शब्दाः
बुद्धिः. (1) - संज्ञा (स्त्री)
गायत्रीच्छन्दः. (1) - संज्ञा (स्त्री)
हस्तादिनार्थसूचना. (1) - संज्ञा (स्त्री)
नाम. (1) - संज्ञा (स्त्री)
सूर्यपत्नी. (1) - संज्ञा (स्त्री) ॥3.3.33.2॥
मूलम्
काकेभगण्डौ करटौ गजगण्डकटी कटौ ॥3.3.34.1॥
शब्दाः
गजगण्डः. (1) - करट (पुं) ॥3.3.34.1॥
मूलम्
शिपिविष्टस्तु खलतौ दुश्चर्मणि महेश्वरे ॥3.3.34.2॥
शब्दाः
शिवः. (1) - शिपिविष्ट (पुं)
खलः. (1) - शिपिविष्ट (पुं)
दुश्चर्मः. (1) - शिपिविष्ट (पुं) ॥3.3.34.2॥
मूलम्
देवशिल्पिन्यपि त्वष्टा दिष्टं दैवेऽपि न द्वयोः ॥3.3.35.1॥
शब्दाः
देवशिल्पिः. (1) - त्वष्टृ (पुं) ॥3.3.35.1॥
मूलम्
रसे कटुः कट्वकार्ये त्रिषु मत्सरतीक्ष्णयोः ॥3.3.35.2॥
शब्दाः
अकार्यम्. (1) - कटु (नपुं)
कटुरसः. (1) - कटु (पुं)
मत्सरः. (1) - कटु (वि)
तीक्ष्णम्. (1) - कटु (वि) ॥3.3.35.2॥
मूलम्
रिष्टं क्षेमाशुभाभावेष्वरिष्टे तु शुभाशुभे ॥3.3.36.1॥
शब्दाः
क्षेमम्. (1) - रिष्ट (नपुं)
अशुभम्. (2) - रिष्ट (नपुं), अरिष्ट (नपुं)
अभावः. (1) - रिष्ट (नपुं)
शुभम्. (1) - अरिष्ट (नपुं) ॥3.3.36.1॥
मूलम्
अयोघने शैलशृङ्गे सीराङ्गे कूटमस्त्रियाम् ॥3.3.37.1॥
शब्दाः
माया. (1) - कूट (पुं-नपुं)
निश्चलवस्तु. (1) - कूट (पुं-नपुं)
राशिः. (1) - कूट (पुं-नपुं)
कपटः. (1) - कूट (पुं-नपुं)
असत्यवचनम्. (1) - कूट (पुं-नपुं)
यन्त्रम्. (1) - कूट (पुं-नपुं)
अयोघनम्. (1) - कूट (पुं-नपुं)
सीराङ्गः. (1) - कूट (पुं-नपुं) ॥3.3.37.1॥
मूलम्
सूक्ष्मैलायां त्रुटिः स्त्री स्यात्कालेऽल्पे संशयेऽपि सा ॥3.3.37.2॥
शब्दाः
अल्पम्. (1) - त्रुटि (स्त्री)
समयः. (1) - त्रुटि (स्त्री)
संशयः. (1) - त्रुटि (स्त्री) ॥3.3.37.2॥
मूलम्
आर्त्युत्कर्षाश्रयः कोट्यो मूले लग्नकचे जटा ॥3.3.38.1॥
शब्दाः
अत्युत्कर्षः. (1) - कोटी (स्त्री)
आश्रयः. (1) - कोटी (स्त्री)
मूलम्. (1) - जटा (स्त्री) ॥3.3.38.1॥
मूलम्
व्युष्टिः फले समृद्धौ च दृष्टिर्ज्ञानेऽक्ष्णि दर्शने ॥3.3.38.2॥
शब्दाः
फलम्. (1) - व्युष्टि (स्त्री)
समृद्धिः. (1) - व्युष्टि (स्त्री)
ज्ञानम्. (1) - दृष्टि (स्त्री)
वीक्षणम्. (1) - दृष्टि (स्त्री) ॥3.3.38.2॥
मूलम्
इष्टिर्यागेच्छयोः सृष्टं निश्चिते बहुनि त्रिषु ॥3.3.39.1॥
शब्दाः
इच्छा. (1) - इष्टि (स्त्री)
यज्ञः. (1) - इष्टि (स्त्री)
बहूनि. (1) - सृष्टि (वि)
निश्चितम्. (1) - सृष्टि (वि) ॥3.3.39.1॥
मूलम्
कष्टे तु कृच्छ्रगहने दक्षामन्दागदेषु तु ॥3.3.39.2॥
शब्दाः
दुष्प्रवेशः. (1) - कष्ट (वि) ॥3.3.39.2॥
मूलम्
पटुर्द्वौ वाच्यलिङ्गौ च नीलकण्ठः शिवेऽपि च ॥3.3.40.1॥
शब्दाः
अमन्दः. (1) - पटु (वि)
औषधम्. (1) - पटु (वि)
शिवः. (1) - नीलकण्ठ (पुं) ॥3.3.40.1॥
मूलम्
पुंसि कोष्ठोऽन्तर्जठरं कुसूलोऽन्तर्गृहं तथा ॥3.3.40.2॥
शब्दाः
अन्तर्जठरम्. (1) - कोष्ठ (पुं)
अन्तर्गृहम्. (1) - कोष्ठ (पुं)
कुसूलः. (1) - कोष्ठ (पुं) ॥3.3.40.2॥
मूलम्
निष्ठा निष्पत्तिनाशान्ताः काष्ठोत्कर्षे स्थितौ दिशि ॥3.3.41.1॥
शब्दाः
अन्त्यम्. (1) - निष्ठा (स्त्री)
नाशः. (1) - निष्ठा (स्त्री)
निष्पत्तिः. (1) - निष्ठा (स्त्री)
मर्यादा. (1) - काष्ठा (स्त्री)
उत्कर्षः. (1) - काष्ठा (स्त्री) ॥3.3.41.1॥
मूलम्
त्रिषु ज्येष्ठोऽतिशस्तेऽपि कनिष्ठोऽतियुवाल्पयोः ॥3.3.41.2॥
शब्दाः
अतिशस्तः. (1) - ज्येष्ठ (वि)
अल्पम्. (1) - कनिष्ठा (वि)
अतियुवा. (1) - कनिष्ठा (वि) ॥3.3.41.2॥
मूलम्
दण्डोऽस्त्री लगुडेऽपि स्याद्गुडो गोलेक्षुपाकयोः ॥3.3.42.1॥
शब्दाः
लगुडः. (1) - दण्ड (पुं-नपुं)
गोलः. (1) - गुड (पुं)
इक्षुपाकः. (1) - गुड (पुं) ॥3.3.42.1॥
मूलम्
सर्प मांसात्पशू व्याडौ गोभूवाचस्त्विडा इलाः ॥3.3.42.2॥
शब्दाः
सर्पः. (1) - व्याड (पुं)
मांसात्पशुः. (1) - व्याड (पुं)
भूमिः. (1) - इडा (स्त्री)
गौः. (2) - इडा (स्त्री), इला (स्त्री)
वचनम्. (2) - इडा (स्त्री), इला (स्त्री) ॥3.3.42.2॥
मूलम्
क्ष्वेडा वंशशलाकापि नाडी कालेऽपि षट्क्षणे ॥3.3.43.1॥
शब्दाः
वंशशलाका. (1) - क्ष्वेडा (स्त्री)
षट् क्षणकालः. (1) - नाडी (स्त्री) ॥3.3.43.1॥
मूलम्
काण्डोऽस्त्री दण्डबाणार्ववर्गावसरवारिषु ॥3.3.43.2॥
शब्दाः
अवसरः. (1) - काण्ड (पुं-नपुं)
अधमम्. (1) - काण्ड (पुं-नपुं)
बाणः. (1) - काण्ड (पुं-नपुं)
जलम्. (1) - काण्ड (पुं-नपुं)
वर्गः. (1) - काण्ड (पुं-नपुं)
दण्डः. (1) - काण्ड (पुं-नपुं) ॥3.3.43.2॥
मूलम्
स्याद्भाण्डमश्वाभरणेऽमत्रे मूलवणिग्धने ॥3.3.44.1॥
शब्दाः
अश्वभूषा. (1) - भाण्ड (नपुं)
मूलवणिग्धनम्. (1) - भाण्ड (नपुं) ॥3.3.44.1॥
मूलम्
भृशप्रतिज्ञयोर्बाढं प्रगाढं भृशकृच्छ्रयोः ॥3.3.44.2॥
शब्दाः
भृशप्रतिज्ञा. (1) - बाढ (नपुं)
भृशम्. (1) - प्रगाढ (नपुं)
दुःखम्. (1) - प्रगाढ (नपुं) ॥3.3.44.2॥
मूलम्
शक्तस्थूलौ त्रिषु दृढौ व्यूढौ विन्यस्तसंहतौ ॥3.3.45.1॥
शब्दाः
शक्तः. (1) - दृढ (वि)
स्थूलम्. (1) - दृढ (वि)
संहतः. (1) - व्यूढ (वि)
विन्यस्तः. (1) - व्यूढ (वि) ॥3.3.45.1॥
मूलम्
भ्रूणोऽर्भके स्त्रैणगर्भे बाणो बलिसुते शरे ॥3.3.45.2॥
शब्दाः
शिशुः. (1) - भ्रूण (पुं)
बलिसुतः. (1) - बाण (पुं) ॥3.3.45.2॥
मूलम्
कणोऽतिसूक्ष्मे धान्यांशे सङ्घाते प्रमथे गणः ॥3.3.46.1॥
शब्दाः
अतिसूक्ष्मधान्यांशः. (1) - कण (पुं)
सङ्घातः. (1) - गण (पुं)
शिवानुचरः. (1) - गण (पुं) ॥3.3.46.1॥
मूलम्
पणो द्यूतादिषूत्सृष्टे भृतौ मूल्ये धनेऽपि च ॥3.3.46.2॥
शब्दाः
भृतिः. (1) - पण (पुं)
धनम्. (1) - पण (पुं)
द्यूतादिषूत्सृष्टः. (1) - पण (पुं) ॥3.3.46.2॥
मूलम्
मौर्व्यां द्रव्याश्रिते सत्वशौर्यसन्ध्यादिके गुणः ॥3.3.47.1॥
शब्दाः
रूपरसगन्धादयः. (1) - गुण (पुं)
सत्वरजस्तमाः. (1) - गुण (पुं)
शुक्लनीलादयः. (1) - गुण (पुं)
सन्धिविग्रहादयः. (1) - गुण (पुं) ॥3.3.47.1॥
मूलम्
निर्व्यापारस्थितौ कालविशेषोत्सवयोः क्षणः ॥3.3.47.2॥
शब्दाः
निर्व्यापारस्थितिः. (1) - क्षण (पुं) ॥3.3.47.2॥
मूलम्
वर्णो द्विजादौ शुक्लादौ स्तुतौ वर्णं तु वाक्षरे ॥3.3.48.1॥
शब्दाः
शुक्लादयः. (1) - वर्ण (पुं)
स्तुतिः. (1) - वर्ण (पुं)
ब्राह्मणादिवर्णचतुष्टयवाचकः. (1) - वर्ण (पुं)
अक्षरम्. (1) - वर्ण (पुं-नपुं) ॥3.3.48.1॥
मूलम्
स्थाणुः शर्वेऽप्यथ द्रोणः काकेऽप्याजौ रवे रणः ॥3.3.49.1॥
शब्दाः
काकः. (1) - द्रोण (पुं)
शब्दः. (1) - रण (पुं) ॥3.3.49.1॥
मूलम्
ग्रामणीर्नापिते पुंसि श्रेष्ठे ग्रामाधिपे त्रिषु ॥3.3.49.2॥
शब्दाः
क्षुरिः. (1) - ग्रामणी (पुं)
श्रेष्ठः. (1) - ग्रामणी (वि)
ग्रामाधिपः. (1) - ग्रामणी (वि) ॥3.3.49.2॥
मूलम्
ऊर्णा मेषादिलोम्नि स्यादावर्ते चान्तरा भ्रुवोः ॥3.3.50.1॥
शब्दाः
मेषलोमः. (1) - ऊर्णा (स्त्री)
भ्रुवौ अन्तरा आवर्तः. (1) - ऊर्णा (स्त्री) ॥3.3.50.1॥
मूलम्
हरिणी स्यान्मृगी हेमप्रतिमा हरिता च या ॥3.3.50.2॥
शब्दाः
हरितवलयः. (1) - हरिणी (स्त्री)
हेमप्रतिमा. (1) - हरिणी (स्त्री)
मृगी. (1) - हरिणी (स्त्री) ॥3.3.50.2॥
मूलम्
त्रिषु पाण्डौ च हरिणः स्थूणा स्तम्भेऽपि वेश्मनः ॥3.3.51.1॥
शब्दाः
स्तम्भः. (1) - स्थूणा (स्त्री)
वेश्मा. (1) - स्थूणा (स्त्री) ॥3.3.51.1॥
मूलम्
तृष्णे स्पृहापिपासे द्वे जुगुप्साकरुणे घृणे ॥3.3.51.2॥
शब्दाः
स्पृहा. (1) - तृष्णा (स्त्री)
पिपासा. (1) - तृष्णा (स्त्री)
जुगुप्सा. (1) - घृणा (स्त्री) ॥3.3.51.2॥
मूलम्
वणिक्पथे च विपणिः सुरा प्रत्यक्च वारुणी ॥3.3.52.1॥
शब्दाः
वणिक्पथः. (1) - विपणि (स्त्री)
पश्चिमदिग्देशकालाः. (1) - वारुणी (स्त्री)
सुरा. (1) - वारुणी (स्त्री) ॥3.3.52.1॥
मूलम्
करेणुरिभ्यां स्त्री नेभे द्रविणं तु बलं धनम् ॥3.3.52.2॥
शब्दाः
हस्तिः. (1) - करेणु (पुं)
हस्तिनी. (1) - करेणु (स्त्री)
द्रव्यम्. (1) - द्रविण (नपुं)
बलम्. (1) - द्रविण (नपुं) ॥3.3.52.2॥
मूलम्
शरणं गृहरक्षित्रोः श्रीपर्णं कमलेऽपि च ॥3.3.53.1॥
शब्दाः
रक्षिता. (1) - शरण (नपुं)
गृहम्. (1) - शरण (नपुं)
पद्मम्. (1) - श्रीपर्ण (नपुं) ॥3.3.53.1॥
मूलम्
विषाभिमरलोहेषु तीक्ष्णं क्लीबे खरे त्रिषु ॥3.3.53.2॥
शब्दाः
अभिमरः. (1) - तीक्ष्ण (नपुं)
विषम्. (1) - तीक्ष्ण (नपुं) ॥3.3.53.2॥
मूलम्
प्रमाणं हेतुमर्यादाशास्त्रेयत्ताप्रमातृषु ॥3.3.54.1॥
शब्दाः
इयत्ता. (1) - प्रमाण (नपुं)
कारणम्. (1) - प्रमाण (नपुं)
मर्यादा. (1) - प्रमाण (नपुं)
प्रमाता. (1) - प्रमाण (नपुं)
शास्त्रम्. (1) - प्रमाण (नपुं) ॥3.3.54.1॥
मूलम्
करणं साधकतमं क्षेत्रगात्रेन्द्रियेष्वपि ॥3.3.54.2॥
शब्दाः
साधकतमम्. (1) - करण (नपुं)
क्षेत्रम्. (1) - करण (नपुं)
देहः. (1) - करण (नपुं)
इन्द्रियम्. (1) - करण (नपुं) ॥3.3.54.2॥
मूलम्
प्राण्युत्पादे संसरणमसंबाधचमूगतौ ॥3.3.55.1॥
शब्दाः
निष्प्रयाससैन्यगमनम्. (1) - संसरण (नपुं)
प्राण्युत्पादरूपसंसारम्. (1) - संसरण (नपुं) ॥3.3.55.1॥
मूलम्
घण्टापथेऽथ वान्तान्ने समुद्गिरणमुन्नये ॥3.3.55.2॥
शब्दाः
उन्नयनक्रिया. (1) - समुद्गिरण (नपुं)
वान्तान्नः. (1) - समुद्गिरण (नपुं) ॥3.3.55.2॥
मूलम्
अतस्त्रिषु विषाणं स्यात्पशुशृङ्गेभदन्तयोः ॥3.3.56.1॥
शब्दाः
पशुशृङ्गः. (1) - विषाण (वि)
इभदन्तः. (1) - विषाण (वि) ॥3.3.56.1॥
मूलम्
प्रवणं क्रमनिम्नोर्व्यां प्रह्वे ना तु चतुष्पथे ॥3.3.56.2॥
शब्दाः
चतुष्पथम्. (1) - प्रवण (पुं)
क्रमनिम्नोर्वी. (1) - प्रवण (वि)
प्रह्वः. (1) - प्रवण (वि) ॥3.3.56.2॥
मूलम्
सङ्कीर्णौ निचिताशुद्धाविरिणं शून्यमूषरम् ॥3.3.57.1॥
शब्दाः
निचितम्. (1) - सङ्कीर्ण (वि)
अशुद्धः. (1) - सङ्कीर्ण (वि)
शून्यम्. (1) - ईरिण (वि)
ऊषरदेशः. (1) - ईरिण (वि) ॥3.3.57.1॥
मूलम्
सेतौ च वरणो वेणी नदीभेदे कचोच्चये ॥3.3.57.2॥
शब्दाः
सेतुः. (1) - वरण (पुं)
कचोच्चयः. (1) - वेणी (स्त्री)
नदीभेदः. (1) - वेणी (स्त्री) ॥3.3.57.2॥
मूलम्
देवसूर्यौ विवस्वन्तौ सरस्वन्तौनदार्णवौ ॥3.3.57.3॥
शब्दाः
देवः. (1) - विवस्वत् (पुं)
नदविशेषः. (1) - सरस्वत् (पुं) ॥3.3.57.3॥
मूलम्
पक्षितार्क्ष्यौ गरुत्मन्तौ शकुन्तौ भासपक्षिणौ ॥3.3.58.1॥
शब्दाः
भासः. (1) - शकुन्त (पुं) ॥3.3.58.1॥
मूलम्
अग्न्युत्पातौ धूमकेतू जीमूतौ मेघपर्वतौ ॥3.3.58.2॥
शब्दाः
उत्पातः. (1) - धूमकेतु (पुं)
अग्निः. (1) - धूमकेतु (पुं)
पर्वतः. (1) - जीमूत (पुं) ॥3.3.58.2॥
मूलम्
हस्तौ तु पाणिनक्षत्रे मरुतौ पवनामरौ ॥3.3.59.1॥
शब्दाः
हस्तः. (1) - हस्त (पुं)
नक्षत्रनाम. (1) - हस्त (पुं)
वायुदेवः. (1) - मरुत् (पुं) ॥3.3.59.1॥
मूलम्
यन्ता हस्तिपके सूते भर्ता धातरि पोष्टरि ॥3.3.59.2॥
शब्दाः
हस्तिपकः. (1) - यन्तृ (पुं)
पोष्टा. (1) - भर्तृ (पुं)
धाता. (1) - भर्तृ (पुं) ॥3.3.59.2॥
मूलम्
यानपात्रे शिशौ पोतः प्रेतः प्राण्यन्तरे मृते ॥3.3.60.1॥
शब्दाः
नौका. (1) - पोत (पुं) ॥3.3.60.1॥
मूलम्
ग्रहभेदे ध्वजे केतुः पार्थिवे तनये सुतः ॥3.3.60.2॥
शब्दाः
ग्रहभेदः. (1) - केतु (पुं)
पताका. (1) - केतु (पुं)
राजा. (1) - सुत (पुं) ॥3.3.60.2॥
मूलम्
स्थपतिः कारुभेदेऽपि भूभृद्भूमिधरे नृपे ॥3.3.61.1॥
शब्दाः
कारुभेदः. (1) - स्थपति (पुं)
पर्वतः. (1) - भूभृत् (पुं)
राजा. (1) - भूभृत् (पुं) ॥3.3.61.1॥
मूलम्
मूर्धाभिषिक्तो भूपेऽपि ऋतुः स्त्री कुसुमेऽपि च ॥3.3.61.2॥
शब्दाः
राजा. (1) - मूर्धाभिषिक्त (पुं)
आर्तवम्. (1) - ऋतु (पुं) ॥3.3.61.2॥
मूलम्
विष्णावप्यजिताव्यक्तौ सूतस्त्वष्टरि सारथौ ॥3.3.62.1॥
शब्दाः
विष्णुः. (2) - अजित (पुं), अव्यक्त (पुं)
तक्षः. (1) - सूत (पुं) ॥3.3.62.1॥
मूलम्
