शिच-छत्रसाल-संवादः

दोहा।
सिवा किसा सुनिकै कही,
तुम छत्री सिरताज ।
जीत आपनी भूम की,
करी देश की राज ॥५॥

छन्द
करौ देश को राज छतारै ।
हम तुमत कबहूं नहि न्यारे ।
दारि देस मुगलन के मारौ।
दवटि दिली के दल संहारी॥

तुरकन की परतीत न मानौ ।
तुम केहरि तुरकन गज जाना ॥
तुरकन में न बिबेक बिलोक्यौ ।
मिलन गये उनको उन रोक्यौ ॥

हमको भई सहाइ भवानी ।
भय नहिं मुगलन की मन मानी ॥
छल बल निकसि देश में आये ।
अब हम पै उमराइ पठाये ॥

हम तुरकान पर कसी कृपानी ।
मारि करेंगै कीचक घानी॥
तुमहू जाइ देस दल जारी ।
तुरक मारि तरवारनि तोरी॥

राखि हिये ब्रजनाथ को,
हाथ लेउ करवार।
है रक्षा करिहै सदा,
यह जानो निरधार।।

छत्रनि की यह वृत्त बनाई।
सदा तेग की खाई कमाई।।
गाइ वेद विप्रन प्रतिपाले।
घाउ एड़धारिन पर घाले।।

तैगधार में जो तन छूटै।
तो रवि भेद मुकत सुख लुटै।।
जेतपत्र जो रन में पावे।
तौ पुहुनी के नाथ कहावै।।

तुम हौ महावीर मरदानै ।
करिहौ भूमि भांग हम जाने ।।
जो इतही तुमकौं हम राखें ।
तौ सब सुजस हमारे भाई ।।

ताते जाई मुगल दल मारौ।
सुनिये श्रवननि सुजस तिहौरो।।
यह कहि तेग मंगाई बंधाई।
बीर बदन दूनी दुति आई।।

हिन्द तुरक दीन है गाये ।
तिनसीं वैर सदा चलि आये।
लेण्या सुर असुरन को जैसौ।
केहरि करिन बखान्यो तैसे॥

जवतै साह तनत पर बैठे।
नबतै हिंदुन सौ उर ऐठे॥ महँगे कर तीरथनि लगाये ।
बेद देवाले निदर ढहाये ॥

घर घर बाँधि जंजिया लीनै ।
अपने मन भाये सब कीनै॥
सब रजपूत सील नित नावै।
ऐड करै नित पैदल धावै।

ऐड एक सिवराज निबाही।
करै आपने चित की चाहो।
पाठ पातसाही झुकझोरै।
सुबनि बांधि डाँड़ लै छोरै।

काव्यम् अधिकृत्य

The poet Gorelal Purohit or Lal Kavi, was the court poet of Chhatrasal Bundela. Everything he wrote had the blessing of the Maharaja Chhatrasal. The latter outlived the former by many years.