2.03 शैलवर्गः

मूलम्

महीध्रे शिखरिक्ष्माभृदहार्यधरपर्वताः ॥2.3.1.1॥

शब्दाः

पर्वतः. (6) - महीध्र (पुं), शिखरिन् (पुं), क्ष्माभृत् (पुं), अहार्य (पुं), धर (पुं), पर्वत (पुं) ॥2.3.1.1॥

मूलम्

अद्रिगोत्रगिरिग्रावाचलशैलशिलोच्चयाः ॥2.3.1.2॥

शब्दाः

पर्वतः. (7) - अद्रि (पुं), गोत्र (पुं), गिरि (पुं), ग्रावन् (पुं), अचल (पुं), शैल (पुं), शिलोच्चय (पुं) ॥2.3.1.2॥

मूलम्

लोकालोकश्चक्रवालस्त्रिकूटस्त्रिककुत्समौ ॥2.3.2.1॥

शब्दाः

लोकालोकपर्वतः. (2) - लोकालोक (पुं), चक्रवाल (पुं)
लङ्काधिष्ठानपर्वतः. (2) - त्रिकूट (पुं), त्रिककुद् (पुं) ॥2.3.2.1॥

मूलम्

अस्तस्तु चरमक्ष्माभृदुदयः पूर्वपर्वतः ॥2.3.2.2॥

शब्दाः

पश्चिमपर्वतः. (2) - अस्त (पुं), चरमक्ष्माभृत् (पुं)
उदयपर्वतः. (2) - उदय (पुं), पूर्वपर्वत (पुं) ॥2.3.2.2॥

मूलम्

हिमवान्निषधो विन्ध्यो माल्यवान्पारियात्रिकः ॥2.3.3.1॥

शब्दाः

हिमवान्. (1) - हिमवत् (पुं)
निषधपर्वतः. (1) - निषध (पुं)
विन्ध्यापर्वतः. (1) - विन्ध्य (पुं)
माल्यवान्. (1) - माल्यवत् (पुं)
परियात्रकपर्वतः. (1) - परियात्रक (पुं) ॥2.3.3.1॥

मूलम्

गन्धमादनमन्ये च हेमकूटादयो नगाः ॥2.3.3.2॥

शब्दाः

गन्धमादनपर्वतः. (1) - गन्धमादन (नपुं)
हेमकूटपर्वतः. (1) - हेमकूट (पुं) ॥2.3.3.2॥

मूलम्

पाषाणप्रस्तरग्रावोपलाश्मानः शिला दृषत् ॥2.3.4.1॥

शब्दाः

पाषाणः. (7) - पाषाण (पुं), प्रस्तर (पुं), ग्रावन् (पुं), उपल (पुं), अश्मन् (पुं), शिला (स्त्री), दृषद् (स्त्री) ॥2.3.4.1॥

मूलम्

कूटोऽस्त्री शिखरं शृङ्गं प्रपातस्त्वतटो भृगुः ॥2.3.4.2॥

शब्दाः

पर्वताग्रः. (3) - कूट (पुं-नपुं), शिखर (नपुं), शृङ्ग (नपुं)
पर्वतात्पतनस्थानम्. (3) - प्रपात (पुं), अतट (पुं), भृगु (पुं) ॥2.3.4.2॥

मूलम्

कटकोऽस्त्री नितम्बोऽद्रेः स्नुः प्रस्थः सानुरस्त्रियाम् ॥2.3.5.1॥

शब्दाः

मेखलाख्यपर्वतमध्यभागः. (1) - कटक (पुं-नपुं)
पर्वतसमभूभागः. (3) - स्नु (पुं), प्रस्थ (पुं-नपुं), सानु (पुं-नपुं) ॥2.3.5.1॥

मूलम्

उत्सः प्रस्रवणं वारिप्रवाहो निर्झरो झरः ॥2.3.5.2॥

शब्दाः

जलस्रवणस्थानम्. (2) - उत्स (पुं), प्रस्रवण (नपुं)
निर्गतजलप्रवाहः. (3) - वारिप्रवाह (पुं), निर्झर (पुं), झर (पुं) ॥2.3.5.2॥

मूलम्

दरी तु कन्दरो वा स्त्री देवखातबिले गुहा ॥2.3.6.1॥

शब्दाः

कृत्रिमगृहाकारगिरिविवरम्. (2) - दरी (स्त्री), कन्दर (स्त्री-पुं)
गिरिबिलम्. (3) - देवखात (नपुं), बिल (नपुं), गुहा (स्त्री) ॥2.3.6.1॥

मूलम्

गह्वरं गण्डशैलास्तु च्युताः स्थूलोपला गिरेः ॥2.3.6.2॥

शब्दाः

गिरिबिलम्. (1) - गह्वर (नपुं)
पतितस्थूलपाषाणः. (1) - गण्डशैल (पुं) ॥2.3.6.2॥

मूलम्

दन्तकास्तु बहिस्तिर्यक्प्रदेशान्निर्गता गिरेः ॥2.3.6.3॥

शब्दाः

पर्वतनिर्गतशिलाखण्डः. (1) - दन्तक (पुं) ॥2.3.6.3॥

मूलम्

खनिः स्त्रियामाकरः स्यात्पादाः प्रत्यन्तपर्वताः ॥2.3.7.1॥

शब्दाः

रत्नाद्युत्पत्तिस्थानम्. (2) - खनि (स्त्री), आकर (पुं)
पर्वतसमीपस्थाल्पपर्वतः. (2) - पाद (पुं), प्रत्यन्तपर्वत (पुं) ॥2.3.7.1॥

मूलम्

उपत्यकाद्रेरासन्ना भूमिरूर्ध्वमधित्यका ॥2.3.7.2॥

शब्दाः

अद्रेरधस्थोर्ध्वासन्नभूमिः. (1) - उपत्यका (स्त्री) ॥2.3.7.2॥

मूलम्

धातुर्मनःशिलाद्यद्रेर्गैरिकं तु विशेषतः ॥2.3.8.1॥

शब्दाः

मनःशिलादिधातुः. (1) - धातु (पुं)
धातुविशेषः. (1) - गैरिक (वि) ॥2.3.8.1॥

मूलम्

निकुञ्जकुञ्जौ वा क्लीबे लतादिपिहितोदरे ॥2.3.8.2॥

शब्दाः

लताच्छादितगर्भस्थानम्. (2) - निकुञ्ज (पुं-नपुं), कुञ्ज (पुं-नपुं) ॥2.3.8.2॥