व्यक्तः प्राज्ञेऽपि दृष्टान्तावुभौ शास्त्रनिदर्शने ॥3.3.62.2॥
शब्दाः
विद्वान्. (1) - व्यक्त (वि)
शास्त्रम्. (1) - दृष्टान्त (पुं)
निदर्शनम्. (1) - दृष्टान्त (पुं) ॥3.3.62.2॥
मूलम्
क्षत्ता स्यात्सारथौ द्वाःस्थे क्षत्रियायां च शूद्रजे ॥3.3.63.1॥
शब्दाः
द्वारपालकः. (1) - क्षन्त्रृ (पुं) ॥3.3.63.1॥
मूलम्
वृत्तान्तः स्यात्प्रकरणे प्रकारे कार्त्स्न्यवार्तयोः ॥3.3.63.2॥
शब्दाः
भेदः. (1) - वृत्तान्त (पुं)
कार्त्स्न्यम्. (1) - वृत्तान्त (पुं)
प्रकरणम्. (1) - वृत्तान्त (पुं) ॥3.3.63.2॥
मूलम्
आनर्तः समरे नृत्यस्थाननीवृद्विशेषयोः ॥3.3.64.1॥
शब्दाः
जननिवासस्थानम्. (1) - आनर्त (पुं)
नृत्यस्थानम्. (1) - आनर्त (पुं)
युद्धम्. (1) - आनर्त (पुं) ॥3.3.64.1॥
मूलम्
कृतान्तो यमसिद्धान्तदैवाकुशलकर्मसु ॥3.3.64.2॥
शब्दाः
सिद्धान्तः. (1) - कृतान्त (पुं)
अकुशलकर्मम्. (1) - कृतान्त (पुं)
प्राक्तनशुभाशुभकर्मः. (1) - कृतान्त (पुं) ॥3.3.64.2॥
मूलम्
इन्द्रियाण्यश्मविकृतिः शब्दयोनिश्च धातवः ॥3.3.65.2॥
शब्दाः
श्लेष्मादिः. (1) - धातु (पुं)
रसरक्तादिः. (1) - धातु (पुं)
महाभूताः. (1) - धातु (पुं)
महाभूतगुणाः. (1) - धातु (पुं)
इन्द्रियम्. (1) - धातु (पुं)
अश्मविकृतिः. (1) - धातु (पुं)
शब्दयोनिः. (1) - धातु (पुं) ॥3.3.65.2॥
मूलम्
कक्षान्तरेऽपि शुद्धान्तो नृपस्यासर्वगोचरे ॥3.3.66.1॥
शब्दाः
कक्षान्तरम्. (1) - शुद्धान्त (पुं)
नृपस्यासर्वगोचरप्रदेशः. (1) - शुद्धान्त (पुं) ॥3.3.66.1॥
मूलम्
कासूसामर्थ्ययोः शक्तिर्मूर्तिः काठिन्यकाययोः ॥3.3.66.2॥
शब्दाः
काठिन्यम्. (1) - मूर्ति (स्त्री)
कासूः. (1) - शक्ति (स्त्री) ॥3.3.66.2॥
मूलम्
विस्तारवल्लयोर्व्रततिर्वसती रात्रिवेश्मनोः ॥3.3.67.1॥
शब्दाः
विशालता. (1) - व्रतति (स्त्री)
रात्रिः. (1) - वसति (स्त्री)
वेश्मा. (1) - वसति (स्त्री) ॥3.3.67.1॥
मूलम्
क्षयार्चयोरपचितिः सातिर्दानावसानयोः ॥3.3.67.2॥
शब्दाः
अपचयः. (1) - अपचिति (स्त्री)
दानम्. (1) - साति (स्त्री) ॥3.3.67.2॥
मूलम्
आर्तिः पीडा धनुष्कोट्योर्जातिः सामान्यजन्मनोः ॥3.3.68.1॥
शब्दाः
धनुष्कोटिः. (1) - अर्ति (स्त्री)
दुःखम्. (1) - अर्ति (स्त्री)
जननम्. (1) - जाति (स्त्री)
सामान्यम्. (1) - जाति (स्त्री) ॥3.3.68.1॥
मूलम्
प्रचारस्यन्दयो रीतिर्डिम्बप्रवासयोः ॥3.3.68.2॥
शब्दाः
डिम्बः. (1) - ईति (स्त्री)
प्रवासः. (1) - ईति (स्त्री)
प्रचारः. (1) - रीति (स्त्री)
स्यन्दः. (1) - रीति (स्त्री) ॥3.3.68.2॥
मूलम्
उदयेऽधिगमे प्राप्तिस्त्रेता त्वग्नित्रये युगे ॥3.3.69.1॥
शब्दाः
उदयः. (1) - प्राप्ति (स्त्री)
अधिकफलम्. (1) - प्राप्ति (स्त्री)
अग्निः. (1) - त्रेता (स्त्री)
त्रेतायुगम्. (1) - त्रेता (स्त्री) ॥3.3.69.1॥
मूलम्
वीणाभेदेऽपि महती भूतिर्भस्मनि सम्पदि ॥3.3.69.2॥
शब्दाः
वीणाभेदः. (1) - महती (स्त्री)
धनसमृद्धिः. (1) - भूति (स्त्री) ॥3.3.69.2॥
मूलम्
नदी नगर्योर्नागानां भोगवत्यथ सङ्गरे ॥3.3.70.1॥
शब्दाः
नगरम्. (1) - भोगवती (स्त्री)
नदी. (1) - भोगवती (स्त्री)
नागाः. (1) - भोगवती (स्त्री) ॥3.3.70.1॥
मूलम्
सङ्गे सभायां समितिः क्षयवासावपि क्षिती ॥3.3.70.2॥
शब्दाः
सङ्गम्. (1) - समिति (स्त्री)
सङ्गरम्. (1) - समिति (स्त्री)
अपचयः. (1) - क्षिति (स्त्री)
वासः. (1) - क्षिति (स्त्री) ॥3.3.70.2॥
+++(आयुधम्. (1) - हेति (स्त्री)
रवेरर्चिः. (1) - हेति (स्त्री) ॥3.3.71.1॥)+++
रवेरर्चिश्च शस्त्रं च वह्निज्वाला च हेतयः ॥3.3.71.1॥
मूलम्
जगती जगति च्छन्दोविशेषेऽपि क्षितावपि ॥3.3.71.2॥
शब्दाः
जगतीच्छन्दः. (1) - जगती (स्त्री) ॥3.3.71.2॥
+++(पङ्क्तिच्छन्दः. (1) - पङ्क्ति (स्त्री)
दशमम्. (1) - पङ्क्ति (स्त्री)
प्रभावः. (1) - आयति (स्त्री) ॥3.3.72.1॥)+++
पङ्क्तिश्छन्दोऽपि दशमं स्यात्प्रभावेऽपि चायतिः ॥3.3.72.1॥
मूलम्
पत्तिर्गतौ च मूले तु पक्षतिः पक्षभेदयोः ॥3.3.72.2॥
शब्दाः
गतिः. (1) - पत्ति (स्त्री) ॥3.3.72.2॥
+++(पुरुषलिङ्गः. (1) - प्रकृति (स्त्री)
स्त्रीयोनिः. (1) - प्रकृति (स्त्री)
कैशिक्याद्याः. (1) - वृत्ति (स्त्री) ॥3.3.73.1॥)+++
प्रकृतिर्योनिलिङ्गे च कैशिक्याद्याश्च वृत्तयः ॥3.3.73.1॥
+++(वालुका. (1) - सिकता (स्त्री-बहु)
श्रवः. (1) - श्रुति (स्त्री)
वेदः. (1) - श्रुति (स्त्री) ॥3.3.73.2॥)+++
सिकताः स्युर्वालुकापि वेदे श्रवसि च श्रुतिः ॥3.3.73.2॥
मूलम्
वनिता जनितात्यर्थानुरागायां च योषिति ॥3.3.74.1॥
शब्दाः
जनितात्यर्थानुरागा. (1) - वनिता (स्त्री) ॥3.3.74.1॥
+++(क्षितिव्युदासः. (1) - गुप्ति (स्त्री)
धारणम्. (1) - धृति (स्त्री)
धैर्यम्. (1) - धृति (स्त्री) ॥3.3.74.2॥)+++
गुप्तिः क्षितिव्युदासेऽपि धृतिर्धारणधैर्ययोः ॥3.3.74.2॥
+++(बृहतीच्छन्दः. (1) - बृहती (स्त्री)
महती. (1) - बृहती (स्त्री) ॥3.3.75.1॥)+++
बृहती क्षुद्रवार्ताकी छन्दोभेदे महत्यपि ॥3.3.75.1॥
+++(हस्तिनी. (1) - वासिता (स्त्री)
स्त्री. (1) - वासिता (स्त्री)
लोकप्रवादः. (1) - वार्ता (स्त्री) ॥3.3.75.2॥)+++
वासिता स्त्री करिण्योश्च वार्ता वृत्तौ जनश्रुतौ ॥3.3.75.2॥
+++(निःसारम्. (1) - वार्त (नपुं)
अरोगः. (1) - वार्त (वि)
जलम्. (1) - घृत (नपुं) ॥3.3.76.1॥)+++
वार्तं फल्गुन्यरोगे च त्रिष्वप्सु च घृतामृते ॥3.3.76.1॥
+++(रूप्यकम्. (1) - कलधौत (नपुं)
सुवर्णम्. (1) - कलधौत (नपुं)
कारणम्. (1) - निमित्त (नपुं)
चिह्नम्. (1) - निमित्त (नपुं) ॥3.3.76.2॥)+++
कलधौतं रूप्यहेम्नोर्निमित्तं हेतुलक्ष्मणोः ॥3.3.76.2॥
+++(अवधृतम्. (1) - श्रुत (नपुं)
शास्त्रम्. (1) - श्रुत (नपुं)
कृतयुगम्. (1) - कृत (नपुं)
पर्याप्तिः. (1) - कृत (नपुं) ॥3.3.77.1॥)+++
श्रुतं शास्त्रावधृतयोर्युगपर्याप्तयोः कृतम् ॥3.3.77.1॥
+++(महाभीतिः. (1) - अत्याहित (नपुं)
जीवानपेक्षिः. (1) - अत्याहित (नपुं) ॥3.3.77.2॥)+++
अत्याहितं महाभीतिः कर्म जीवानपेक्षि च ॥3.3.77.2॥
+++(आवृतम्. (1) - भूत (नपुं)
अतीतः. (1) - भूत (नपुं)
भूमिः. (1) - भूत (नपुं)
प्राणी. (1) - भूत (नपुं)
युक्तम्. (1) - भूत (नपुं) ॥3.3.78.1॥)+++
युक्ते क्ष्मादावृते भूतं प्राण्यतीते समे त्रिषु ॥3.3.78.1॥
+++(चरित्रम्. (1) - वृत्त (नपुं)
पद्यम्. (1) - वृत्त (नपुं)
अतीतः. (1) - वृत्त (वि)
दृढम्. (1) - वृत्त (वि) ॥3.3.78.2॥)+++
वृत्तं पद्ये चरित्रे त्रिष्वतीते दृढनिस्तले ॥3.3.78.2॥
+++(राज्यम्. (1) - महत् (नपुं)
जनवादः. (1) - अवगीत (नपुं)
गर्हितम्. (1) - अवगीत (वि) ॥3.3.79.1॥)+++
महद्राज्यं चावगीतं जन्ये स्याद्गर्हिते त्रिषु ॥3.3.79.1॥
+++(रूप्यकम्. (2) - श्वेत (नपुं), रजत (नपुं)
सुवर्णम्. (1) - रजत (नपुं)
शुक्लवर्णयुक्तः. (1) - रजत (वि) ॥3.3.79.2॥)+++
श्वेतं रूप्येऽपि रजतं हेम्नि रूप्ये सिते त्रिषु ॥3.3.79.2॥
+++(चरम्. (1) - जगत् (वि)
नील्यादिरागिः. (1) - रक्त (वि) ॥3.3.80.1॥)+++
त्रिष्वितो जगदिङ्गेऽपि रक्तं नील्यादि रागि च ॥3.3.80.1॥
+++(शुक्लवर्णयुक्तः. (1) - अवदात (वि)
पीतवर्णः. (1) - अवदात (वि)
शुद्धम्. (1) - अवदात (वि) ॥3.3.80.2॥)+++
अवदातः सिते पीते शुद्धे बद्धार्जुनौ सितौ ॥3.3.80.2॥
+++(कृत्रिमम्. (1) - संस्कृत (वि)
लक्षणोपेतम्. (1) - संस्कृत (वि)
अतिसंस्कृतम्. (1) - अभिनीत (वि)
मर्षिः. (1) - अभिनीत (वि)
युक्तम्. (1) - अभिनीत (वि) ॥3.3.81.1॥)+++
युक्तेऽतिसंस्कृतेऽमर्षिण्यभिनीतोऽथ संस्कृतम् ॥3.3.81.1॥
मूलम्
कृत्रिमे लक्षणोपेतेऽप्यनन्तोऽनवधावपि ॥3.3.81.2॥
शब्दाः
अनवधिः. (1) - अनन्त (वि) ॥3.3.81.2॥
+++(प्रमुदितः. (1) - प्रतीत (वि)
कुलजः. (1) - अभिजात (वि)
बुधः. (1) - अभिजात (वि) ॥3.3.82.1॥)+++
ख्याते हृष्टे प्रतीतोऽभिजातस्तु कुलजे बुधे ॥3.3.82.1॥
+++(पवित्रः. (1) - विविक्ति (वि)
विजनः. (1) - विविक्ति (वि)
मूर्खः. (1) - मूर्छित (वि)
सोच्छ्रयः. (1) - मूर्छित (वि) ॥3.3.82.2॥)+++
विविक्तौ पूतविजनौ मूर्छितौ मूढसोच्छ्रयौ ॥3.3.82.2॥
+++(शुल्कवर्णः. (1) - शिति (वि)
कृष्णवर्णः. (1) - शिति (वि)
अम्लरसः. (1) - शुक्त (वि)
परुषम्. (1) - शुक्त (वि) ॥3.3.83.1॥)+++
द्वौ चाम्लपरुषौ शुक्तौ शिती धवलमेचकौ ॥3.3.83.1॥
+++(अभ्यर्हितम्. (1) - सत् (वि)
प्रशस्तम्. (1) - सत् (वि)
विद्यमानम्. (1) - सत् (वि)
साधुः. (1) - सत् (वि)
सत्यम्. (1) - सत् (वि) ॥3.3.83.2॥)+++
सत्ये साधौ विद्यमाने प्रशस्तेऽभ्यर्हिते च सत् ॥3.3.83.2॥
+++(अरात्यभियुक्ते अग्रतः कृतः. (1) - पुरस्कृत (वि)
पूजितः. (1) - पुरस्कृत (वि) ॥3.3.84.1॥)+++
पुरस्कृतः पूजितेऽरात्यभियुक्तेऽग्रतः कृते ॥3.3.84.1॥
+++(आश्रयः. (1) - निवात (वि)
अवातः. (1) - निवात (वि)
शस्त्राभेद्यः. (1) - निवात (वि)
वर्मः. (1) - निवात (वि) ॥3.3.84.2॥)+++
निवातावाश्रयावातौ शस्त्राभेद्यं च वर्म यत् ॥3.3.84.2॥
+++(जातः. (1) - उच्छ्रित (वि)
प्रवृद्धम्. (1) - उच्छ्रित (वि)
उन्नद्धः. (1) - उच्छ्रित (वि)
प्रोद्यतः. (1) - उत्थित (वि)
उत्पन्नः. (1) - उत्थित (वि)
वृद्धिमत्. (1) - उत्थित (वि) ॥3.3.85.1॥)+++
जातोन्नद्धप्रवृद्धाः स्युरुच्छ्रिता उत्थितास्त्वमी ॥3.3.85.1॥
+++(अर्चितः. (1) - आदृत (वि)
सादरः. (1) - आदृत (वि) ॥3.3.85.2॥)+++
वृद्धिमत्प्रोद्यतोत्पन्ना आदृतौ सादरार्चितौ ॥3.3.85.2॥
+++(अभिधेयः. (1) - अर्थ (पुं)
निवृत्तिः. (1) - अर्थ (पुं)
प्रयोजनम्. (1) - अर्थ (पुं)
वस्तु. (1) - अर्थ (पुं) ॥3.3.86.1॥)+++
अर्थोऽभिधेयरैवस्तुप्रयोजननिवृत्तिषु ॥3.3.86.1॥
+++(आगमः. (1) - तीर्थ (नपुं)
कूपसमीपरचितजलाधारः. (1) - तीर्थ (नपुं)
ऋषिजुष्टजलम्. (1) - तीर्थ (नपुं)
संस्कारादिकर्तुर्गुरुः. (1) - तीर्थ (नपुं) ॥3.3.86.2॥)+++
निपानागमयोस्तीर्थमृषिजुष्टे जले गुरौ ॥3.3.86.2॥
+++(अन्योन्यसम्बद्धार्थः. (1) - समर्थ (वि)
हितम्. (1) - समर्थ (वि)
शक्तिस्थः. (1) - समर्थ (वि) ॥3.3.87.1॥)+++
समर्थस्त्रिषु शक्तिस्थे सम्बद्धार्थे हितेऽपि च ॥3.3.87.1॥
+++(क्षीणरागः. (1) - दशमीस्थ (पुं)
वृद्धः. (1) - दशमीस्थ (पुं)
मार्गः. (1) - वीथी (स्त्री) ॥3.3.87.2॥)+++
दशमीस्थौ क्षीणरागवृद्धौ वीथी पदव्यपि ॥3.3.87.2॥
+++(सभा. (1) - आस्था (स्त्री)
यत्नः. (1) - आस्था (स्त्री)
मानः. (1) - प्रस्थ (पुं-नपुं) ॥3.3.88.1॥)+++
आस्थानी यत्नयोरास्था प्रस्थोऽस्त्री सानुमानयोः ॥3.3.88.1॥
+++(शास्त्रम्. (1) - ग्रन्थ (पुं)
द्रव्यम्. (1) - ग्रन्थ (पुं)
आधारः. (1) - संस्था (स्त्री)
स्थितिः. (1) - संस्था (स्त्री)
मृतिः. (1) - संस्था (स्त्री) ॥3.3.88.2॥)+++
शास्त्रद्रविणयोर्ग्रन्थः संस्थाधारे स्थितौ मृतौ ॥3.3.88.2॥
+++(अभिप्रायः. (1) - छन्द (पुं)
वशः. (1) - छन्द (पुं)
मेघः. (1) - अब्द (पुं)
वत्सरः. (1) - अब्द (पुं) ॥3.3.88.3॥)+++
अभिप्रायवशौ छन्दावब्दौ जीमूतवत्सरौ ॥3.3.88.3॥
+++(अज्ञः. (1) - अपवाद (पुं)
निन्दा. (1) - अपवाद (पुं)
पुत्रः. (1) - दायाद (पुं)
सगोत्रः. (1) - दायाद (पुं) ॥3.3.89.1॥)+++
अपवादौ तु निन्दाज्ञे दायादौ सुतबान्धवौ ॥3.3.89.1॥
+++(किरणः. (1) - पाद (पुं)
तुर्यांशः. (1) - पाद (पुं)
अग्निः. (1) - तमोनुद् (पुं)
चन्द्रः. (1) - तमोनुद् (पुं)
सूर्यः. (1) - तमोनुद् (पुं) ॥3.3.89.2॥)+++
पादा रश्म्यङ्घ्रितुर्यांशाश्चन्द्राग्न्यर्कास्तमोनुदः ॥3.3.89.2॥
+++(जनवादः. (1) - निर्वाद (पुं)
नूतनतृणम्. (1) - शाद (पुं) ॥3.3.90.1॥)+++
निर्वादो जनवादेऽपि शादो जम्बालशष्पयोः ॥3.3.90.1॥
+++(सरवरोदनम्. (1) - आक्रन्द (पुं)
त्राता. (1) - आक्रन्द (पुं)
दारुणरणम्. (1) - आक्रन्द (पुं) ॥3.3.90.2॥)+++
आरावे रुदिते त्रातर्याक्रन्दो दारुणे रणे ॥3.3.90.2॥
+++(अनुसरणम्. (1) - प्रसाद (पुं)
व्यञ्जनम्. (1) - सूद (वि) ॥3.3.91.1॥)+++
स्यात्प्रसादोऽनुरागेऽपि सूदः स्याद्व्यञ्जनेऽपि च ॥3.3.91.1॥
+++(गोपालः. (1) - गोविन्द (पुं)
आनन्दः. (1) - आमोद (पुं)
मदः. (1) - आमोद (पुं) ॥3.3.91.2॥)+++
गोष्ठाध्यक्षेऽपि गोविन्दो हर्षेऽप्यामोदवन्मदः ॥3.3.91.2॥
+++(प्राधान्यम्. (1) - ककुद (पुं-नपुं)
राजचिह्नम्. (1) - ककुद (पुं-नपुं)
वृषाङ्गम्. (1) - ककुद (पुं-नपुं) ॥3.3.92.1॥)+++
प्राधान्ये राजलिङ्गे च वृषाङ्गे ककुदोऽस्त्रियाम् ॥3.3.92.1॥
+++(ज्ञानम्. (1) - संविद् (स्त्री)
क्रियाकारः. (1) - संविद् (स्त्री)
सम्भाषणम्. (1) - संविद् (स्त्री)
युद्धम्. (1) - संविद् (स्त्री) ॥3.3.92.2॥)+++
स्त्री संविज्ज्ञानसंभाषाक्रियाकाराजिनामसु ॥3.3.92.2॥
+++(धर्मः. (1) - उपनिषद् (स्त्री)
रहस्यम्. (1) - उपनिषद् (स्त्री)
वत्सरः. (1) - शरद् (स्त्री) ॥3.3.93.1॥)+++
धर्मे रहस्युपनिषत्स्यादृतौ वत्सरे शरत् ॥3.3.93.1॥
+++(वस्तु. (1) - पद (नपुं)
चरणः. (1) - पद (नपुं)
चिह्नम्. (1) - पद (नपुं)
स्थानम्. (1) - पद (नपुं)
त्राणनम्. (1) - पद (नपुं)
व्यवसितिः. (1) - पद (नपुं) ॥3.3.93.2॥)+++
पदं व्यवसितत्राणस्थानलक्ष्माङ्घ्रिवस्तुषु ॥3.3.93.2॥
+++(मानः. (1) - गोष्पद (नपुं)
सेवितः. (1) - गोष्पद (नपुं)
कृत्यम्. (1) - आस्पद (नपुं)
प्रतिष्ठा. (1) - आस्पद (नपुं) ॥3.3.94.1॥)+++
गोष्पदं सेविते माने प्रतिष्ठाकृत्यमास्पदम् ॥3.3.94.1॥
+++(मधुरम्. (1) - स्वादु (वि)
यथेप्सितम्. (1) - स्वादु (वि)
अतीक्ष्णः. (1) - मृदु (वि) ॥3.3.94.2॥)+++
त्रिष्विष्टमधुरौ स्वादू मृदू चातीक्ष्णकोमलौ ॥3.3.94.2॥
+++(अल्पम्. (1) - मन्द (वि)
अपटुः. (1) - मन्द (वि)
मूर्खः. (1) - मन्द (वि)
निर्भाग्यः. (1) - मन्द (वि)
प्रत्यग्रः. (1) - शारद (वि)
अप्रतिभः. (1) - शारद (वि) ॥3.3.95.1॥)+++
मूढाल्पापटुनिर्भाग्या मन्दाः स्युर्द्वौ तु शारदौ ॥3.3.95.1॥
+++(विद्वान्. (1) - विशारद (वि)
सुप्रगल्भः. (1) - विशारद (वि) ॥3.3.95.2॥)+++
प्रत्यग्राप्रतिभौ विद्वत्सुप्रगल्भौ विशारदौ ॥3.3.95.2॥
+++(व्यामः. (1) - न्यग्रोध (पुं)
देहः. (1) - उत्सेध (पुं)
उन्नतिः. (1) - उत्सेध (पुं) ॥3.3.96.1॥)+++
व्यामो वटश्च न्यग्रोधावुत्सेधः काय उन्नतिः ॥3.3.96.1॥
+++(पर्याहारः. (2) - विवध (पुं), वीवध (पुं)
मार्गः. (2) - विवध (पुं), वीवध (पुं) ॥3.3.96.2॥)+++
पर्याहारश्च मार्गश्च विवधौ वीवधौ च तौ ॥3.3.96.2॥
+++(यज्ञियतरोः शाखा. (1) - परिधि (पुं)
उपसूर्यकः. (1) - परिधि (पुं) ॥3.3.97.1॥)+++
परिधिर्यज्ञियतरोः शाखायामुपसूर्यके ॥3.3.97.1॥
+++(अधिष्ठानम्. (1) - आधि (पुं)
बन्धकः. (1) - आधि (पुं)
व्यसनम्. (1) - आधि (पुं) ॥3.3.97.2॥)+++
बन्धकं व्यसनं चेतः पीडाधिष्ठानमाधयः ॥3.3.97.2॥
+++(मनोनिग्रहः. (1) - समाधि (पुं)
समर्थनम्. (1) - समाधि (पुं)
धान्यादिसञ्चयः. (1) - समाधि (पुं) ॥3.3.98.1॥)+++
स्युः समर्थननीवाकनियमाश्च समाधयः ॥3.3.98.1॥
+++(मुख्यानुयायिः. (1) - अनुबन्ध (पुं)
प्रकृतस्यानुवर्तनम्. (1) - अनुबन्ध (पुं)
प्रकृतिप्रत्ययादिविनश्वरः. (1) - अनुबन्ध (पुं)
शिशुः. (1) - अनुबन्ध (पुं)
दोषोत्पादः. (1) - अनुबन्ध (पुं) ॥3.3.98.2॥)+++
दोषोत्पादेऽनुबन्धः स्यात्प्रकृतस्यादिविनश्वरे ॥3.3.98.2॥
मुख्यानुयायिनि शिशौ प्रकृतस्यानुवर्तने ॥3.3.99.1॥
+++(परिच्छेदः. (1) - अवधि (पुं)
बिलम्. (1) - अवधि (पुं) ॥3.3.99.2॥)+++
विधुर्विष्णौ चन्द्रमसि परिच्छेदे बिलेऽवधिः ॥3.3.99.2॥
+++(विधानम्. (1) - विधि (पुं)
प्रार्थना. (1) - प्रणिधि (पुं) ॥3.3.100.1॥)+++
विधिर्विधाने दैवेऽपि प्रणिधिः प्रार्थने चरे ॥3.3.100.1॥
+++(विद्वान्. (1) - वृद्धि (पुं)
समुदायः. (1) - स्कन्ध (पुं) ॥3.3.100.2॥)+++
बुधवृद्धौ पण्डितेऽपि स्कन्धः समुदयेऽपि च ॥3.3.100.2॥
+++(नदी. (1) - सिन्धु (स्त्री)
नदविशेषः. (1) - सिन्धु (पुं)
देशः. (1) - सिन्धु (पुं) ॥3.3.101.1॥)+++
देशे नदविशेषेऽब्धौ सिन्धुर्ना सरिति स्त्रियाम् ॥3.3.101.1॥
+++(विधिः. (1) - विधा (स्त्री)
भेदः. (1) - विधा (स्त्री)
रम्यम्. (1) - साधु (वि) ॥3.3.101.2॥)+++
विधा विधौ प्रकारे च साधू रम्येऽपि च त्रिषु ॥3.3.101.2॥
+++(पत्नी. (1) - वधू (स्त्री)
लेपः. (1) - सुधा (स्त्री)
सीहुण्डः. (1) - सुधा (स्त्री) ॥3.3.102.1॥)+++
वधूर्जाया स्नुषा स्त्री च सुधा लेपोऽमृतं स्नुही ॥3.3.102.1॥
+++(प्रतिज्ञा. (1) - सन्धा (स्त्री)
मर्यादा. (1) - सन्धा (स्त्री)
सम्प्रत्ययः. (1) - श्रद्धा (स्त्री)
स्पृहा. (1) - श्रद्धा (स्त्री) ॥3.3.102.2॥)+++
सन्धा प्रतिज्ञा मर्यादा श्रद्धासम्प्रत्ययः स्पृहा ॥3.3.102.2॥
+++(सुरा. (1) - मधु (पुं)
पुष्पमधुः. (1) - मधु (पुं)
अन्धकारः. (1) - अन्ध (नपुं) ॥3.3.103.1॥)+++
मधु मद्ये पुष्परसे क्षौद्रेऽप्यन्धं तमस्यपि ॥3.3.103.1॥
+++(पण्डितम्मन्यः. (1) - समुन्नद्ध (वि)
गर्वितः. (1) - समुन्नद्ध (वि) ॥3.3.103.2॥)+++
अतस्त्रिषु समुन्नद्धौ पण्डितम्मन्यगर्वितौ ॥3.3.103.2॥
+++(ब्राह्मणाधिक्षेपः. (1) - ब्रह्मबन्धु (वि)
ब्राह्मणनिर्देशः. (1) - ब्रह्मबन्धु (वि) ॥3.3.104.1॥)+++
ब्रह्मबन्धुरधिक्षेपे निर्देशेऽथावलम्बितः ॥3.3.104.1॥
+++(अवलम्बितः. (1) - अवष्टब्ध (वि)
अविदूरम्. (1) - अवष्टब्ध (वि)
प्रसिद्धः. (1) - प्रसिद्ध (वि)
भूषितः. (1) - प्रसिद्ध (वि) ॥3.3.104.2॥)+++
अविदूरोऽप्यवष्टब्धः प्रसिद्धौ ख्यातभूषितौ ॥3.3.104.2॥
सूर्यवह्नी चित्रभानू भानू रश्मिदिवाकरौ ॥3.3.105.1॥
+++(धाता. (1) - भूतात्मन् (पुं)
देहः. (1) - भूतात्मन् (पुं)
मूर्खः. (1) - पृथग्जन (पुं) ॥3.3.105.2॥)+++
भूतात्मानौ धातृदेहौ मूर्खनीचौ पृथग्जनौ ॥3.3.105.2॥
ग्रावाणौ शैलपाषाणौ पत्रिणौ शरपक्षिणौ ॥3.3.106.1॥
+++(वृक्षः. (1) - शिखरिन् (पुं)
अग्निः. (1) - शिखिन् (पुं) ॥3.3.106.2॥)+++
तरुशैलौ शिखरिणौ शिखिनौ वह्निबर्हिणौ ॥3.3.106.2॥
+++(स्पृहा. (1) - प्रतियत्न (पुं)
उपग्रहः. (1) - प्रतियत्न (पुं)
सारथिः. (1) - सादिन् (पुं) ॥3.3.107.1॥)+++
प्रतियत्नावुभौ लिप्सोपग्रहावथ सादिनौ ॥3.3.107.1॥
मूलम्
द्वौ सारथिहयारोहौ वाजिनोऽश्वेषु पक्षिणः ॥3.3.107.2॥
शब्दाः
बाणः. (1) - वाजिन् (पुं) ॥3.3.107.2॥
+++(जन्मभूमिः. (1) - अभिजन (पुं)
किरणः. (1) - हायन (पुं)
वर्षम्. (1) - हायन (पुं)
व्रीहिभेदः. (1) - हायन (पुं) ॥3.3.108.1॥)+++
कुलेऽप्यभिजनो जन्मभूम्यामप्यथ हायनाः ॥3.3.108.1॥
+++(चन्द्रः. (1) - विरोचन (पुं)
अग्निः. (1) - विरोचन (पुं) ॥3.3.108.2॥)+++
वर्षार्चिर्व्रीहिभेदाश्च चन्द्राग्न्यर्का विरोचनाः ॥3.3.108.2॥
+++(केशः. (1) - वृजिन (पुं)
देवशिल्पिः. (1) - विश्वकर्मन् (पुं)
सूर्यः. (1) - विश्वकर्मन् (पुं) ॥3.3.109.1॥)+++
क्लेशेऽपि वृजिनो विश्वकर्मार्कसुरशिल्पिनोः ॥3.3.109.1॥
+++(ब्रह्मा. (1) - आत्मन् (पुं)
बुद्धिः. (1) - आत्मन् (पुं)
स्वभावः. (1) - आत्मन् (पुं)
देहः. (1) - आत्मन् (पुं)
धृतिः. (1) - आत्मन् (पुं)
यत्नः. (1) - आत्मन् (पुं) ॥3.3.109.2॥)+++
आत्मायत्नो धृतिर्बुद्धिः स्वभावो ब्रह्म वर्ष्म च ॥3.3.109.2॥
+++(इन्द्रः. (1) - घनाघन (पुं)
मत्तगजः. (1) - घनाघन (पुं)
वर्षुकाब्दः. (1) - घनाघन (पुं) ॥3.3.110.1॥)+++
शक्रो घातुकमत्तेभो वर्षुकाब्दो घनाघनः ॥3.3.110.1॥
+++(अर्थादिदर्पाज्ञानम्. (1) - अभिमान (पुं)
हिंसा. (1) - अभिमान (पुं)
प्रणयम्. (1) - अभिमान (पुं) ॥3.3.110.2॥)+++
अभिमानोऽर्थादिदर्पे ज्ञाने प्रणयहिंसयोः ॥3.3.110.2॥
+++(कठिनगुणः. (1) - घन (पुं)
कठिनम्. (1) - घन (वि)
निरन्तरम्. (1) - घन (वि) ॥3.3.111.1॥)+++
घनो मेघे मूर्तिगुणे त्रिषु मूर्ते निरन्तरे ॥3.3.111.1॥
+++(अधिपतिः. (1) - इन (पुं)
चन्द्रः. (1) - राजन् (पुं)
क्षत्रियः. (1) - राजन् (पुं)
राजा. (1) - राजन् (पुं) ॥3.3.111.2॥)+++
इनः सूर्ये प्रभौ राजा मृगाङ्के क्षत्रिये नृपे ॥3.3.111.2॥
+++(नर्तकी. (1) - वाणिनी (स्त्री)
दूती. (1) - वाणिनी (स्त्री)
नदी. (1) - वाहिनी (स्त्री) ॥3.3.112.1॥)+++
वाणिन्यौ नर्तकीदूत्यौ स्रवन्त्यामपि वाहिनी ॥3.3.112.1॥
+++(इन्द्रस्य वज्रायुधम्. (1) - ह्लादिनी (स्त्री)
तडित्. (1) - ह्लादिनी (स्त्री)
वन्दा. (1) - कामिनी (स्त्री) ॥3.3.112.2॥)+++
ह्लादिन्यौ वज्रतडितौ वन्दायामपि कामिनी ॥3.3.112.2॥
+++(चर्मः. (1) - तनु (स्त्री)
अधोजिह्विका. (1) - सूना (स्त्री) ॥3.3.113.1॥)+++
त्वग्देहयोरपि तनुः सूनाधो जिह्विकापि च ॥3.3.113.1॥
+++(विशालता. (1) - वितान (पुं-नपुं)
यज्ञः. (1) - वितान (पुं-नपुं)
तुच्छम्. (1) - वितान (वि)
मदः. (1) - वितान (वि) ॥3.3.113.2॥)+++
क्रतुविस्तारयोरस्त्री वितानं त्रिषु तुच्छके ॥3.3.113.2॥
+++(कृत्यम्. (1) - केतन (नपुं)
पताका. (1) - केतन (नपुं)
उपनिमन्त्रणम्. (1) - केतन (नपुं) ॥3.3.114.1॥)+++
मन्देऽथ केतनं कृत्ये केतावुपनिमन्त्रणे ॥3.3.114.1॥
+++(ब्राह्मणः. (1) - ब्रह्मन् (नपुं)
प्रजापतिः. (1) - ब्रह्मन् (नपुं)
वेदतत्त्वम्. (1) - ब्रह्मन् (नपुं)
तपः. (1) - ब्रह्मन् (नपुं) ॥3.3.114.2॥)+++
वेदस्तत्त्वं तपो ब्रह्म ब्रह्मा विप्रः प्रजापतिः ॥3.3.114.2॥
+++(हिंसा. (1) - गन्धन (नपुं)
सूचना. (1) - गन्धन (नपुं)
उत्साहनम्. (1) - गन्धन (नपुं) ॥3.3.115.1॥)+++
उत्साहने च हिंसायां सूचने चापि गन्धनम् ॥3.3.115.1॥
+++(आप्यायनः. (1) - आतञ्चन (नपुं)
प्रतीवापः. (1) - आतञ्चन (नपुं)
वेगः. (1) - आतञ्चन (नपुं) ॥3.3.115.2॥)+++
आतञ्चनं प्रतीवापजवनाप्यायनार्थकम् ॥3.3.115.2॥
+++(चिह्नम्. (1) - व्यञ्जन (नपुं)
दाढिका. (1) - व्यञ्जन (नपुं)
दध्यादिव्यञ्जनम्. (1) - व्यञ्जन (नपुं)
अवयवविशेषः. (1) - व्यञ्जन (नपुं) ॥3.3.116.1॥)+++
व्यञ्जनं लाञ्छनं श्मश्रु निष्ठानावयवेष्वपि ॥3.3.116.1॥
+++(लोकवादः. (1) - कौलीन (नपुं)
पश्वहिपक्षिनाम्युद्धम्. (1) - कौलीन (नपुं) ॥3.3.116.2॥)+++
स्यात्कौलीनं लोकवादे युद्धे पश्वहि पक्षिणाम् ॥3.3.116.2॥
+++(निःसरणम्. (1) - उद्यान (नपुं)
प्रयोजनम्. (1) - उद्यान (नपुं) ॥3.3.117.1॥)+++
स्यादुद्यानं निःसरणे वनभेदे प्रयोजने ॥3.3.117.1॥
+++(अवकाशः. (1) - स्थान (नपुं)
स्थितिः. (1) - स्थान (नपुं)
क्रीडा. (1) - देवन (नपुं) ॥3.3.117.2॥)+++
अवकाशे स्थितौ स्थानं क्रीडादावपि देवनम् ॥3.3.117.2॥
+++(पौरुषम्. (1) - उत्थान (नपुं)
सन्निविष्टोद्गमः. (1) - उत्थान (नपुं)
तन्त्रम्. (1) - उत्थान (नपुं) ॥3.3.118.1॥)+++
उत्थानं पौरुषे तन्त्रे सन्निविष्टोद्गमेऽपि च ॥3.3.118.1॥
+++(प्रतिरोधः. (1) - व्युत्थान (नपुं)
विरोधाचरणम्. (1) - व्युत्थान (नपुं) ॥3.3.118.2॥)+++
व्युत्थानं प्रतिरोधे च विरोधाचरणेऽपि च ॥3.3.118.2॥
मारणे मृतसंस्कारे गतौ द्रव्येऽर्थदापने ॥3.3.119.1॥
+++(अनुव्रज्या. (1) - साधन (नपुं)
गतिः. (1) - साधन (नपुं)
मारणम्. (1) - साधन (नपुं)
मृतसंस्कारः. (1) - साधन (नपुं)
निर्वर्तनम्. (1) - साधन (नपुं)
उपकरणम्. (1) - साधन (नपुं)
उपपादनम्. (1) - साधन (नपुं)
द्रव्यम्. (1) - साधन (नपुं) ॥3.3.119.2॥)+++
निर्वर्तनोपकरणानुव्रज्यासु च साधनम् ॥3.3.119.2॥
+++(न्यासार्पणम्. (1) - निर्यातन (नपुं)
वैरशोधनम्. (1) - निर्यातन (नपुं)
दानम्. (1) - निर्यातन (नपुं) ॥3.3.120.1॥)+++
निर्यातनं वैरशुद्धौ दाने न्यासार्पणेऽपि च ॥3.3.120.1॥
+++(भ्रंशः. (1) - व्यसन (नपुं)
कामजदोषः. (1) - व्यसन (नपुं)
कोपजदोषः. (1) - व्यसन (नपुं)
विपत्. (1) - व्यसन (नपुं) ॥3.3.120.2॥)+++
व्यसनं विपदि भ्रंशे दोषे कामजकोपजे ॥3.3.120.2॥
+++(अक्षिलोमन्. (1) - पक्ष्मन् (नपुं)
पुष्परेणुः. (1) - पक्ष्मन् (नपुं)
तन्त्वाद्यंशे़प्यणीयसी. (1) - पक्ष्मन् (नपुं) ॥3.3.121.1॥)+++
पक्ष्माक्षिलोम्नि किञ्जल्के तन्त्वाद्यम्शेऽप्यणीयसि ॥3.3.121.1॥
+++(तिथिभेदः. (1) - पर्वन् (नपुं)
त्रिंशत् कलाः. (1) - पर्वन् (नपुं)
नेत्रच्छदः. (1) - वर्त्मन् (नपुं) ॥3.3.121.2॥)+++
तिथिभेदे क्षणे पर्व वर्त्म नेत्रच्छदेऽध्वनि ॥3.3.121.2॥
+++(अकार्यम्. (1) - कौपीन (नपुं)
गुह्यम्. (1) - कौपीन (नपुं)
रतम्. (1) - मैथुन (नपुं)
सङ्गतिः. (1) - मैथुन (नपुं) ॥3.3.122.1॥)+++
अकार्यगुह्ये कौपीनं मैथुनं सङ्गतौ रते ॥3.3.122.1॥
+++(परमात्मा. (1) - प्रधान (नपुं)
बुद्धिः. (2) - प्रधान (नपुं), प्रज्ञान (नपुं)
चिह्नम्. (1) - प्रज्ञान (नपुं) ॥3.3.122.2॥)+++
प्रधानं परमात्मा धीः प्रज्ञानं बुद्धिचिह्नयोः ॥3.3.122.2॥
+++(फलम्. (1) - प्रसून (नपुं)
वंशः. (1) - निधन (नपुं)
नाशः. (1) - निधन (नपुं) ॥3.3.123.1॥)+++
प्रसूनं पुष्पफलयोर्निधनं कुलनाशयोः ॥3.3.123.1॥
+++(आह्वानम्. (1) - क्रन्दन (नपुं)
रोदनम्. (1) - क्रन्दन (नपुं)
प्रमाणः. (1) - वर्ष्मन् (नपुं) ॥3.3.123.2॥)+++
क्रन्दने रोदनाह्वाने वर्ष्म देहप्रमाणयोः ॥3.3.123.2॥
+++(गृहम्. (1) - धामन् (नपुं)
किरणः. (1) - धामन् (नपुं)
प्रभावः. (1) - धामन् (नपुं)
देहः. (1) - धामन् (नपुं) ॥3.3.124.1॥)+++
गृहदेहत्विट्प्रभावा धामान्यथ चतुष्पथे ॥3.3.124.1॥
+++(चतुष्पथम्. (1) - संस्थान (नपुं)
सन्निवेशः. (1) - संस्थान (नपुं)
प्रधानम्. (1) - लक्ष्मन् (नपुं) ॥3.3.124.2॥)+++
सन्निवेशे च संस्थानं लक्ष्म चिह्नप्रधानयोः ॥3.3.124.2॥
मूलम्
आच्छादने संपिधानमपवारणमित्युभे ॥3.3.125.1॥
शब्दाः
सम्पिधानम्. (1) - आच्छादन (नपुं) ॥3.3.125.1॥
+++(अवाप्तिः. (1) - आराधन (नपुं)
साधनम्. (1) - आराधन (नपुं)
तोषणम्. (1) - आराधन (नपुं) ॥3.3.125.2॥)+++
आराधनं साधने स्यादवाप्तौ तोषणेऽपि च ॥3.3.125.2॥
+++(अध्यासनम्. (1) - अधिष्ठान (नपुं)
चक्रम्. (1) - अधिष्ठान (नपुं)
मूलनगरादन्यनगरम्. (1) - अधिष्ठान (नपुं)
प्रभावः. (1) - अधिष्ठान (नपुं) ॥3.3.126.1॥)+++
अधिष्ठानं चक्रपुरप्रभावाध्यासनेष्वपि ॥3.3.126.1॥
मूलम्
रत्नं स्वजातिश्रेष्ठेऽपि वने सलिलकानने ॥3.3.126.2॥
शब्दाः
स्वजातिश्रेष्ठः. (1) - रत्न (नपुं) ॥3.3.126.2॥
+++(विरलम्. (1) - तलिन (वि)
स्तोकम्. (1) - तलिन (वि) ॥3.3.127.1॥)+++
तलिनं विरले स्तोके वाच्यलिङ्गं तथोत्तरे ॥3.3.127.1॥
+++(एकः. (1) - समान (वि)
समः. (1) - समान (वि)
सत्. (1) - समान (वि)
खलः. (1) - पिशुन (वि)
सूचकः. (1) - पिशुन (वि) ॥3.3.127.2॥)+++
समानाः सत्समैकेस्युः पिशुनौ खलसूचकौ ॥3.3.127.2॥
+++(ऊनः. (2) - हीन (वि), न्यून (वि)
गर्ह्यः. (2) - हीन (वि), न्यून (वि)
वेगिः. (1) - तरस्विन् (वि)
शूरः. (1) - तरस्विन् (वि) ॥3.3.128.1॥)+++
हीनन्यूनावूनगर्ह्यौ वेगिशूरौ तरस्विनौ ॥3.3.128.1॥
+++(अभिग्रस्तः. (1) - अभिपन्न (वि)
अपराधः. (1) - अभिपन्न (वि)
व्यापद्गतः. (1) - अभिपन्न (वि) ॥3.3.128.2॥)+++
अभिपन्नोऽपराद्धोऽभिग्रस्तव्यापद्गतावपि ॥3.3.128.2॥
+++(भूषणम्. (1) - कलाप (पुं)
मयूरपिच्छः. (1) - कलाप (पुं)
शराधारः. (1) - कलाप (पुं)
संहतः. (1) - कलाप (पुं) ॥3.3.129.1॥)+++
कलापो भूषणे बर्हे तूणीरे संहतावपि ॥3.3.129.1॥
+++(परिच्छदः. (1) - परीवाप (पुं)
पर्युप्तिः. (1) - परीवाप (पुं)
सलिलस्थितिः. (1) - परीवाप (पुं) ॥3.3.129.2॥)+++
परिच्छदे परीवापः पर्युप्तौ सलिलस्थितौ ॥3.3.129.2॥
+++(गोपालः. (1) - गोप (पुं)
विष्णुः. (1) - वृषाकपि (पुं)
शिवः. (1) - वृषाकपि (पुं) ॥3.3.130.1॥)+++
गोधुग्गोष्ठपती गोपौ हरविष्णू वृषाकपी ॥3.3.130.1॥
+++(अश्रुः. (1) - बाष्प (पुं)
उष्मा. (1) - बाष्प (पुं)
सिद्धान्नम्. (1) - कशिपु (पुं-नपुं)
वस्त्रम्. (1) - कशिपु (पुं-नपुं) ॥3.3.130.2॥)+++
बाष्पमूष्माश्रु कशिपु त्वन्नमाच्छादनं द्वयम् ॥3.3.130.2॥
+++(हर्म्याद्युपरिगृहम्. (1) - तल्प (पुं-नपुं)
पत्नी. (1) - तल्प (पुं-नपुं)
शय्या. (1) - तल्प (पुं-नपुं)
तरुमूलम्. (1) - विटप (पुं-नपुं) ॥3.3.131.1॥)+++
तल्पं शय्याट्टदारेषु स्तम्बेऽपि विटपोऽस्त्रियाम् ॥3.3.131.1॥
+++(बुधः. (3) - प्राप्तरूप (वि), स्वरूप (वि), अभिरूप (वि)
मनोरमम्. (3) - प्राप्तरूप (वि), स्वरूप (वि), अभिरूप (वि) ॥3.3.131.2॥)+++
प्राप्तरूपस्वरूपाभिरूपा बुधमनोज्ञयोः ॥3.3.131.2॥
+++(कच्छपी. (1) - कच्छपी (स्त्री)
वीणाभेदः. (1) - कच्छपी (स्त्री) ॥3.3.132.1॥)+++
भेद्यलिङ्गा अमी कूर्मी वीणाभेदश्च कच्छपी ॥3.3.132.1॥
रवर्णे पुंसि रेफः स्यात्कुत्सिते वाच्यलिङ्गकः ॥3.3.132.2॥
मूलम्
कुतपो मृगरोमोत्थपटे चाह्नोऽष्टमेंऽशके ॥3.3.132.3॥
शब्दाः
मृगरोमोत्थपटः. (1) - कुतप (पुं) ॥3.3.132.3॥
मूलम्
अन्तराभवसत्वेऽश्वे गन्धर्वो दिव्यगायने ॥3.3.133.1॥
शब्दाः
अन्तराभवसत्वः. (1) - गन्धर्व (पुं) ॥3.3.133.1॥
+++(करवलयः. (1) - कम्बु (पुं)
सर्पः. (1) - द्विजिह्व (पुं)
सूचकः. (1) - द्विजिह्व (पुं) ॥3.3.133.2॥)+++
कम्बुर्ना वलये शङ्खे द्विजिह्वौ सर्पसूचकौ ॥3.3.133.2॥
पूर्वोऽन्यलिङ्गः प्रागाह पुम्बहुत्वेऽपि पूर्वजान् ॥3.3.134.1॥
+++(घटः. (1) - कुम्भ (वि)
मूर्खः. (1) - डिम्भ (पुं) ॥3.3.134.2॥)+++
कुम्भौ घटेभमूर्धांशौ डिम्भौ तु शिशुबालिशौ ॥3.3.134.2॥
+++(जडीभावः. (1) - स्तम्भ (पुं)
स्तम्भः. (1) - स्तम्भ (पुं)
ब्रह्मा. (1) - शम्भु (पुं) ॥3.3.135.1॥)+++
स्तम्भौ स्थूणाजडीभावौ शम्भू ब्रह्मत्रिलोचनौ ॥3.3.135.1॥
+++(शिशुः. (1) - गर्भ (पुं)
जठरम्. (1) - गर्भ (पुं)
प्रणयम्. (1) - विस्रम्भ (पुं) ॥3.3.135.2॥)+++
कुक्षिभ्रूणार्भका गर्भा विस्रम्भः प्रणयेऽपि च ॥3.3.135.2॥
मूलम्
स्याद्भेर्यां दुन्दुभिः पुंसि स्यादक्षे दुन्दुभिः स्त्रियाम् ॥3.3.136.1॥
शब्दाः
अक्षः. (1) - दुन्दुभि (स्त्री) ॥3.3.136.1॥
मूलम्
स्यान्महारजते क्लीबं कुसुम्भं करके पुमान् ॥3.3.136.2॥
शब्दाः
कमण्डलुः. (1) - कुसुम्भ (पुं) ॥3.3.136.2॥
+++(क्षत्रियः. (1) - नाभि (पुं)
गौः. (1) - सुरभि (स्त्री) ॥3.3.137.1॥)+++
क्षत्रियेऽपि च नाभिर्ना सुरभिर्गवि च स्त्रियाम् ॥3.3.137.1॥
+++(सभ्यम्. (1) - सभा (स्त्री)
अधिकारी. (1) - वल्लभ (वि) ॥3.3.137.2॥)+++
सभा संसदि सभ्ये च त्रिष्वध्यक्षेऽपि वल्लभः ॥3.3.137.2॥
+++(प्रग्रहः. (1) - रश्मि (पुं)
वानरः. (1) - प्लवङ्गम (पुं)
मण्डूकः. (1) - प्लवङ्गम (पुं) ॥3.3.138.1॥)+++
किरणप्रग्रहौ रश्मी कपिभेकौ प्लवङ्गमौ ॥3.3.138.1॥
+++(इच्छा. (1) - काम (पुं)
उद्योगः. (1) - पराक्रम (पुं)
शक्तिः. (1) - पराक्रम (पुं) ॥3.3.138.2॥)+++
इच्छामनोभवौ कामौ शक्त्युद्योगौ पराक्रमौ ॥3.3.138.2॥
+++(आचारः. (1) - धर्म (पुं)
नीतिः. (1) - धर्म (पुं)
पुण्यम्. (1) - धर्म (पुं)
सोमयाजिः. (1) - धर्म (पुं)
स्वभावः. (1) - धर्म (पुं)
यमः. (1) - धर्म (पुं) ॥3.3.139.1॥)+++
धर्माः पुण्ययमन्यायस्वभावाचारसोमपाः ॥3.3.139.1॥
+++(उपधा. (1) - उपक्रम (पुं)
उपायपूर्वारम्भः. (1) - उपक्रम (पुं) ॥3.3.139.2॥)+++
उपायपूर्व आरम्भ उपधा चाप्युपक्रमः ॥3.3.139.2॥
+++(मूलनगरादन्यनगरम्. (1) - निगम (पुं)
वणिक्पथः. (1) - निगम (पुं)
वेदः. (1) - निगम (पुं) ॥3.3.140.1॥)+++
वणिक्पथः पुरं वेदो निगमो नागरो वणिक् ॥3.3.140.1॥
+++(नागरः. (1) - नैगम (पुं)
कृष्णवर्णः. (1) - राम (वि)
मनोरमम्. (1) - राम (वि)
शुक्लवर्णयुक्तः. (1) - राम (वि) ॥3.3.140.2॥)+++
नैगमौ द्वौ बले रामो नीलचारुसिते त्रिषु ॥3.3.140.2॥
+++(ग्रामशब्दादिः. (1) - ग्राम (पुं)
समूहः. (1) - ग्राम (पुं)
क्रान्तिः. (1) - विक्रम (पुं) ॥3.3.141.1॥)+++
शब्दादिपूर्वो वृन्देऽपि ग्रामः क्रान्तौ च विक्रमः ॥3.3.141.1॥
+++(स्तुतिः. (1) - स्तोम (पुं)
यज्ञः. (1) - स्तोम (पुं)
अलसः. (1) - जिह्म (पुं)
कुटिलः. (1) - जिह्म (पुं) ॥3.3.141.2॥)+++
स्तोमः स्तोत्रेऽध्वरे वृन्दे जिह्मास्तु कुटिलेऽलसे ॥3.3.141.2॥
+++(धर्मः. (1) - उष्ण (पुं)
चेष्टा. (1) - उष्ण (पुं)
अलङ्कारः. (1) - उष्ण (पुं)
अतस्मित्तज्ज्ञानम्. (1) - विभ्रम (पुं) ॥3.3.142.1॥)+++
उष्णोऽपि घर्मचेष्टालङ्कारे भ्रान्तौ च विभ्रमः ॥3.3.142.1॥
+++(गुल्मरोगः. (1) - गुल्म (पुं)
तरुमूलम्. (1) - गुल्म (पुं)
भगिनी. (1) - जामि (स्त्री)
दोषवारणकृतकुलरक्षास्त्री. (1) - जामि (स्त्री) ॥3.3.142.2॥)+++
गुल्मारुक्स्तम्बसेनाश्च जामिः स्वसृकुलस्त्रियोः ॥3.3.142.2॥
+++(क्षमा. (1) - क्षमा (स्त्री)
हितम्. (1) - क्षम (वि)
सक्तम्. (1) - क्षम (वि)
युक्तम्. (1) - क्षम (वि) ॥3.3.143.1॥)+++
क्षितिक्षान्त्योः क्षमायुक्ते क्षमं शक्ते हिते त्रिषु ॥3.3.143.1॥
+++(हरितवर्णः. (1) - श्याम (वि)
रात्रिः. (1) - श्यामा (स्त्री) ॥3.3.143.2॥)+++
त्रिषु श्यामौ हरित्कृष्णौ श्यामा स्याच्छारिवा निशा ॥3.3.143.2॥
+++(पुच्छम्. (1) - ललाम (नपुं)
पुण्ड्रम्. (1) - ललाम (नपुं)
अश्वभूषा. (1) - ललाम (नपुं)
प्राधान्यम्. (1) - ललाम (नपुं)
पताका. (1) - ललाम (नपुं) ॥3.3.144.1॥)+++
ललामं पुच्छपुण्ड्राश्वभूषाप्राधान्यकेतुषु ॥3.3.144.1॥
+++(अध्यात्मम्. (1) - सूक्ष्म (नपुं)
प्रधानम्. (1) - प्रथम (वि) ॥3.3.144.2॥)+++
सूक्ष्ममध्यात्ममप्याद्ये प्रधाने प्रथमस्त्रिषु ॥3.3.144.2॥
+++(प्रतिकूलम्. (1) - वाम (वि)
सुन्दरम्. (1) - वाम (वि)
न्यूनम्. (1) - अधम (वि) ॥3.3.145.1॥)+++
वामौ वल्गुप्रतीपौ द्वावधमौ न्यूनकुत्सितौ ॥3.3.145.1॥
+++(जीर्णम्. (1) - यातयाम (वि)
परिभुक्तम्. (1) - यातयाम (वि) ॥3.3.145.2॥)+++
जीर्णं च परिभुक्तं च यातयाममिदं द्वयम् ॥3.3.145.2॥
+++(अश्वः. (1) - तार्क्ष्य (पुं)
गृहम्. (1) - क्षय (पुं) ॥3.3.146.1॥)+++
तुरङ्गगरुडौ तार्क्ष्यौ निलयापचयौ क्षयौ ॥3.3.146.1॥
+++(पत्युः कनिष्ठभ्राता. (1) - श्वशुर्य (पुं)
पत्नीभ्राता. (1) - श्वशुर्य (पुं)
भ्रातृपुत्रः. (1) - भ्रातृव्य (पुं)
शत्रुः. (1) - भ्रातृव्य (पुं) ॥3.3.146.2॥)+++
श्वशुर्यौ देवरश्यालौ भ्रातृव्यौ भ्रातृजद्विषौ ॥3.3.146.2॥
+++(रसदब्दः. (1) - पर्जन्य (पुं)
इन्द्रः. (1) - पर्जन्य (पुं)
स्वामिः. (1) - अर्य (पुं) ॥3.3.147.1॥)+++
पर्जन्यौ रसदब्देन्द्रौ स्यादर्यः स्वामिवैश्ययोः ॥3.3.147.1॥
+++(पुष्य-नक्षत्रम्. (1) - तिष्य (पुं)
कलियुगम्. (1) - तिष्य (पुं)
अवसरः. (1) - पर्याय (पुं) ॥3.3.147.2॥)+++
तिष्यः पुष्ये कलियुगे पर्यायोऽवसरे क्रमे ॥3.3.147.2॥
+++(अधीनः. (1) - प्रत्यय (पुं)
ज्ञानम्. (1) - प्रत्यय (पुं)
कारणम्. (1) - प्रत्यय (पुं)
रन्ध्रम्. (1) - प्रत्यय (पुं)
शब्दः. (1) - प्रत्यय (पुं)
शपथः. (1) - प्रत्यय (पुं)
विश्वासः. (1) - प्रत्यय (पुं) ॥3.3.148.1॥)+++
प्रत्ययोऽधीनशपथज्ञानविश्वासहेतुषु ॥3.3.148.1॥
+++(दीर्घद्वेषः. (1) - अनुशय (पुं)
पश्चात्तापः. (1) - अनुशय (पुं) ॥3.3.148.2॥)+++
रन्ध्रे शब्देऽथानुशयो दीर्घद्वेषानुतापयोः ॥3.3.148.2॥
+++(असाकल्यम्. (1) - स्थूलोच्चय (पुं)
गजानां मध्ये गतः. (1) - स्थूलोच्चय (पुं) ॥3.3.149.1॥)+++
स्थूलोच्चयस्त्वसाकल्ये नागानां मध्यमे गते ॥3.3.149.1॥
+++(आचारः. (1) - समय (पुं)
कालः. (1) - समय (पुं)
सम्भाषणम्. (1) - समय (पुं)
शपथः. (1) - समय (पुं)
सिद्धान्तः. (1) - समय (पुं) ॥3.3.149.2॥)+++
समयाः शपथाचारकालसिद्धान्तसंविदः ॥3.3.149.2॥
+++(अशुभम्. (1) - अनय (पुं)
प्राक्तनशुभाशुभकर्मः. (1) - अनय (पुं)
विपत्. (1) - अनय (पुं)
व्यसनम्. (1) - अनय (पुं) ॥3.3.150.1॥)+++
व्यसनान्यशुभं दैवं विपदित्यनयास्त्रयः ॥3.3.150.1॥
+++(अतिक्रमः. (1) - अत्यय (पुं)
दण्डः. (1) - अत्यय (पुं)
दोषः. (1) - अत्यय (पुं)
दुःखम्. (1) - अत्यय (पुं) ॥3.3.150.2॥)+++
अत्ययोऽतिक्रमे कृच्छ्रेदोषे दण्डेऽप्यथापदि ॥3.3.150.2॥
+++(आयतिः. (1) - सम्पराय (पुं)
विपत्. (1) - सम्पराय (पुं)
युद्धम्. (1) - सम्पराय (पुं)
पत्युर्वा पत्न्याः वा पिता. (1) - पूज्य (पुं) ॥3.3.151.1॥)+++
युद्धायत्योः संपरायः पूज्यस्तु श्वशुरेऽपि च ॥3.3.151.1॥
+++(पश्चादवस्थायिबलम्. (1) - सन्नय (पुं)
समूहः. (1) - सन्नय (पुं) ॥3.3.151.2॥)+++
पस्चादवस्थायि बलं समवायश्च सन्नयौ ॥3.3.151.2॥
+++(सन्निवेशः. (1) - संस्त्याय (पुं)
समूहः. (1) - संस्त्याय (पुं)
स्नेहः. (1) - प्रणय (पुं)
विश्रम्भः. (1) - प्रणय (पुं)
याचनम्. (1) - प्रणय (पुं) ॥3.3.152.1॥)+++
सङ्घाते सन्निवेशे च संस्त्यायः प्रणयास्त्वमी ॥3.3.152.1॥
मूलम्
विस्रम्भयाञ्चाप्रेमाणो विरोधेऽपि समुच्छ्रयः ॥3.3.152.2॥
शब्दाः
विरोधः. (1) - समुच्छ्रय (पुं) ॥3.3.152.2॥
+++(शब्दादीन्द्रियम्. (1) - विषय (पुं)
यस्य यत् ज्ञातः तत्. (1) - विषय (पुं) ॥3.3.153.1॥)+++
विषयो यस्य यो ज्ञातस्तत्र शब्दादिकेष्वपि ॥3.3.153.1॥
+++(निर्यासः. (1) - कषाय (पुं-नपुं)
सभा. (1) - प्रतिश्रय (पुं) ॥3.3.153.2॥)+++
निर्यासेऽपि कषायोऽस्त्री सभायां च प्रतिश्रयः ॥3.3.153.2॥
+++(भूम्नि. (1) - प्राय (पुं)
अन्तगमनम्. (1) - प्राय (पुं)
कोपः. (1) - मन्यु (पुं)
दैन्यम्. (1) - मन्यु (पुं)
यज्ञः. (1) - मन्यु (पुं) ॥3.3.154.1॥)+++
प्रायो भूम्न्यन्तगमने मन्युर्दैन्ये क्रतौ युधि ॥3.3.154.1॥
+++(रहस्यम्. (1) - गुह्य (नपुं)
भगशिश्नः. (1) - गुह्य (नपुं)
शपथः. (1) - सत्य (वि)
तथ्यम्. (1) - सत्य (वि) ॥3.3.154.2॥)+++
रहस्योपस्थयोर्गुह्यं सत्यं शपथतथ्ययोः ॥3.3.154.2॥
+++(बलम्. (1) - वीर्य (नपुं)
प्रभावः. (1) - वीर्य (नपुं)
शुभम्. (1) - द्रव्य (नपुं)
गुणाश्रयम्. (1) - द्रव्य (नपुं) ॥3.3.155.1॥)+++
वीर्यं बले प्रभावे च द्रव्यं भव्ये गुणाश्रये ॥3.3.155.1॥
+++(अग्निः. (1) - धिष्ण्य (वि)
गृहम्. (1) - धिष्ण्य (वि)
नक्षत्रम्. (1) - धिष्ण्य (वि)
स्थानम्. (1) - धिष्ण्य (वि)
पुण्यपापकर्मम्. (1) - भाग्य (नपुं) ॥3.3.155.2॥)+++
धिष्ण्यं स्थाने गृहे भेऽग्नौ भाग्यं कर्मशुभाशुभम् ॥3.3.155.2॥
+++(कशेरुः. (1) - गाङ्गेय (नपुं)
दन्तिका. (1) - विशल्या (स्त्री) ॥3.3.156.1॥)+++
कशेरुहेम्नोर्गाङ्गेयं विशल्या दन्तिकापि च ॥3.3.156.1॥
+++(लक्ष्मी. (1) - वृषाकपायी (स्त्री)
पार्वती. (1) - वृषाकपायी (स्त्री)
नाम. (1) - अभिख्या (स्त्री)
शोभा. (1) - अभिख्या (स्त्री) ॥3.3.156.2॥)+++
वृषाकपायी श्रीगौर्योरभिख्या नामशोभयोः ॥3.3.156.2॥
आरम्भो निष्कृतिः शिक्षा पूजनं संप्रधारणम् ॥3.3.157.1॥
+++(आरम्भः. (1) - क्रिया (स्त्री)
चेष्टा. (1) - क्रिया (स्त्री)
निष्कृतिः. (1) - क्रिया (स्त्री)
शिक्षा. (1) - क्रिया (स्त्री)
पूजनम्. (1) - क्रिया (स्त्री)
सम्प्रधारणम्. (1) - क्रिया (स्त्री)
उपायः. (1) - क्रिया (स्त्री)
कर्मम्. (1) - क्रिया (स्त्री)
रोगनिवारणः. (1) - क्रिया (स्त्री) ॥3.3.157.2॥)+++
उपायः कर्म चेष्टा च चिकित्सा च नवक्रियाः ॥3.3.157.2॥
+++(अनातपः. (1) - छाया (स्त्री)
प्रतिमा. (1) - छाया (स्त्री)
शोभा. (1) - छाया (स्त्री)
सूर्यपत्नी. (1) - छाया (स्त्री) ॥3.3.158.1॥)+++
छाया सूर्यप्रिया कान्तिः प्रतिबिम्बमनातपः ॥3.3.158.1॥
+++(हर्म्यादेः प्रकोष्ठम्. (1) - कक्ष्या (स्त्री)
स्त्रीकटीभूषणम्. (1) - कक्ष्या (स्त्री) ॥3.3.158.2॥)+++
कक्ष्या प्रकोष्ठे हर्म्यादेः काञ्च्यां मध्येभबन्धने ॥3.3.158.2॥
+++(क्रिया. (1) - कृत्या (स्त्री)
देवता. (1) - कृत्या (स्त्री)
धनादिभिः भेद्यम्. (1) - कृत्या (वि) ॥3.3.159.1॥)+++
कृत्या क्रियादेवतयोस्त्रिषु भेद्ये धनादिभिः ॥3.3.159.1॥
+++(जनवादः. (1) - जन्य (वि)
अधमम्. (1) - जघन्य (वि) ॥3.3.159.2॥)+++
जन्यं स्याज्जनवादेऽपि जघन्योऽन्त्येऽधमेऽपि च ॥3.3.159.2॥
+++(गर्ह्यः. (1) - वक्तव्य (वि)
अधीनः. (1) - वक्तव्य (वि)
सज्जः. (1) - कल्य (नपुं) ॥3.3.160.1॥)+++
गृह्याधीनौ च वक्तव्यौ कल्यौ सज्जनिरामयौ ॥3.3.160.1॥
+++(अर्थादनपेतः. (1) - अर्थ्य (वि)
आत्मवान्. (1) - अर्थ्य (वि)
मनोरमम्. (1) - पुण्य (वि) ॥3.3.160.2॥)+++
आत्मवाननपेतोऽर्थादर्थ्यौ पुण्यं तु चार्वपि ॥3.3.160.2॥
+++(प्रशस्तम्. (1) - रूप्य (नपुं)
रूप्यकम्. (1) - रूप्य (नपुं)
वल्गुवाक्. (1) - वदान्य (वि) ॥3.3.161.1॥)+++
रूप्यं प्रशस्तरूपेऽपि वदान्यो वल्गुवागपि ॥3.3.161.1॥
+++(न्याय्यम्. (1) - मध्य (वि)
सोमदैवतम्. (1) - सौम्य (वि)
सुन्दरम्. (1) - सौम्य (वि) ॥3.3.161.2॥)+++
न्याय्येऽपि मध्यं सौम्यं तु सुन्दरे सोमदैवते ॥3.3.161.2॥
+++(अवसरः. (1) - वार (पुं)
प्रस्तरम्. (1) - संस्तर (पुं)
यज्ञः. (1) - संस्तर (पुं) ॥3.3.162.1॥)+++
निवहावसरौ वारौ संस्तरौ प्रस्तराध्वरौ ॥3.3.162.1॥
+++(द्वापरयुगम्. (1) - द्वापर (पुं)
संशयः. (1) - द्वापर (पुं) ॥3.3.162.2॥)+++
गुरू गीर्पतिपित्राद्यौ द्वापरौ युगसंशयौ ॥3.3.162.2॥
+++(भेदः. (1) - प्रकार (पुं)
सादृश्यम्. (1) - प्रकार (पुं)
आकृतिः. (1) - आकार (पुं) ॥3.3.163.1॥)+++
प्रकारौ भेदसादृश्ये आकाराविङ्गिताकृती ॥3.3.163.1॥
+++(बाणः. (1) - किंशारु (पुं)
पर्वतः. (1) - मरु (पुं) ॥3.3.163.2॥)+++
किंशारू सस्यशूकेषु मरू धन्वधराधरौ ॥3.3.163.2॥
+++(वृक्षः. (1) - अद्रि (पुं)
सूर्यः. (1) - अद्रि (पुं)
स्त्रीस्तनम्. (1) - पयोधर (पुं)
मेघः. (1) - पयोधर (पुं) ॥3.3.164.1॥)+++
अद्रयो द्रुमशैलार्काः स्त्रीस्तनाब्दौ पयोधरौ ॥3.3.164.1॥
+++(अन्धकारः. (1) - वृत्र (पुं)
शत्रुः. (1) - वृत्र (पुं)
वृत्रासुरः. (1) - वृत्र (पुं)
हस्तः. (1) - कर (पुं) ॥3.3.164.2॥)+++
ध्वान्तारिदानवा वृत्रा बलिहस्तांशवः कराः ॥3.3.164.2॥
+++(भङ्गः. (1) - प्रदर (पुं)
बाणः. (1) - प्रदर (पुं)
नारीरोगः. (1) - प्रदर (पुं)
केशः. (1) - अस्र (पुं) ॥3.3.165.1॥)+++
प्रदरा भङ्गनारीरुक्बाणा अस्राः कचा अपि ॥3.3.165.1॥
+++(अजातशृङ्गगौः. (1) - तूवर (पुं)
कालेप्यश्मश्रुः पुरुषः. (1) - तूवर (पुं) ॥3.3.165.2॥)+++
अजातशृङ्गो गौः कालेऽप्यश्मश्रुर्ना च तूवरौ ॥3.3.165.2॥
+++(सुवर्णम्. (1) - रै (पुं)
पर्यङ्कः. (1) - परिकर (पुं)
परिवारः. (1) - परिकर (पुं) ॥3.3.166.1॥)+++
स्वर्णेऽपि राः परिकरः पर्यङ्कपरिवारयोः ॥3.3.166.1॥
+++(मुक्ताशुद्धिः. (1) - तार (पुं)
वायुः. (1) - शार (पुं)
नानावर्णाः. (1) - शार (वि) ॥3.3.166.2॥)+++
मुक्ताशुद्धौ च तारः स्याच्छारो वायौ स तु त्रिषु ॥3.3.166.2॥
+++(क्रियाकारः. (1) - सङ्गर (पुं)
प्रतिज्ञा. (1) - सङ्गर (पुं)
विपत्. (1) - सङ्गर (पुं)
युद्धम्. (1) - सङ्गर (पुं) ॥3.3.167.1॥)+++
कर्बुरेऽथ प्रतिज्ञाजिसंविदापत्सु सङ्गरः ॥3.3.167.1॥
+++(वेदभेदः. (1) - मन्त्र (पुं)
गुप्तिवादः. (1) - मन्त्र (पुं) ॥3.3.167.2॥)+++
वेदभेदे गुप्तवादे मन्त्रो मित्रो रवावपि ॥3.3.167.2॥
+++(बाणः. (1) - स्वरु (पुं)
यज्ञः. (1) - स्वरु (पुं)
यूपखण्डः. (1) - स्वरु (पुं)
गुह्यम्. (1) - अवस्कर (पुं) ॥3.3.168.1॥)+++
मखेषु यूपखण्डेऽपि स्वरुर्गुह्येऽप्यवस्करः ॥3.3.168.1॥
मूलम्
आडम्बरस्तूर्यरवे गजेन्द्राणां च गर्जिते ॥3.3.168.2॥
शब्दाः
हस्तिगर्जनम्. (1) - आडम्बर (पुं) ॥3.3.168.2॥
+++(चोरकर्मः. (1) - अभिहार (पुं)
कलहाह्वानम्. (1) - अभिहार (पुं)
सन्नहनम्. (1) - अभिहार (पुं) ॥3.3.169.1॥)+++
अभिहारोऽभियोगे च चौर्ये सन्नहनेऽपि च ॥3.3.169.1॥
+++(खड्गपिधानम्. (1) - परीवार (पुं)
परिच्छदः. (1) - परीवार (पुं)
परिजनः. (1) - परीवार (पुं) ॥3.3.169.2॥)+++
स्याज्जङ्गमे परीवारः खड्गकोषे परिच्छदे ॥3.3.169.2॥
+++(पीठाद्यासनम्. (1) - विष्टर (पुं)
वृक्षः. (1) - विष्टर (पुं)
दर्भमुष्टिः. (1) - विष्टर (पुं) ॥3.3.170.1॥)+++
विष्टरो विटपी दर्भमुष्टिः पीठाद्यमासनम् ॥3.3.170.1॥
मूलम्
द्वारि द्वाः स्थे प्रतीहारः प्रतीहार्यप्यनन्तरे ॥3.3.170.2॥
शब्दाः
द्वारस्था योषित्. (1) - प्रतीहारी (स्त्री) ॥3.3.170.2॥
+++(विपुलनकुलः. (1) - बभ्रु (पुं)
विष्णुः. (1) - बभ्रु (पुं)
कपिलवर्णः. (1) - बभ्रु (वि) ॥3.3.171.1॥)+++
विपुले नकुले विष्णौ बभ्रुर्ना पिङ्गले त्रिषु ॥3.3.171.1॥
+++(बलम्. (1) - सार (पुं)
स्थिरांशः. (1) - सार (पुं)
न्याय्यम्. (1) - सार (नपुं)
वरः. (1) - सार (वि) ॥3.3.171.2॥)+++
सारो बले स्थिरांशे च न्याय्ये क्लीबं वरे त्रिषु ॥3.3.171.2॥
+++(द्यूतकृत्. (1) - दुरोदर (पुं)
द्यूते लाप्यमानः. (1) - दुरोदर (पुं)
द्यूतक्रीडनम्. (1) - दुरोदर (नपुं) ॥3.3.172.1॥)+++
दुरोदरो द्यूतकारे पणे द्यूते दुरोदरम् ॥3.3.172.1॥
मूलम्
महारण्ये दुर्गपथे कान्तारं पुन्नपुंसकम् ॥3.3.172.2॥
शब्दाः
महावनम्. (1) - कान्तार (पुं-नपुं) ॥3.3.172.2॥
+++(अन्यशुभद्वेषः. (1) - मत्सर (पुं)
अन्यशुभद्वेषबुद्धिः. (1) - मत्सर (वि)
कृपणः. (1) - मत्सर (वि) ॥3.3.173.1॥)+++
मत्सरोऽन्यशुभद्वेषे तद्वत्कृपणयोस्त्रिषु ॥3.3.173.1॥
+++(देवाद्वृतः. (1) - वर (पुं)
मनाक्प्रियः. (1) - वर (नपुं)
श्रेष्ठः. (1) - वर (वि) ॥3.3.173.2॥)+++
देवाद्वृते वरः श्रेष्ठे त्रिषु क्लीबं मनाक्प्रिये ॥3.3.173.2॥
+++(घटः. (1) - करीर (पुं)
वंशाङ्कुरः. (1) - करीर (पुं-नपुं) ॥3.3.174.1॥)+++
वंशाङ्कुरे करीरोऽस्त्री तरुभेदे घटे च ना ॥3.3.174.1॥
+++(चमूजघनः. (1) - प्रतिसर (पुं)
हस्तसूत्रम्. (1) - प्रतिसर (पुं-नपुं) ॥3.3.174.2॥)+++
ना चमूजघने हस्तसूत्रे प्रतिसरोऽस्त्रियाम् ॥3.3.174.2॥
यमानिलेन्द्रचन्द्रार्कविष्णुसिंहांशुवाजिषु ॥3.3.175.1॥
+++(विष्णुः. (1) - हरि (पुं)
सूर्यः. (1) - हरि (पुं)
चन्द्रः. (1) - हरि (पुं)
वायुः. (1) - हरि (पुं)
यमः. (1) - हरि (पुं)
इन्द्रः. (1) - हरि (पुं)
किरणः. (1) - हरि (पुं)
अश्वः. (1) - हरि (पुं)
शुकः. (1) - हरि (पुं)
वानरः. (1) - हरि (पुं)
मण्डूकः. (1) - हरि (पुं)
कपिलवर्णः. (1) - हरि (वि) ॥3.3.175.2॥)+++
शुकाहिकपिभेकेषु हरिर्ना कपिले त्रिषु ॥3.3.175.2॥
+++(कर्परांशः. (1) - शर्करा (स्त्री)
गतिः. (1) - यात्रा (स्त्री)
यापनम्. (1) - यात्रा (स्त्री) ॥3.3.176.1॥)+++
शर्करा कर्परांशेऽपि यात्रा स्याद्यापने गतौ ॥3.3.176.1॥
+++(भूमिः. (1) - इरा (स्त्री)
वचनम्. (1) - इरा (स्त्री)
जलम्. (1) - इरा (स्त्री)
निद्रा. (1) - तन्द्रा (स्त्री)
अत्यन्तश्रमादिना सर्वेन्द्रियासामर्थ्यः. (1) - तन्द्रा (स्त्री) ॥3.3.176.2॥)+++
इरा भूवाक्सुराप्सुस्यात्तन्द्रा निद्राप्रमीलयोः ॥3.3.176.2॥
+++(उपमाता. (1) - धात्री (स्त्री)
आमलकी. (1) - धात्री (स्त्री) ॥3.3.177.1॥)+++
धात्री स्यादुपमातापि क्षितिरप्यामलक्यपि ॥3.3.177.1॥
+++(मधुमक्षिका. (1) - क्षुद्रा (स्त्री)
नटी. (1) - क्षुद्रा (स्त्री)
वेश्या. (1) - क्षुद्रा (स्त्री)
व्यङ्गा. (1) - क्षुद्रा (स्त्री) ॥3.3.177.2॥)+++
क्षुद्रा व्यङ्गा नटी वेश्या सरघा कण्टकारिका ॥3.3.177.2॥
+++(अल्पम्. (2) - क्षुद्र (वि), मात्रा (स्त्री)
अधमम्. (1) - क्षुद्र (वि)
परद्रोहकारी. (1) - क्षुद्र (वि)
परिमाणः. (1) - मात्रा (स्त्री)
परिवारः. (1) - मात्रा (स्त्री) ॥3.3.178.1॥)+++
त्रिषु क्रूरेऽधमेऽल्पेऽपि क्षुद्रं मात्रा परिच्छदे ॥3.3.178.1॥
+++(कार्त्स्न्यम्. (1) - मात्र (नपुं)
अवधारणम्. (1) - मात्र (नपुं) ॥3.3.178.2॥)+++
अल्पे च परिमाणे सा मात्रं कार्त्स्न्येऽवधारणे ॥3.3.178.2॥
+++(आलेख्यम्. (1) - चित्र (नपुं)
कटिः. (1) - कलत्र (नपुं)
पत्नी. (1) - कलत्र (नपुं) ॥3.3.179.1॥)+++
आलेख्याश्चर्ययोश्चित्रं कलत्रं श्रोणिभार्ययोः ॥3.3.179.1॥
मूलम्
योग्यभाजनयोः पात्रं पत्रं वाहनपक्षयोः ॥3.3.179.2॥
शब्दाः
योग्यः. (1) - पात्र (नपुं) ॥3.3.179.2॥
+++(आज्ञा. (1) - शास्त्र (नपुं)
ग्रन्थम्. (1) - शास्त्र (नपुं)
लोहः. (1) - शस्त्र (नपुं) ॥3.3.180.1॥)+++
निदेशग्रन्थयोः शास्त्रं शस्त्रमायुधलोहयोः ॥3.3.180.1॥
+++(वस्त्रम्. (1) - नेत्र (नपुं)
तरुमूलम्. (1) - नेत्र (नपुं)
पत्नी. (1) - क्षेत्र (नपुं)
देहः. (1) - क्षेत्र (नपुं) ॥3.3.180.2॥)+++
स्याज्जटांशुकयोर्नेत्रं क्षेत्रं पत्नीशरीरयोः ॥3.3.180.2॥
+++(वराहमुखाग्रस्थसृङ्गः. (1) - पोत्र (नपुं)
हलम्. (1) - पोत्र (नपुं)
नाम. (1) - गोत्र (पुं) ॥3.3.181.1॥)+++
मुखाग्रे क्रोडहलयोः पोत्रं गोत्रं तु नाम्नि च ॥3.3.181.1॥
+++(आच्छादनम्. (1) - सत्र (नपुं)
यज्ञः. (1) - सत्र (नपुं)
सदादानम्. (1) - सत्र (नपुं)
वनम्. (1) - सत्र (नपुं) ॥3.3.181.2॥)+++
सत्रमाच्छादने यज्ञे सदादाने वनेऽपि च ॥3.3.181.2॥
+++(विषयः. (1) - अजिर (नपुं)
देहः. (1) - अजिर (नपुं)
वस्त्रम्. (1) - अम्बर (नपुं) ॥3.3.182.1॥)+++
अजिरं विषये कायेऽप्यम्बरं व्योम्नि वाससि ॥3.3.182.1॥
+++(स्वभूमिः. (1) - चक्र (नपुं)
मोक्षः. (1) - अक्षर (नपुं) ॥3.3.182.2॥)+++
चक्रं राष्ट्रेऽप्यक्षरं तु मोक्षेऽपि क्षीरमप्सु च ॥3.3.182.2॥
मूलम्
स्वर्णेऽपि भूरिचन्द्रौ द्वौ द्वारमात्रेऽपि गोपुरम् ॥3.3.183.1॥
शब्दाः
सुवर्णम्. (2) - भूरि (पुं), चन्द्र (पुं) ॥3.3.183.1॥
+++(कपटः. (1) - गह्वर (नपुं)
समीपः. (1) - उपह्वर (नपुं)
विजनः. (1) - उपह्वर (नपुं) ॥3.3.183.2॥)+++
गुहादम्भौ गह्वरे द्वे रहोऽन्तिकमुपह्वरे ॥3.3.183.2॥
+++(पुरोभागः. (1) - अग्र (नपुं)
अधिकम्. (1) - अग्र (नपुं)
उपरि. (1) - अग्र (नपुं)
गृहम्. (1) - पुर (नपुं)
नगरम्. (1) - पुर (नपुं) ॥3.3.184.1॥)+++
पुरोऽधिकमुपर्यग्राण्यगारे नगरे पुरम् ॥3.3.184.1॥
+++(नगरम्. (1) - मन्दिर (नपुं)
विषयः. (1) - राष्ट्र (पुं-नपुं)
उपद्रवम्. (1) - राष्ट्र (पुं-नपुं) ॥3.3.184.2॥)+++
मन्दिरं चाथ राष्ट्रोऽस्त्री विषये स्यादुपद्रवे ॥3.3.184.2॥
+++(बिलम्. (1) - दर (पुं-नपुं)
हीरकः. (1) - वज्र (पुं-नपुं) ॥3.3.185.1॥)+++
दरोऽस्त्रियां भये श्वभ्रे वज्रोऽस्त्री हीरके पवौ ॥3.3.185.1॥
+++(परिच्छदः. (1) - तन्त्र (नपुं)
प्रधानम्. (1) - तन्त्र (नपुं)
सिद्धान्तः. (1) - तन्त्र (नपुं)
सूत्रवायः. (1) - तन्त्र (नपुं) ॥3.3.185.2॥)+++
तन्त्रं प्रधाने सिद्धान्ते सूत्रवाये परिच्छदे ॥3.3.185.2॥
+++(चामरम्. (1) - औशीर (पुं)
दण्डः. (1) - औशीर (पुं)
आसनम्. (1) - औशीर (नपुं)
शय्या. (1) - औशीर (नपुं) ॥3.3.186.1॥)+++
औशीरश्चामरे दण्डेऽप्यौशीरं शयनासने ॥3.3.186.1॥
+++(खड्गफलम्. (1) - पुष्कर (नपुं)
शुण्डाग्रभागः. (1) - पुष्कर (नपुं)
वाद्यभाण्डमुखम्. (1) - पुष्कर (नपुं)
तीर्थविशेषः. (1) - पुष्कर (नपुं) ॥3.3.186.2॥)+++
पुष्करं करिहस्ताग्रे वाद्यभाण्डमुखे जले ॥3.3.186.2॥
व्योम्नि खड्गफले पद्मे तीर्थौषधिविशेषयोः ॥3.3.187.1॥
+++(अवकाशः. (1) - अन्तर (नपुं)
अवधिः. (1) - अन्तर (नपुं)
अवसरः. (1) - अन्तर (नपुं)
अन्तर्धानम्. (1) - अन्तर (नपुं)
अन्तरात्मा. (1) - अन्तर (नपुं)
आत्मीयम्. (1) - अन्तर (नपुं)
बहिः. (1) - अन्तर (नपुं)
बिलम्. (1) - अन्तर (नपुं)
भेदः. (1) - अन्तर (नपुं)
परिधानम्. (1) - अन्तर (नपुं)
तादर्थ्यम्. (1) - अन्तर (नपुं)
विना. (1) - अन्तर (नपुं)
मध्यम्. (1) - अन्तर (नपुं) ॥3.3.187.2॥)+++
अन्तरमवकाशावधिपरिधानान्तर्धिभेदतादर्थ्ये ॥3.3.187.2॥
छिद्रात्मीयविनाबहिरवसरमध्येऽन्तरात्मनि च ॥3.3.188.1॥
+++(मुस्ता. (1) - पिठर (नपुं)
राजकशेरुः. (1) - नागर (नपुं) ॥3.3.188.2॥)+++
मुस्तेऽपि पिठरं राजकशेरुण्यपि नागरम् ॥3.3.188.2॥
+++(घनान्धकारः. (1) - शार्वर (वि)
परद्रोहकारी. (1) - शार्वर (वि) ॥3.3.189.1॥)+++
शार्वरं त्वन्धतमसे घातुके भेद्यलिङ्गकम् ॥3.3.189.1॥
+++(ईषद्रक्तवर्णः. (1) - गौर (वि)
व्रणकारिः. (1) - अरुष्कर (वि) ॥3.3.189.2॥)+++
गौरोऽरुणे सिते पीते व्रणकार्यप्यरुष्करः ॥3.3.189.2॥
+++(कठिनम्. (1) - जठर (पुं-नपुं)
अधस्तात्. (1) - अधर (वि) ॥3.3.190.1॥)+++
जठरः कठिनेऽपि स्यादधस्तादपि चाधरः ॥3.3.190.1॥
+++(अनाकुलः. (1) - एकाग्र (वि)
व्यासक्तः. (1) - व्यग्र (वि)
आकुलः. (1) - व्यग्र (वि) ॥3.3.190.2॥)+++
अनाकुलेऽपि चैकाग्रो व्यग्रो व्यासक्त आकुले ॥3.3.190.2॥
+++(श्रेष्ठः. (2) - उत्तर (वि), अनुत्तर (वि)
उपरि. (1) - उत्तर (वि)
उत्तरदिक्. (1) - उत्तर (वि)
अश्रेष्ठः. (1) - अनुत्तर (वि)
अधः. (1) - अनुत्तर (वि)
पूर्वदिक्. (1) - अनुत्तर (वि) ॥3.3.191.1॥)+++
उपर्युदीच्यश्रेष्ठेष्वप्युत्तरः स्यादनुत्तरः ॥3.3.191.1॥
+++(अन्यः. (1) - पर (पुं)
उत्तमः. (1) - पर (पुं)
दूरम्. (1) - पर (पुं) ॥3.3.191.2॥)+++
एषां विपर्यये श्रेष्ठे दूरानात्मोत्तमाः पराः ॥3.3.191.2॥
+++(मधुरम्. (1) - मधुर (वि)
प्रियम्. (1) - मधुर (वि) ॥3.3.192.1॥)+++
स्वादुप्रियौ च मधुरौ क्रूरौ कठिननिर्दयौ ॥3.3.192.1॥
+++(महत्. (1) - उदार (वि)
धाता. (1) - उदार (वि)
अन्यः. (1) - इतर (पुं)
नीचः. (1) - इतर (पुं) ॥3.3.192.2॥)+++
उदारो दातृमहतोरितरस्त्वन्यनीचयोः ॥3.3.192.2॥
+++(अलसः. (1) - स्वैर (वि)
स्वच्छन्दः. (1) - स्वैर (वि)
उद्दीप्तम्. (1) - शुभ्र (वि) ॥3.3.193.1॥)+++
मन्दस्वच्छन्दयोः स्वैरः शुभ्रमुद्दीप्तशुक्लयोः ॥3.3.193.1॥
+++(किरीटम्. (1) - मौलि (वि)
संयतकेशः. (1) - मौलि (वि)
शिरोमध्यस्थचूडा. (1) - मौलि (वि) ॥3.3.193.2॥)+++
चूडा किरीटं केशाश्च संयता मौलयस्त्रयः ॥3.3.193.2॥
+++(हस्तिः. (1) - पीलु (पुं)
बाणः. (1) - पीलु (पुं)
पुष्पम्. (1) - पीलु (पुं) ॥3.3.194.1॥)+++
द्रुमप्रभेदमातङ्गकाण्डपुष्पाणि पीलवः ॥3.3.194.1॥
मूलम्
कृतान्तानेहसोः कालश्चतुर्थेऽपि युगे कलिः ॥3.3.194.2॥
शब्दाः
कलियुगम्. (1) - कलि (पुं) ॥3.3.194.2॥
+++(हरिणः. (1) - कमल (पुं)
प्रावारः. (1) - कम्बल (पुं) ॥3.3.195.1॥)+++
स्यात्कुरङ्गेऽपि कमलः प्रावारेऽपि च कम्बलः ॥3.3.195.1॥
+++(उपहारः. (1) - बलि (पुं)
प्राण्यङ्गजम्. (1) - बलि (स्त्री) ॥3.3.195.2॥)+++
करोपहारयोः पुंसि बलिः प्राण्यङ्गजे स्त्रियाम् ॥3.3.195.2॥
+++(काकः. (1) - बल (पुं)
स्थौल्यम्. (1) - बल (नपुं) ॥3.3.196.1॥)+++
स्थौल्यसामर्थ्यसैन्येषु बलं ना काकसीरिणोः ॥3.3.196.1॥
+++(वातिः. (1) - वातूल (पुं)
वातासहः. (1) - वातूल (वि) ॥3.3.196.2॥)+++
वातूलः पुंसि वात्यायामपि वातासहे त्रिषु ॥3.3.196.2॥
+++(वक्राशयः. (1) - व्याल (वि)
सर्पः. (1) - व्याल (पुं) ॥3.3.197.1॥)+++
भेद्यलिङ्गः शठे व्यालः पुंसि श्वापदसर्पयोः ॥3.3.197.1॥
+++(पापम्. (1) - मल (पुं-नपुं)
पुराणकिट्टम्. (1) - मल (पुं-नपुं)
रोगः. (1) - शूल (पुं-नपुं)
शूलम्. (1) - शूल (पुं-नपुं) ॥3.3.197.2॥)+++
मलोऽस्त्री पापविट्किट्टान्यस्त्री शूलं रुगायुधम् ॥3.3.197.2॥
+++(शङ्कुः. (1) - कील (स्त्री-पुं)
अस्रिः. (1) - पालि (स्त्री)
अङ्कः. (1) - पालि (स्त्री)
पङ्क्तिः. (1) - पालि (स्त्री) ॥3.3.198.1॥)+++
शङ्कावपि द्वयोः कीलः पालिस्त्र्यश्र्यङ्कपङ्क्तिषु ॥3.3.198.1॥
+++(कलाकौशल्यादिकर्मः. (1) - कला (स्त्री)
सखी. (1) - आली (स्त्री)
पङ्क्तिः. (1) - आली (स्त्री) ॥3.3.198.2॥)+++
कला शिल्पे कालभेदेप्याली सख्यावली अपि ॥3.3.198.2॥
+++(अब्ध्यम्बुविकृतिः. (1) - वेला (स्त्री)
मर्यादा. (1) - वेला (स्त्री)
समयः. (1) - वेला (स्त्री) ॥3.3.199.1॥)+++
अब्ध्यम्बुविकृतौ वेला कालमर्यादयोरपि ॥3.3.199.1॥
+++(कृत्तिका. (1) - बहुला (स्त्री)
गौः. (1) - बहुला (स्त्री)
अग्निः. (1) - बहुल (वि)
कृष्णवर्णः. (1) - बहुल (वि) ॥3.3.199.2॥)+++
बहुलाः कृत्तिका गावो बहुलोऽग्नौ शितौ त्रिषु ॥3.3.199.2॥
+++(विलासम्. (1) - लीला (स्त्री)
क्रिया. (1) - लीला (स्त्री)
शर्करा. (1) - उपला (स्त्री) ॥3.3.200.1॥)+++
लीला विलासक्रिययोरुपला शर्करापि च ॥3.3.200.1॥
+++(रक्तम्. (1) - कीलाल (नपुं)
आकाशः. (1) - कीलाल (नपुं)
आद्यः. (1) - मूल (नपुं)
मूलानक्षत्रम्. (1) - मूल (नपुं)
शिफा. (1) - मूल (नपुं) ॥3.3.200.2॥)+++
शोणितेऽम्भसि कीलालं मूलमाद्ये शिफाभयोः ॥3.3.200.2॥
+++(समूहः. (1) - जाल (नपुं)
जालकम्. (1) - जाल (नपुं)
नूतनकलिका. (1) - जाल (नपुं) ॥3.3.201.1॥)+++
जालं समूह आनायगवाक्षक्षारकेष्वपि ॥3.3.201.1॥
+++(स्वभावः. (1) - शील (नपुं)
सद्वृत्तम्. (1) - शील (नपुं)
सस्यहेतुकृतम्. (1) - फल (नपुं) ॥3.3.201.2॥)+++
शीलं स्वभावे सद्वृत्ते सस्ये हेतुकृते फलम् ॥3.3.201.2॥
+++(नेत्ररुक्. (1) - पटल (नपुं)
समूहः. (1) - पटल (स्त्री-नपुं) ॥3.3.202.1॥)+++
छदिर्नेत्ररुजोः क्लीबं समूहे पटलं न ना ॥3.3.202.1॥
+++(अधः. (1) - तल (नपुं)
स्वरूपः. (1) - तल (नपुं)
मांसम्. (1) - पल (नपुं) ॥3.3.202.2॥)+++
अधस्स्वरूपयोरस्त्री तलं स्याच्चामिषे पलम् ॥3.3.202.2॥
+++(बडवाग्निः. (1) - पाताल (नपुं)
अधमम्. (1) - चेल (वि) ॥3.3.203.1॥)+++
और्वानलेऽपि पातालं चेलं वस्त्रेऽधमे त्रिषु ॥3.3.203.1॥
+++(शङ्कुभिः कीर्णश्वभ्रम्. (1) - कुकूल (नपुं)
तुषानलः. (1) - कुकूल (पुं) ॥3.3.203.2॥)+++
कुकूलं शङ्कुभिः कीर्णे श्वभ्रे ना तु तुषानले ॥3.3.203.2॥
+++(निश्चितम्. (1) - केवल (नपुं)
एकः. (1) - केवल (वि)
समग्रम्. (1) - केवल (वि) ॥3.3.204.1॥)+++
निर्णीते केवलमिति त्रिलिङ्गं त्वेककृत्स्नयोः ॥3.3.204.1॥
+++(क्षेमम्. (1) - कुशल (नपुं)
पर्याप्तिः. (1) - कुशल (नपुं)
पुण्यम्. (1) - कुशल (नपुं)
शिक्षितः. (1) - कुशल (वि) ॥3.3.204.2॥)+++
पर्याप्तिक्षेमपुण्येषु कुशलं शिक्षिते त्रिषु ॥3.3.204.2॥
+++(नूतनाङ्कुरः. (1) - प्रवाल (पुं-नपुं)
जडम्. (1) - स्थूल (वि) ॥3.3.205.1॥)+++
प्रवालमङ्कुरेऽप्यस्त्री त्रिषु स्थूलं जडेऽपि च ॥3.3.205.1॥
+++(दन्तुरः. (1) - कराल (वि)
उन्नतः. (1) - कराल (वि)
चारपुरुषः. (1) - पेशल (वि) ॥3.3.205.2॥)+++
करालो दन्तुरे तुङ्गे चारौ दक्षे च पेशलः ॥3.3.205.2॥
+++(मूर्खः. (1) - बाल (पुं)
शिशुः. (1) - बाल (पुं)
सतृष्णः. (1) - लोल (वि) ॥3.3.206.1॥)+++
मूर्खेऽर्भकेऽपि बालः स्याल्लोलश्चलसतृष्णयोः ॥3.3.206.1॥
+++(बलभद्रः. (1) - कुल (नपुं)
गृहम्. (1) - कुल (नपुं)
कुबेरः. (1) - एककुण्डल (वि) ॥3.3.206.2॥)+++
कुलं गृहेऽपि तालाङ्के कुबेरे चैककुण्डलः ॥3.3.206.2॥
+++(अवमानितम्. (1) - हेला (स्त्री)
सूर्यः. (1) - हेलि (पुं)
युद्धम्. (1) - हिलि (पुं) ॥3.3.206.3॥)+++
स्त्रीभावावज्ञयोर्हेला हेलिः सूर्ये रणे हिलिः ॥3.3.206.3॥
+++(राजा. (1) - हाल (पुं)
सुरा. (1) - हाल (पुं)
शकलः. (1) - दल (नपुं) ॥3.3.206.4॥)+++
हालः स्यान्नृपतौ मद्ये शकलच्छदयोर्दलम् ॥3.3.206.4॥
+++(चित्रोपकरणशलाका. (1) - तूलि (स्त्री)
शय्या. (1) - तूलि (स्त्री)
तूलम्. (1) - तूलि (स्त्री) ॥3.3.206.5॥)+++
तूलिश्चित्रोपकरणशलाकातूलशय्ययोः ॥3.3.206.5॥
+++(शब्दः. (1) - तुमुल (नपुं)
व्याकुलम्. (1) - तुमुल (नपुं)
कर्णपाली. (1) - शष्कुली (स्त्री) ॥3.3.206.6॥)+++
तुमुलं व्याकुले शब्दे शष्कुली कर्णपाल्यपि ॥3.3.206.6॥
+++(वनम्. (2) - दव (पुं), दाव (पुं)
जननम्. (1) - भव (पुं) ॥3.3.206.7॥)+++
दवदावौ वनारण्यवह्नी जन्महरौ भवौ ॥3.3.206.7॥
+++(मन्त्री. (1) - सचिव (पुं)
सहायकः. (1) - सचिव (पुं)
वृक्षः. (1) - धव (पुं)
पुरुषः. (1) - धव (पुं) ॥3.3.207.1॥)+++
मन्त्री सहायः सचिवौ पतिशाखिनरा धवाः ॥3.3.207.1॥
+++(पर्वतः. (1) - अवि (स्त्री)
मेषः. (1) - अवि (स्त्री)
सूर्यः. (1) - अवि (स्त्री)
आज्ञा. (1) - हव (पुं)
यज्ञः. (1) - हव (पुं) ॥3.3.207.2॥)+++
अवयः शैलमेषार्का आज्ञाह्वानाध्वरा हवाः ॥3.3.207.2॥
+++(सत्ता. (1) - भाव (पुं)
स्वभावः. (1) - भाव (पुं)
अभिप्रायः. (1) - भाव (पुं)
चेष्टा. (1) - भाव (पुं)
आत्मा. (1) - भाव (पुं)
जननम्. (1) - भाव (पुं) ॥3.3.208.1॥)+++
भावः सत्तास्वभावाभिप्रायचेष्टात्मजन्मसु ॥3.3.208.1॥
+++(फलम्. (1) - प्रसव (पुं)
पुष्पम्. (1) - प्रसव (पुं)
उत्पादः. (1) - प्रसव (पुं) ॥3.3.208.2॥)+++
स्यादुत्पादे फले पुष्पे प्रसवो गर्भमोचने ॥3.3.208.2॥
+++(अपह्नवः. (1) - निह्नव (पुं)
अविश्वासः. (1) - निह्नव (पुं)
कपटः. (1) - निह्नव (पुं) ॥3.3.209.1॥)+++
अविश्वासेऽपह्नवेऽपि निकृतावपि निह्नवः ॥3.3.209.1॥
+++(इच्छाप्रसवः. (1) - उत्सव (पुं)
कोपः. (1) - उत्सव (पुं)
उत्सेकः. (1) - उत्सव (पुं) ॥3.3.209.2॥)+++
उत्सेकामर्षयोरिच्छाप्रसरे मह उत्सवः ॥3.3.209.2॥
+++(प्रभावः. (1) - अनुभाव (पुं)
सताम्मतिनिश्चयः. (1) - अनुभाव (पुं) ॥3.3.210.1॥)+++
अनुभावः प्रभावे च सतां च मतिनिश्चये ॥3.3.210.1॥
+++(आद्योपलब्धिः. (1) - प्रभव (पुं)
जन्महेतुः. (1) - प्रभव (पुं)
स्थानम्. (1) - प्रभव (पुं) ॥3.3.210.2॥)+++
स्याज्जन्महेतुः प्रभवः स्थानं चाद्योपलब्धये ॥3.3.210.2॥
+++(शूद्रायां विप्रतनयः. (1) - पारशव (पुं)
आयुधम्. (1) - पारशव (पुं) ॥3.3.211.1॥)+++
शूद्रायां विप्रतनये शस्त्रे पारशवो मतः ॥3.3.211.1॥
+++(भभेदः. (1) - ध्रुव (पुं)
निश्चितम्. (1) - ध्रुव (नपुं)
शाश्वतम्. (1) - ध्रुव (वि) ॥3.3.211.2॥)+++
ध्रुवो भभेदे क्लीबे तु निश्चिते शाश्वते त्रिषु ॥3.3.211.2॥
+++(आत्मा. (1) - स्व (पुं)
धनम्. (1) - स्व (पुं-नपुं)
आत्मीयम्. (1) - स्व (वि) ॥3.3.212.1॥)+++
स्वो ज्ञातावात्मनि स्वं त्रिष्वात्मीये स्वोऽस्त्रियां धने ॥3.3.212.1॥
मूलम्
स्त्रीकटीवस्त्रबन्धेऽपि नीवी परिपणेऽपि च ॥3.3.212.2॥
शब्दाः
स्त्रीकटीवस्त्रबन्धः. (1) - नीवी (स्त्री) ॥3.3.212.2॥
+++(युद्धम्. (1) - द्वन्द्व (नपुं)
युग्मम्. (1) - द्वन्द्व (नपुं) ॥3.3.213.1॥)+++
शिवा गौरीफेरवयोर्द्वन्द्वं कलहयुग्मयोः ॥3.3.213.1॥
+++(शरीरवायुः. (1) - सत्त्व (नपुं)
वस्तु. (1) - सत्त्व (नपुं)
व्यवसायः. (1) - सत्त्व (नपुं)
जन्तुः. (1) - सत्त्व (पुं-नपुं) ॥3.3.213.2॥)+++
द्रव्यासु व्यवसायेऽपि सत्त्वमस्त्री तु जन्तुषु ॥3.3.213.2॥
मूलम्
क्लीबं नपुंसकं षण्डे वाच्यलिङ्गमविक्रमे ॥3.3.214.1॥
शब्दाः
अविक्रमः. (1) - क्लीब (वि) ॥3.3.214.1॥
+++(मनुष्यः. (1) - विश् (पुं)
अभिमरः. (1) - स्पश (पुं) ॥3.3.214.2॥)+++
द्वौ विशौ वैश्यमनुजौ द्वौ चराभिमरौ स्पशौ ॥3.3.214.2॥
+++(समूहः. (1) - राशि (पुं)
मेषादयः. (1) - राशि (पुं) ॥3.3.215.1॥)+++
द्वौ राशी पुञ्जमेषाद्यौ द्वौ वंशौ कुलमस्करौ ॥3.3.215.1॥
+++(प्रकाशः. (1) - वीकाश (पुं)
विजनः. (1) - वीकाश (पुं)
भृतिः. (1) - निर्वेश (पुं)
अनुभवः. (1) - निर्वेश (पुं) ॥3.3.215.2॥)+++
रहः प्रकाशौ वीकाशौ निर्वेशो भृतिभोगयोः ॥3.3.215.2॥
+++(कृपणः. (1) - कीनाश (पुं)
कृषीवलः. (1) - कीनाश (पुं)
यमः. (1) - कीनाश (पुं) ॥3.3.216.1॥)+++
कृतान्ते पुंसि कीनाशः क्षुद्रकर्षकयोस्त्रिषु ॥3.3.216.1॥
+++(लक्ष्यम्. (1) - अपदेश (पुं)
निमित्तम्. (1) - अपदेश (पुं)
व्याजम्. (1) - अपदेश (पुं)
जलम्. (1) - कुश (नपुं) ॥3.3.216.2॥)+++
पदे लक्ष्ये निमित्तेऽपदेशः स्यात्कुशमप्सु च ॥3.3.216.2॥
+++(अनेकविधा अवस्था. (1) - दशा (स्त्री)
आयता तृष्णा. (1) - आशा (स्त्री) ॥3.3.217.1॥)+++
दशावस्थानेकविधाप्याशा तृष्णापि चायता ॥3.3.217.1॥
+++(स्त्री. (1) - वशा (स्त्री)
ज्ञानम्. (1) - दृश् (स्त्री)
ज्ञानशीलः. (1) - दृश् (वि) ॥3.3.217.2॥)+++
वशा स्त्री करिणी च स्यात्दृग्ज्ञाने ज्ञातरि त्रिषु ॥3.3.217.2॥
+++(अमसृणः. (1) - कर्कश (पुं)
कठिनम्. (1) - कर्कश (पुं)
साहसिकः. (1) - कर्कश (पुं) ॥3.3.218.1॥)+++
स्यात्कर्कशः साहसिकः कठोरामसृणावपि ॥3.3.218.1॥
+++(अतिप्रसिद्धः. (1) - प्रकाश (पुं)
शिशुः. (1) - बालिश (पुं) ॥3.3.218.2॥)+++
प्रकाशोऽतिप्रसिद्धेऽपि शिशावज्ञे च बालिशः ॥3.3.218.2॥
+++(नूतनकलिका. (1) - कोश (पुं-नपुं)
खड्गपिधानम्. (1) - कोश (पुं-नपुं)
भण्डारम्. (1) - कोश (पुं-नपुं)
दिव्यम्. (1) - कोश (पुं-नपुं) ॥3.3.219.1॥)+++
कोशोऽस्त्री कुड्मले खड्गपिधानेऽर्थौघदिव्ययोः ॥3.3.219.1॥
+++(अपचयः. (1) - नाश (पुं)
तिरोधानम्. (1) - नाश (पुं)
प्रियः. (1) - जीवितेश (पुं)
यमः. (1) - जीवितेश (पुं) ॥3.3.219.2॥)+++
नाशः क्षये तिरोधाने जीवितेशः प्रिये यमे ॥3.3.219.2॥
+++(परद्रोहकारी. (1) - निस्त्रिंश (पुं)
सूर्यः. (1) - अंशु (पुं)
कराः. (1) - अंशु (पुं) ॥3.3.219.3॥)+++
नृशंसखड्गौ निस्त्रिंशावंशुः सूर्येंशवः कराः ॥3.3.219.3॥
+++(आख्याशालिः. (1) - आशु (नपुं)
बन्धनम्. (1) - पाश (पुं)
आयुधम्. (1) - पाश (पुं) ॥3.3.219.4॥)+++
आश्वाख्या शालिशीघ्रार्थे पाशो बन्धनशस्त्रयोः ॥3.3.219.4॥
+++(देवः. (1) - अनिमिष (पुं)
मत्स्यः. (1) - अनिमिष (पुं)
मनुष्यः. (1) - पुरुष (पुं) ॥3.3.219.5॥)+++
सुरमत्स्यावनिमिषौ पुरुषावात्ममानवौ ॥3.3.219.5॥
+++(मत्स्यात्खगः. (1) - ध्वाङ्क्ष (पुं)
तृणम्. (1) - कक्ष (पुं)
शाखादिभिर्विस्तृतवल्ली. (1) - कक्ष (पुं) ॥3.3.220.1॥)+++
काकमत्स्यात्खगौ ध्वाङ्क्षौ कक्षौ च तृणवीरुधौ ॥3.3.220.1॥
+++(प्रग्रहः. (1) - अभीषु (पुं)
किरणः. (1) - अभीषु (पुं)
मर्दनम्. (1) - प्रैष (पुं)
प्रेषणम्. (1) - प्रैष (पुं) ॥3.3.220.2॥)+++
अभीषुः प्रग्रहे रश्मौ प्रैषः प्रेषणमर्दने ॥3.3.220.2॥
+++(सहायः. (1) - पक्ष (पुं)
शिरोवेष्टनम्. (1) - उष्णीष (पुं)
किरीटम्. (1) - उष्णीष (पुं) ॥3.3.221.1॥)+++
पक्षः सहायेऽप्युष्णीषः शिरोवेष्टकिरीटयोः ॥3.3.221.1॥
+++(मूषकः. (1) - वृष (पुं)
श्रेष्ठः. (1) - वृष (पुं)
सुकृतः. (1) - वृष (पुं)
शुक्रलः. (1) - वृष (पुं) ॥3.3.221.2॥)+++
शुक्रले मूषिके श्रेष्ठे सुकृते वृषभे वृषः ॥3.3.221.2॥
+++(नूतनकलिका. (1) - कोष (पुं-नपुं)
खड्गपिधानम्. (1) - कोष (पुं-नपुं)
भण्डारम्. (1) - कोष (पुं-नपुं)
दिव्यम्. (1) - कोष (पुं-नपुं) ॥3.3.222.1॥)+++
कोषोऽस्त्री कुड्मले खड्गपिधानेऽर्थौघदिव्ययोः ॥3.3.222.1॥
+++(चक्रम्. (1) - अक्ष (पुं)
इन्द्रियम्. (1) - अक्ष (पुं)
व्यवहारः. (1) - अक्ष (पुं)
अक्षः. (1) - आकर्ष (पुं)
शारीणामाधारपट्टः. (1) - आकर्ष (पुं)
द्यूतक्रीडनम्. (1) - आकर्ष (पुं) ॥3.3.222.2॥)+++
द्यूतेऽक्षे शारिफलकेऽप्याकर्षोऽथाक्षमिन्द्रिये ॥3.3.222.2॥
ना द्यूताङ्गे कर्षचक्रे व्यवहारे कलिद्रुमे ॥3.3.223.1॥
+++(करीषाग्निः. (1) - कर्षु (पुं)
वार्ता. (1) - कर्षु (पुं)
कुल्याभिधायिनी. (1) - कर्षू (स्त्री) ॥3.3.223.2॥)+++
कर्षूर्वार्त्ता करीषाग्निः कर्षूः कुल्याभिधायिनी ॥3.3.223.2॥
मूलम्
पुम्भावे तत्क्रियायां च पौरुषं विषमप्सु च ॥3.3.224.1॥
शब्दाः
जलम्. (1) - विष (नपुं) ॥3.3.224.1॥
+++(उपादानम्. (1) - आमिष (पुं-नपुं)
अपराधः. (1) - किल्बिष (नपुं) ॥3.3.224.2॥)+++
उपादानेऽप्यामिषं स्यादपराधेऽपि किल्बिषम् ॥3.3.224.2॥
+++(लोकधात्वंशः. (1) - वर्ष (पुं-नपुं)
वत्सरः. (1) - वर्ष (पुं-नपुं) ॥3.3.225.1॥)+++
स्याद्वृष्टौ लोकधात्वंशे वत्सरे वर्षमस्त्रियाम् ॥3.3.225.1॥
+++(नृत्येक्षणम्. (1) - प्रेक्षा (स्त्री)
भृतिः. (1) - भिक्षा (स्त्री)
सेवा. (1) - भिक्षा (स्त्री)
याचनम्. (1) - भिक्षा (स्त्री) ॥3.3.225.2॥)+++
प्रेक्षा नृत्येक्षणं प्रज्ञा भिक्षा सेवार्थना भृतिः ॥3.3.225.2॥
+++(शोभा. (1) - त्विष् (स्त्री)
कार्त्स्न्यम्. (1) - न्यक्ष (वि)
अधमम्. (1) - न्यक्ष (वि) ॥3.3.226.1॥)+++
त्विट् शोभापि त्रिषु परे न्यक्षं कार्त्स्न्यनिकृष्टयोः ॥3.3.226.1॥
+++(प्रत्यक्षः. (1) - अध्यक्ष (वि)
अप्रेमः. (1) - रूक्ष (वि)
अचिक्कणः. (1) - रूक्ष (वि) ॥3.3.226.2॥)+++
प्रत्यक्षेऽधिकृतेऽध्यक्षो रूक्षस्त्वप्रेम्ण्यचिक्कणे ॥3.3.226.2॥
+++(व्याजम्. (1) - लक्ष (नपुं)
लक्षसङ्ख्या. (1) - लक्ष (नपुं)
शब्दः. (1) - घोष (पुं)
गवां स्थानम्. (1) - घोष (पुं) ॥3.3.226.3॥)+++
व्याजसंख्याशरव्येषु लक्षं घोषौ रवव्रजौ ॥3.3.226.3॥
+++(भित्तिः. (1) - कपिशीर्ष (नपुं)
शृङ्गः. (1) - कपिशीर्ष (नपुं)
चषकः. (1) - अनुतर्ष (पुं)
सुरा. (1) - अनुतर्ष (पुं) ॥3.3.226.4॥)+++
कपिशीर्षं भित्तिशृङ्गेऽनुतर्षश्चषकः सुरा ॥3.3.226.4॥
+++(वातादयः. (1) - दोष (पुं)
रात्रिः. (1) - दोषा (अव्य)
कुक्कुटः. (1) - दक्ष (वि) ॥3.3.226.5॥)+++
दोषो वातादिके दोषा रात्रौ दक्षोऽपि कुक्कुटे ॥3.3.226.5॥
+++(शुण्डाग्रभागः. (1) - गण्डूष (पुं)
मुखे जलपूरणम्. (1) - गण्डूष (स्त्री-पुं) ॥3.3.226.6॥)+++
शुण्डाग्रभागे गण्डूषो द्वयोश्च मुखपूरणे ॥3.3.226.6॥
रविश्वेतच्छदौ हंसौ सूर्यवह्नी विभावसू ॥3.3.227.1॥
+++(सद्योजातवृषभवत्सः. (1) - वत्स (पुं)
वर्षम्. (1) - वत्स (पुं)
चातकपक्षी. (1) - दिवौकस् (पुं) ॥3.3.227.2॥)+++
वत्सौ तर्णकवर्षौ द्वौ सारङ्गाश्च दिवौकसः ॥3.3.227.2॥
+++(गुणः. (1) - रस (पुं)
रागः. (1) - रस (पुं)
शृङ्गारादिः. (1) - रस (पुं)
विषम्. (1) - रस (पुं)
वीर्यम्. (1) - रस (पुं)
द्रवः. (1) - रस (पुं) ॥3.3.228.1॥)+++
शृङ्गारादौ विषे वीर्ये गुणे रागे द्रवे रसः ॥3.3.228.1॥
+++(कर्णाभरणम्. (2) - उत्तंस (पुं), अवतंस (पुं)
शिखास्थमाल्यम्. (2) - उत्तंस (पुं), अवतंस (पुं) ॥3.3.228.2॥)+++
पुंस्युत्तंसावतंसौ द्वौ कर्णपूरेऽपि शेखरे ॥3.3.228.2॥
+++(अग्निः. (1) - वसु (पुं)
किरणः. (1) - वसु (पुं)
देवेष्वेकः. (1) - वसु (पुं)
धनम्. (1) - वसु (नपुं)
रत्नम्. (1) - वसु (नपुं) ॥3.3.229.1॥)+++
देवभेदेऽनले रश्मौ वसू रत्ने धने वसु ॥3.3.229.1॥
+++(विष्णुः. (1) - वेधस् (पुं)
हिताशंसा. (1) - आशिस् (स्त्री) ॥3.3.229.2॥)+++
विष्णौ च वेधाः स्त्री त्वाशीर्हिताशंसाहिदंष्ट्रयोः ॥3.3.229.2॥
+++(प्रार्थना. (1) - लालसा (स्त्री)
औत्सुक्यम्. (1) - लालसा (स्त्री)
चौर्यादिपरोपद्रवकर्मः. (1) - हिंसा (स्त्री) ॥3.3.230.1॥)+++
लालसे प्रार्थनौत्सुक्ये हिंसा चौर्यादिकर्म च ॥3.3.230.1॥
+++(अश्वा. (1) - प्रसू (स्त्री)
आकाशः. (2) - रोदस् (नपुं), रोदसी (स्त्री)
भूमिः. (2) - रोदस् (नपुं), रोदसी (स्त्री) ॥3.3.230.2॥)+++
प्रसूरश्वापि भूद्यावौ रोदस्यौ रोदसी च ते ॥3.3.230.2॥
+++(शोभा. (1) - अर्चिस् (स्त्री-नपुं)
नक्षत्रम्. (1) - ज्योतिस् (नपुं)
दृष्टिः. (1) - ज्योतिस् (नपुं)
द्योतः. (1) - ज्योतिस् (नपुं) ॥3.3.231.1॥)+++
ज्वालाभासौ न पुंस्यर्चिर्ज्योतिर्भद्योतदृष्टिषु ॥3.3.231.1॥
+++(पापम्. (1) - आगस् (नपुं)
पक्षी. (1) - वयस् (नपुं)
बाल्यादिः. (1) - वयस् (नपुं) ॥3.3.231.2॥)+++
पापापराधयोरागः खगबाल्यादिनोर्वयः ॥3.3.231.2॥
+++(प्रभा. (2) - वर्च (पुं), महस् (नपुं)
पुरीषम्. (1) - वर्च (पुं)
उत्सवः. (1) - महस् (नपुं) ॥3.3.232.1॥)+++
तेजः पुरीषयोर्वर्चो महस्तूत्सवतेजसोः ॥3.3.232.1॥
मूलम्
रजो गुणे च स्त्रीपुष्पे राहौ ध्वान्ते गुणे तमः ॥3.3.232.2॥
शब्दाः
राहुः. (1) - तमस् (नपुं) ॥3.3.232.2॥
+++(पद्यम्. (1) - छन्दस् (नपुं)
स्पृहा. (1) - छन्दस् (नपुं)
कृच्छ्रादिकर्मः. (1) - तपस् (नपुं) ॥3.3.233.1॥)+++
छन्दः पद्येऽभिलाषे च तपः कृच्छ्रादिकर्म च ॥3.3.233.1॥
+++(बलम्. (1) - सहस् (नपुं)
मार्गः. (1) - सहस् (पुं)
श्रावणमासः. (1) - नभस् (पुं) ॥3.3.233.2॥)+++
सहो बलं सहा मार्गो नभः खं श्रावणो नभाः ॥3.3.233.2॥
+++(गृहम्. (1) - ओकस् (नपुं)
आश्रयः. (1) - ओकास् (पुं) ॥3.3.234.1॥)+++
ओकः सद्माश्रयश्चौकाः पय: क्षीरं पयोम्बु च ॥3.3.234.1॥
+++(प्रभा. (1) - ओजस् (नपुं)
बलम्. (1) - ओजस् (नपुं)
इन्द्रियम्. (1) - स्रोतस् (नपुं)
निम्नगारयः. (1) - स्रोतस् (नपुं) ॥3.3.234.2॥)+++
ओजो दीप्तौ बले स्रोत इन्द्रिये निम्नगारये ॥3.3.234.2॥
+++(प्रभा. (1) - तेजस् (नपुं)
बलम्. (1) - तेजस् (नपुं)
प्रभावः. (1) - तेजस् (नपुं) ॥3.3.235.1॥)+++
तेजः प्रभावे दीप्तौ च बले शुक्रेऽप्यतस्त्रिषु ॥3.3.235.1॥
+++(विदत्. (1) - विद्वस् (वि)
हिंसाशीलः. (1) - बीभत्स (वि) ॥3.3.235.2॥)+++
विद्वान्विदंश्च बीभत्सो हिंस्रोऽप्यतिशयेत्वमी ॥3.3.235.2॥
+++(अतिशयेन वृद्धः. (1) - ज्यायस् (वि)
अतिशयेन प्रशस्तः. (1) - ज्यायस् (वि)
अत्यन्तम् युवा. (1) - कनीयस् (वि)
अत्यन्तम् अल्पः. (1) - कनीयस् (वि) ॥3.3.236.1॥)+++
वृद्धप्रशंसयोर्ज्यायान्कनीयांस्तु युवाल्पयोः ॥3.3.236.1॥
+++(अत्यन्तम् ऊरुः. (1) - वरीयस् (वि)
अत्यन्तम् वरः. (1) - वरीयस् (वि)
अत्यन्तम् साधुः. (1) - साधीयस् (वि)
अत्यन्तम् बाढः. (1) - साधीयस् (वि) ॥3.3.236.2॥)+++
वरीयांस्तूरुवरयोः साधीयान्साधुबाढयोः ॥3.3.236.2॥
+++(दलम्. (1) - बर्ह (पुं-नपुं)
निर्बन्धः. (1) - ग्रह (पुं)
अर्कादयः. (1) - ग्रह (पुं) ॥3.3.237.1॥)+++
दलेऽपि बर्हं निर्बन्धोपरागार्कादयो ग्रहाः ॥3.3.237.1॥
+++(क्वाथरसः. (1) - निर्यूह (पुं)
नागदन्तकम्. (1) - निर्यूह (पुं)
शिखास्थमाल्यम्. (1) - निर्यूह (पुं)
द्वारम्. (1) - निर्यूह (पुं) ॥3.3.237.2॥)+++
द्वार्यापीडे क्वाथरसे निर्यूहो नागदन्तके ॥3.3.237.2॥
+++(तुलासूत्रम्. (2) - प्रग्राह (पुं), प्रग्रह (पुं)
प्रग्रहः. (2) - प्रग्राह (पुं), प्रग्रह (पुं) ॥3.3.238.1॥)+++
तुलासूत्रेऽश्वादिरश्मौ प्रग्राहः प्रग्रहोऽपि च ॥3.3.238.1॥
+++(पत्नी. (1) - परिग्रह (पुं)
परिजनः. (1) - परिग्रह (पुं)
आदानम्. (1) - परिग्रह (पुं)
मूलधनम्. (1) - परिग्रह (पुं)
शापवचनम्. (1) - परिग्रह (पुं) ॥3.3.238.2॥)+++
पत्नीपरिजनादानमूलशापाः परिग्रहाः ॥3.3.238.2॥
+++(पत्नी. (1) - गृह (पुं-बहु)
वरस्त्रियाः श्रोणी. (1) - आरोह (पुं) ॥3.3.239.1॥)+++
दारेषु च गृहाः श्रोण्यामप्यारोहो वरस्त्रियाः ॥3.3.239.1॥
+++(वृत्रासुरः. (1) - अहि (पुं)
अग्निः. (1) - तमोपह (पुं)
चन्द्रः. (1) - तमोपह (पुं)
सूर्यः. (1) - तमोपह (पुं) ॥3.3.239.2॥)+++
व्यूहो वृन्देऽप्यहिर्वृत्रेऽप्यग्नीन्द्वर्कास्तमोपहाः ॥3.3.239.2॥
+++(परिवारः. (1) - परिबर्ह (पुं)
नृपार्हाः. (1) - परिबर्ह (पुं) ॥3.3.240.1॥)+++
परिच्छदे नृपार्हेऽर्थे परिबर्होऽव्ययाः परे ॥3.3.240.1॥
+++(ईषदर्थः. (1) - आङ् (अव्य)
सर्वतोव्याप्तिः. (1) - आङ् (अव्य)
सीमार्थः. (1) - आङ् (अव्य)
धातुयोगजार्थः. (1) - आङ् (अव्य) ॥3.3.240.2॥)+++
आङीषदर्थेऽभिव्याप्तौ सीमार्थे धातुयोगजे ॥3.3.240.2॥
+++(प्रगृह्यः. (1) - आ (अव्य)
स्मृतिः. (1) - आ (अव्य)
वाक्यम्. (1) - आ (अव्य)
कोपः. (1) - आस्तु (अव्य)
दुःखम्. (1) - आस्तु (अव्य) ॥3.3.241.1॥)+++
आ प्रगृह्यस्स्मृतौ वाक्येऽप्यास्तु स्यात्कोपपीडयोः ॥3.3.241.1॥
+++(ईषदर्थः. (1) - कु (स्त्री)
जुगुप्सा. (1) - कु (स्त्री)
पापम्. (1) - कु (स्त्री)
निर्भर्त्सनम्. (1) - धिक् (अव्य)
निन्दा. (1) - धिक् (अव्य) ॥3.3.241.2॥)+++
पापकुत्सेषदर्थे कु धिङ्निर्भत्सननिन्दयोः ॥3.3.241.2॥
+++(अन्वाचयः. (1) - च (अव्य)
इतरेतरः. (1) - च (अव्य)
समाहारः. (1) - च (अव्य)
समुच्चयः. (1) - च (अव्य) ॥3.3.242.1॥)+++
चान्वाचयसमाहारेतरेतरसमुच्चये ॥3.3.242.1॥
+++(आशीः. (1) - स्वस्ति (अव्य)
क्षेमम्. (1) - स्वस्ति (अव्य)
पुण्यादिः. (1) - स्वस्ति (अव्य)
प्रकर्षः. (1) - अति (अव्य)
लङ्घनम्. (1) - अति (अव्य) ॥3.3.242.2॥)+++
स्वस्त्याशीः क्षेमपुण्यादौ प्रकर्षे लङ्घनेऽप्यति ॥3.3.242.2॥
+++(प्रश्नः. (1) - स्वित् (अव्य)
वितर्कः. (1) - स्वित् (अव्य)
भेदः. (1) - तु (अव्य)
अवधारणम्. (1) - तु (अव्य) ॥3.3.243.1॥)+++
स्वित्प्रश्ने च वितर्के च तु स्याद्भेदेऽवधारणे ॥3.3.243.1॥
+++(सह. (1) - सकृत् (अव्य)
एकवारम्. (1) - सकृत् (अव्य)
दूरम्. (1) - आरात् (अव्य)
समीपः. (1) - आरात् (अव्य) ॥3.3.243.2॥)+++
सकृत्सहैकवारे चाप्याराद्दूरसमीपयोः ॥3.3.243.2॥
+++(चरमम्. (1) - पश्चात् (अव्य)
पश्चिमदिक्. (1) - पश्चात् (अव्य)
प्रश्नः. (1) - उत (अव्य)
समुच्चयः. (1) - उत (अव्य)
विकल्पः. (1) - उत (अव्य) ॥3.3.244.1॥)+++
प्रतीच्यां चरमे पश्चादुताप्यर्थविकल्पयोः ॥3.3.244.1॥
+++(पुनः. (1) - शश्वत् (अव्य)
सहार्थः. (1) - शश्वत् (अव्य)
प्रत्यक्षः. (1) - साक्षात् (अव्य)
तुल्यम्. (1) - साक्षात् (अव्य) ॥3.3.244.2॥)+++
पुनस्सहार्थयोः शश्वत्साक्षात्प्रत्यक्षतुल्ययोः ॥3.3.244.2॥
+++(आमन्त्रणम्. (1) - बत (अव्य)
करुणरसः. (1) - बत (अव्य)
सन्तोषम्. (1) - बत (अव्य)
विस्मयः. (1) - बत (अव्य)
दुःखम्. (1) - बत (अव्य) ॥3.3.245.1॥)+++
खेदानुकम्पासन्तोषविस्मयामन्त्रणे बत ॥3.3.245.1॥
+++(आनन्दः. (1) - हन्त (अव्य)
करुणरसः. (1) - हन्त (अव्य)
वाक्यारम्भः. (1) - हन्त (अव्य)
विषादः. (1) - हन्त (अव्य) ॥3.3.245.2॥)+++
हन्त हर्षेऽनुकम्पायां वाक्यारम्भविषादयोः ॥3.3.245.2॥
+++(लक्षणादिः. (1) - प्रति (अव्य)
प्रतिनिधिः. (1) - प्रति (अव्य)
वीप्सा. (1) - प्रति (अव्य) ॥3.3.246.1॥)+++
प्रति प्रतिनिधौ वीप्सालक्षणादौ प्रयोगतः ॥3.3.246.1॥
+++(कारणम्. (1) - इति (अव्य)
प्रकरणम्. (1) - इति (अव्य)
प्रकर्षः. (1) - इति (अव्य)
समापनम्. (1) - इति (अव्य) ॥3.3.246.2॥)+++
इति हेतुप्रकरणप्रकर्षादिसमाप्तिषु ॥3.3.246.2॥
+++(पूर्वदिक्. (1) - पुरस्तात् (अव्य)
प्रथमा. (1) - पुरस्तात् (अव्य)
पुरार्थः. (1) - पुरस्तात् (अव्य)
अग्रे. (1) - पुरस्तात् (अव्य) ॥3.3.247.1॥)+++
प्राच्यां पुरस्तात्प्रथमे पुरार्थेऽग्रत इत्यपि ॥3.3.247.1॥
+++(साकल्यम्. (1) - यावत् तावत् (अव्य)
अवधिः. (1) - यावत् तावत् (अव्य)
मानः. (1) - यावत् तावत् (अव्य)
अवधारणम्. (1) - यावत् तावत् (अव्य) ॥3.3.247.2॥)+++
यावत्तावच्च साकल्येऽवधौ मानेऽवधारणे ॥3.3.247.2॥
+++(अनन्तरम्. (2) - अथो (अव्य), अथ (अव्य)
आरम्भः. (2) - अथो (अव्य), अथ (अव्य)
कार्त्स्न्यम्. (2) - अथो (अव्य), अथ (अव्य)
प्रश्नः. (2) - अथो (अव्य), अथ (अव्य)
शुभम्. (2) - अथो (अव्य), अथ (अव्य) ॥3.3.248.1॥)+++
मङ्गलानन्तरारम्भप्रश्नकार्त्स्न्येष्वथो अथ ॥3.3.248.1॥
+++(अविधिः. (1) - वृथा (अव्य)
अनेकम्. (1) - नाना (अव्य)
उभयार्थः. (1) - नाना (अव्य) ॥3.3.248.2॥)+++
वृथा निरर्थकाविध्योर्नानानेकोभयार्थयोः ॥3.3.248.2॥
+++(प्रश्नः. (1) - नु (अव्य)
विकल्पः. (1) - नु (अव्य)
पश्चात्. (1) - अनु (अव्य)
सादृश्यम्. (1) - अनु (अव्य) ॥3.3.249.1॥)+++
नु पृच्छायां विकल्पे च पश्चात्सादृश्ययोरनु ॥3.3.249.1॥
+++(आमन्त्रणम्. (1) - ननु (अव्य)
अनुज्ञा. (1) - ननु (अव्य)
अनुनयः. (1) - ननु (अव्य)
अवधारणम्. (1) - ननु (अव्य)
प्रश्नः. (1) - ननु (अव्य) ॥3.3.249.2॥)+++
प्रश्नावधारणानुज्ञानुनयामन्त्रणे ननु ॥3.3.249.2॥
+++(गर्हा. (1) - अपि (अव्य)
प्रश्नः. (1) - अपि (अव्य)
शङ्का. (1) - अपि (अव्य)
सम्भावना. (1) - अपि (अव्य)
समुच्चयः. (1) - अपि (अव्य) ॥3.3.250.1॥)+++
गर्हासमुच्चयप्रश्नशङ्कासम्भावनास्वपि ॥3.3.250.1॥
+++(उपमा. (1) - वा (अव्य)
विकल्पः. (1) - वा (अव्य)
अर्धः. (1) - सामि (अव्य)
जुगुप्सितः. (1) - सामि (अव्य) ॥3.3.250.2॥)+++
उपमायां विकल्पे वा सामि त्वर्धे जुगुप्सिते ॥3.3.250.2॥
+++(सह. (1) - अमा (अव्य)
समीपः. (1) - अमा (अव्य) ॥3.3.251.1॥)+++
अमा सह समीपे च कं वारिणि च मूर्धनि ॥3.3.251.1॥
+++(इव. (1) - एवम् (अव्य)
इत्थम्. (1) - एवम् (अव्य)
अर्थनिश्चयः. (1) - नूनम् (अव्य)
तर्कः. (1) - नूनम् (अव्य) ॥3.3.251.2॥)+++
इवेत्थमर्थयोरेवं नूनं तर्केऽर्थनिश्चये ॥3.3.251.2॥
+++(आनन्दः. (1) - जोषम् (अव्य)
तूष्णीमर्थः. (1) - जोषम् (अव्य)
जुगुप्सनम्. (1) - किम् (अव्य)
प्रश्नः. (1) - किम् (अव्य) ॥3.3.252.1॥)+++
तूष्णीमर्थे सुखे जोषं किं पृच्छायां जुगुप्सने ॥3.3.252.1॥
+++(कोपः. (1) - नामन् (अव्य)
कुत्सनम्. (1) - नामन् (अव्य)
प्राकाश्यः. (1) - नामन् (अव्य)
सम्भाव्यः. (1) - नामन् (अव्य)
उपगमः. (1) - नामन् (अव्य) ॥3.3.252.2॥)+++
नाम प्राकाश्यसम्भाव्यक्रोधोपगमकुत्सने ॥3.3.252.2॥
+++(भूषणम्. (1) - अलम् (अव्य)
पर्याप्तिः. (1) - अलम् (अव्य)
शक्तिः. (1) - अलम् (अव्य) ॥3.3.253.1॥)+++
अलं भूषणपर्याप्तिशक्तिवारणवाचकम् ॥3.3.253.1॥
+++(परिप्रश्नः. (1) - हुम् (अव्य)
वितर्कः. (1) - हुम् (अव्य)
मध्यम्. (1) - समया (अव्य)
समीपः. (1) - समया (अव्य) ॥3.3.253.2॥)+++
हुं वितर्के परिप्रश्ने समयान्तिकमध्ययोः ॥3.3.253.2॥
+++(अप्रथमः. (1) - पुनर् (अव्य)
भेदः. (1) - पुनर् (अव्य)
निषेधः. (1) - निर् (अव्य)
निश्चयः. (1) - निर् (अव्य) ॥3.3.254.1॥)+++
पुनरप्रथमे भेदे निर्निश्चयनिषेधयोः ॥3.3.254.1॥
+++(प्रबन्धम्. (1) - पुरा (अव्य)
चिरातीतम्. (1) - पुरा (अव्य)
निकटागामिकम्. (1) - पुरा (अव्य) ॥3.3.254.2॥)+++
स्यात्प्रबन्धे चिरातीते निकटागामिके पुरा ॥3.3.254.2॥
+++(अङ्गीकृतिः. (3) - ऊररी (अव्य), ऊरी (अव्य), उररी (अव्य)
विस्तरः. (3) - ऊररी (अव्य), ऊरी (अव्य), उररी (अव्य) ॥3.3.255.1॥)+++
ऊरर्यूरी चोररी च विस्तारेऽङ्गीकृतौ त्रयम् ॥3.3.255.1॥
+++(परलोकः. (1) - स्वर् (अव्य)
सम्भाव्यः. (1) - किल (अव्य)
वार्ता. (1) - किल (अव्य) ॥3.3.255.2॥)+++
स्वर्गे परे च लोके स्वर्वार्तासम्भाव्ययोः किल ॥3.3.255.2॥
+++(अनुनयः. (1) - खलु (अव्य)
जिज्ञासा. (1) - खलु (अव्य)
निषेधः. (1) - खलु (अव्य)
वाक्यालङ्कारः. (1) - खलु (अव्य) ॥3.3.256.1॥)+++
निषेधवाक्यालङ्कारजिज्ञासानुनये खलु ॥3.3.256.1॥
+++(अभिमुखम्. (1) - अभितस् (अव्य)
साकल्यम्. (1) - अभितस् (अव्य)
शीघ्रम्. (1) - अभितस् (अव्य)
उभयतः. (1) - अभितस् (अव्य) ॥3.3.256.2॥)+++
समीपोभयतश्शीघ्रसाकल्याभिमुखेऽभितः ॥3.3.256.2॥
+++(नाम. (1) - प्रादुस् (अव्य)
प्राकाश्यः. (1) - प्रादुस् (अव्य)
अन्योन्यम्. (1) - मिथः (अव्य)
रहस्यम्. (1) - मिथः (अव्य) ॥3.3.257.1॥)+++
नामप्राकाश्ययोः प्रादुर्मिथोऽन्योन्यं रहस्यपि ॥3.3.257.1॥
+++(अन्तर्धानम्. (1) - तिरस् (अव्य)
अर्तिः. (1) - हा (अव्य)
शुद्धिः. (1) - हा (अव्य)
विषादः. (1) - हा (अव्य) ॥3.3.257.2॥)+++
तिरोऽन्तर्धौ तिर्यगर्थे हा विषादशुगर्तिषु ॥3.3.257.2॥
+++(अद्भुतरसः. (1) - अहह (अव्य)
दुःखम्. (1) - अहह (अव्य)
अवधारणम्. (1) - हि (अव्य)
कारणम्. (1) - हि (अव्य) ॥3.3.258.1॥)+++
अहहेत्यद्भुते खेदे हि हेताववधारणे ॥3.3.258.1॥